भावी
(लघुकथा)
सैनिक शहीद शाहिद खान का मृत शरीर जब तिरंगे मे लिपटा हुआ उसके पैतृक गाँव पहूँचा तो अलग ही आब बिखेर रहा था। पूरा गाँव आँखों में गर्व मिश्रित दुख लिए अंतिम विदाई देने के लिए उपस्थित था । पूरा गाँव एक परिवार ही लग रहा था। नशवर शरीर को खाके सुपुर्द करने के बाद सभी शाहिद के आँगन मे लौट आये। धीरे धीरे शाहिद के जीवन मे घटित घटनाओं की बाते आरम्भ हुईं।
तभी उसके विधालय के अध्यापक श्री रामचंद्र जी ने खडे होकर सब का अभिवादन किया और कहा, आज मुझे एक पुरानी घटना याद आ रही है। लगता है. भावी ही उससे यह त्रुटि करवा रही थी। वह जब भी अपना नाम लिखता हमेशा शाहिद की जगह शहीद ही लिखता। अनेको बार समझाया पर हमेशा वर्तनी अशुदृ। मुस्कुरा कर कहता। गुरूजी यही सही है देखना आप भी अंततः इसी नाम से बुलाएंगे। वह शुरू से ही तिरंगा. सेना, और देश के वीर सपुतों की बाते करता था।
जब सेना मे भर्ती हुई तो मिलने आया था,बोला गुरु जी आप ने कितना ही समझाया पर अब तो मानते हैं मैं सही । मैने प्यार से चपत लगाते कहा., अरे, खूब आयु है तेरी पगले। जी भर देश सेवा कर। शाहिद ने कहा मास्टर जी। मेरी अशुद्ध वर्तनी रंग लाएगी देखना।
सभी भावुक हो गये और गुरू जी ने अपने शहीद खान को सेल्यूट किया।
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डा. नीना छिब्बरजोधपुर(राजस्थान)
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