*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Thursday, 13 February 2020

रोबोट (लघुकथा) - ज्योत्स्ना ' कपिल'

रोबोट
(लघुकथा)
बड़े ट्रंक का सामान निकालते हुए शिखा ने बड़े ममत्व से अपने पुत्र राहुल के छुटपन के वस्त्र और खिलौनों को छुआ। छोटे-छोटे झबले,स्वेटर, झुनझुने, न जाने कितनी ही चीजें उसने बड़े यत्न से अब तक सम्हालकर रखी थीं।

अरे रोबोट ! वह चिहुँक उठी। जब दो वर्ष का था बेटा, तो अमेरिका से आये बड़े भैया ने उसे ये लाकर दिया था। कई तरह के करतब दिखाता रोबोट पाकर राहुल तो निहाल हो उठा। उसमे प्राण बसने लगे थे उसके। पर शरारत का ये आलम कि कोई खिलौना बचने ही न देता था। ऐसे में इतना महँगा रोबोट बर्बाद होने देने का मन नही हुआ शिखा का । जब भी वह रोबोट से खेलता, उस समय शिखा बहुत सख्त हो उठती बेटे के साथ । आसानी से वह राहुल को खिलौना देती ही नहीं। लाखों मनुहार करने पर ही कुछ समय को वह खिलौना मिल पाता । फिर उसकी पहुँच से दूर रखने को न जाने क्या-क्या जुगत लगानी पड़ती उसे ।

शिखा के यत्नों का ही परिणाम था कि वह रोबोट अब तक सही सलामत था। राहुल तो उसे भूल भी चुका था। फिर अब तो बड़ा भी हो गया था, पूरे बारह वर्ष का। अपनी वस्तुओं को माँ के मन मुताबिक सम्हालकर भी रखने लगा था।

" अब राहुल समझदार हो गया है, आज मै उसे ये दे दूँगी। बहुत खुश हो जाएगा , उसका अब तक का सबसे प्रिय खिलौना । " स्वगत भाषण करते हुए उसकी ऑंखें ख़ुशी से चमक रही थीं।

तभी राहुल ने कक्ष में प्रवेश किया।

" देख बेटा ,मेरे पास क्या है ?" उसने राजदाराना अंदाज में कहा।

" क्या माँ ?"

" ये रोबोट, अब तुम इसे अपने पास रख सकते हो । अब तो मेरा बेटा बहुत समझदार हो गया है।"

" अब इसका क्या करूँगा माँ ?" क्षण मात्र को राहुल के चेहरे पर पीड़ा के भाव उभरे, फिर मुँह फेरते हुए सख्त लहजे में बोला " मैं कोई लिटिल बेबी थोड़े ही हूँ जो रोबोट से खेलूँगा। "
-०-
पता - 
ज्योत्स्ना ' कपिल' 
गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

‘बच्चों की मौत पर सरकारें मौन क्यों' (आलेख) - रेशमा त्रिपाठी

‘बच्चों की मौत पर सरकारें मौन क्यों'
(आलेख)
“बचपन वह हैं जो तितलियों की तरह उड़ने , फूलों की तरह महकने, चिड़ियों की तरफ चहकने के लिए होता हैं। और फिर मानव सर्वप्रथम एक बच्चा ही तो हैं और देश का भविष्य तो बच्चों के हाथ में होता हैं फिर उनकी मृत्यु पर सरकारें अक्सर मौन क्यों ? हो जाती हैं क्या राजनीतिक दबाव इतना होता हैं कि सरकारें चुप्पी साध लेती हैं या बच्चों की मौत पर उनको कोई फ़र्क नही पड़ता । वैसे देश के भुखमरी आंकड़ों पर नजर डालें तो ग्लोबल हंगर इंटेक्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 117देशों में भारत 102वें पायदान पर हैं और रैंकिग में भारत का स्कोर 30.3 हैं । वर्तमान मृत्यु दर की बात करें तो2016 के आंकड़ों के अनुसार 8.67 लाख से घटकर 2017में 8.02 लाख हो गई । और मृत्यु दर में भी लगातार सुधार हो रहा हैं। ऐसे में जब किसी प्रदेश में सौ,दो सौ,चार सौ की संख्या में बच्चों की मौत पर सरकारें मौन रहती हैं तो कई बार सवाल खड़ा हो जाता हैं आखिर क्यों? इस बात को समझने के लिए धूमिल जी की पुस्तक ‘सांसद से सड़क तक' पढ़ना यथार्थ सा लगता हैं–‘ एक आदमी रोटी बेलता हैं,एक आदमी रोटी खाता हैं,एक तीसरा आदमी भी हैं जो न रोटी बेलता हैं , न रोटी खाता हैं ,वह सिर्फ रोटी से खेलता हैं , मैं पूछता हूं–यह तीसरा आदमी कौन हैं मेरे देश की सांसद मौन है !' आखिर क्यों यह लिखने की जरूरत पड़ गई धूमिल जी क्यों ! शायद ऐसे ही कहीं घटनाएं हुई होगी तब भी जब सरकारें मौन रही होगी यही कारण था कि उन्होंने आगे लिखा–‘ उन्होंने किसी चीज को सही नहीं रहने दिया न संज्ञा,न विशेषण,न सर्वनाम एक समूचा और सही वाक्य टूटकर बिखर गया है'। यह पढ़ने के बाद कहना गलत नहीं होगा कि बच्चें और स्त्री राजनीति करने का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं, और थे भी, आने वाले कल में होगे बस इतना ही कहा जा सकता कि सरकारें मौन तोड़ती रहें और राजनीति करती रहें ।।"
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

रंग मेरा निराला(कविता) - डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)

रंग मेरा निराला
(कविता)
रंग मेरा निराला
श्याम रंग जैसा
सांवला सांवला
लोग कहे मुझे
तेरा रंग है काला
मुस्कुराते मैने कहा
रंग है मेरा निराला
श्याम जैसा सांवला
श्याम रंग से रंगी हूँ
श्याम की हूँ मैं वसुंधरा
रंग मेरा निराला ।।
-०-
पता :
डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)
बेलगाव (कर्नाटक)  


-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

अपने भाग्य विधाता (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

बस शिकायत नहीं..
(कविता)
हम सब स्वयं ही हैं
अपने भाग्य विधाता
ये जिंदगी खुद ही उलझाई और
सुलझाई भी जाती है।
अपने कर्मों से ही मान अपमान
की राह बनाई जाती है।।

स्वर्ग नर्क हम सब स्वयं ही पाते
है इसी ही धरती पर।
अपने ही हाथों भाग्य की लकीर
बनाई और मिटाई जाती है।।
-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

मोनालिसा (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)


मोनालिसा
(कविता)
भोली - भाली मोनालिसा
प्यारी नारी मोनालिसा
गोरी हो तुम मोनालिसा ।

वो ऐसी लड़की नहीं है ,
जिसे किसी ने प्यार ना हो
वह उस बेटी है ,
जिसे डाविंसी ने रूप दिया
उसकी पलकों के साये में जी रही ,
आँखोंने सब को देख लिया ।।

मोती की एक थाली है
जो होंठों के पीछे छिपाई गई
जो मुस्कान है मुंह के कोने ,
वह आप सभी को स्वागत में ।।

सदियों से पहले जैसी,
आज भी वो जीती है वैसी
लोग जहाँ आते, जाते हैं,
उसकी नज़र वहीं चलती है ।।।
-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
कलुतर, श्रीलंका

-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ