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Thursday, 13 February 2020

मोनालिसा (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)


मोनालिसा
(कविता)
भोली - भाली मोनालिसा
प्यारी नारी मोनालिसा
गोरी हो तुम मोनालिसा ।

वो ऐसी लड़की नहीं है ,
जिसे किसी ने प्यार ना हो
वह उस बेटी है ,
जिसे डाविंसी ने रूप दिया
उसकी पलकों के साये में जी रही ,
आँखोंने सब को देख लिया ।।

मोती की एक थाली है
जो होंठों के पीछे छिपाई गई
जो मुस्कान है मुंह के कोने ,
वह आप सभी को स्वागत में ।।

सदियों से पहले जैसी,
आज भी वो जीती है वैसी
लोग जहाँ आते, जाते हैं,
उसकी नज़र वहीं चलती है ।।।
-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
कलुतर, श्रीलंका

-०-

***
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