रोबोट
(लघुकथा)
बड़े ट्रंक का सामान निकालते हुए शिखा ने बड़े ममत्व से अपने पुत्र राहुल के छुटपन के वस्त्र और खिलौनों को छुआ। छोटे-छोटे झबले,स्वेटर, झुनझुने, न जाने कितनी ही चीजें उसने बड़े यत्न से अब तक सम्हालकर रखी थीं।(लघुकथा)
अरे रोबोट ! वह चिहुँक उठी। जब दो वर्ष का था बेटा, तो अमेरिका से आये बड़े भैया ने उसे ये लाकर दिया था। कई तरह के करतब दिखाता रोबोट पाकर राहुल तो निहाल हो उठा। उसमे प्राण बसने लगे थे उसके। पर शरारत का ये आलम कि कोई खिलौना बचने ही न देता था। ऐसे में इतना महँगा रोबोट बर्बाद होने देने का मन नही हुआ शिखा का । जब भी वह रोबोट से खेलता, उस समय शिखा बहुत सख्त हो उठती बेटे के साथ । आसानी से वह राहुल को खिलौना देती ही नहीं। लाखों मनुहार करने पर ही कुछ समय को वह खिलौना मिल पाता । फिर उसकी पहुँच से दूर रखने को न जाने क्या-क्या जुगत लगानी पड़ती उसे ।
शिखा के यत्नों का ही परिणाम था कि वह रोबोट अब तक सही सलामत था। राहुल तो उसे भूल भी चुका था। फिर अब तो बड़ा भी हो गया था, पूरे बारह वर्ष का। अपनी वस्तुओं को माँ के मन मुताबिक सम्हालकर भी रखने लगा था।
" अब राहुल समझदार हो गया है, आज मै उसे ये दे दूँगी। बहुत खुश हो जाएगा , उसका अब तक का सबसे प्रिय खिलौना । " स्वगत भाषण करते हुए उसकी ऑंखें ख़ुशी से चमक रही थीं।
तभी राहुल ने कक्ष में प्रवेश किया।
" देख बेटा ,मेरे पास क्या है ?" उसने राजदाराना अंदाज में कहा।
" क्या माँ ?"
" ये रोबोट, अब तुम इसे अपने पास रख सकते हो । अब तो मेरा बेटा बहुत समझदार हो गया है।"
" अब इसका क्या करूँगा माँ ?" क्षण मात्र को राहुल के चेहरे पर पीड़ा के भाव उभरे, फिर मुँह फेरते हुए सख्त लहजे में बोला " मैं कोई लिटिल बेबी थोड़े ही हूँ जो रोबोट से खेलूँगा। "
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पता -
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