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साक्षत्कार: वरिष्ठ बालसाहित्यकार गोविंद शर्मा जी से राजकुमार जैन 'राजन' जी की बातचीत

बच्चों को सुयोग्य नागरिक बनाना है तो उनको उपयोगी बाल साहित्य दिया जाए:
गोविंद शर्मा 
बाल दिवस के अवसर पर विशेष साक्षात्कार
विशेष साक्षत्कार


☺ साक्षात्कार प्रदाता: गोविंद शर्मा (सुप्रसिद्ध वरिष्ठ बाल साहित्यकार)

➲ साक्षात्कार कर्ता: राजकुमार जैन राजन (सुपरिचित बाल साहित्यकार एवं संपादक 'सृजन महोत्सव)
(राजस्थान के संगरिया निवासी श्री गोविंद शर्मा 47 वर्ष से साहित्य के प्रति समर्पित है और उनकी लेखनी व्यंग्य, लघुकथा एवम बाल साहित्य विधाओं में अनवरत सृजनरत है। अब तक उनकी लगभग 50 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जिनमे से 35 पुस्तकें बाल साहित्य की विधा में प्रकाशित हो चुकी है । उत्कृष्ट बाल साहित्य सृजन के लिए भारत सरकार के प्रकाशन विभाग, राजस्थान साहित्य अकादमी सहित कई साहित्यिक संस्थाएं आपको समादृत कर चुकी है। श्री गोविंद शर्मा के बाल कथा संग्रह "काचू की टोपी" के लिए केंद्रीय साहित्य अकादमी ने इक्यावन हजार रुपये राशि के वर्ष 2019 के बाल साहित्य सम्मान से 14 नवम्बर को चेन्नई में आयोजित भव्य समारोह में सम्मानित किया जाएगा । राजस्थान के किसी बाल साहित्य रचनाकार को पहली बार यह सम्मान मिला है। सुप्रसिद्ध वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री गोविंद शर्मा से सुपरिचित बाल साहित्यकार राजकुमार जैन राजन ने बाल साहित्य लेखन, उपादेयता, दिशा और दशा आदि कई मुद्दों पर बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश-)

● राजन - आपकी बाल साहित्य में पहली रचना कब व किस पत्रिका में प्रकाशित हुई?
➨ गोविंद शर्मा - घर पर बचपन से किताबें और पत्र-पत्रिकाओं को आते देखता था। उनको पढ़ने भी लगा। पत्रिकाओं में छपी कहानियों को पढकर लगता कि ऐसा तो मैं भी लिख सकता हूं। 25 वर्ष की आयु में एक दिन में ही दो बाल कथाएं और एक व्यंग्य लिखा और छपने भेज दिया। दोनों बाल कथाएं चंपक में छपी। उससे पहले व्यंग्य हिंदी शंकर्स वीकली में छपा। बस, उसी दिन भविष्य के बाल कथा लेखक और व्यंग्यकार का जन्म हो गया। फिर लघु कथाएं भी लिखने लगा। मेरी रचनाएं उस समय की महत्वपूर्ण पत्रिकाएं - धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पराग आदि में छपी।"

● राजन -. "बाल साहित्य को आप किस प्रकार परिभाषित करना चाहेंगे ?
➨ गोविंद शर्मा - बाल साहित्य भी साहित्य के ही समकक्ष है। बाल साहित्य में भी लगभग उन सब विधाओं में लिखा जाता है, जो साहित्य की विधाएं हैं। बाल साहित्य दूसरे साहित्य से विशिष्ट इसलिये भी है कि यह बाल पाठकों और बड़े पाठकों के लिये समान रूचिकर एवं उपयोगी है। जबकि केवल बड़ों के लिये लिखे जाने वाले साहित्य में कुछ ऐसी सामग्री भी होती है जो अल्पायु पाठकों के लिए घातक हो सकती है। अतः उपयोगी, जो वास्तव में सबके हित के लिये हो, वही तो बाल साहित्य है।

● राजन - " आप की पहचान व्यंग्यकार के रूप में है फिर बालसाहित्य की तरफ रुझान कैसे हुआ?
➨ गोविंद शर्मा -जैसा कि मैंने पहले बताया व्यंग्य लेखन और बाल कथा लेखन एक ही दिन शुरू हुआ। कभी व्यंग्य लेखन आगे निकलता रहा है तो कभी बाल साहित्य लेखन। पत्र-पत्रिकाओं की मांग के अनुसार व्यंग्य ज्यादा लिखे गये। एक पत्रिका ‘सरिता’ में एक व्यंग्य स्तंभ ‘शून्यकाल का शून्यालाप’ 1972 से 1992 तक निरंतर छपा है। बाल कथाएं भी इस अरसे में खूब लिखी । बाल साहित्य की पुस्तकें ज्यादा छपीं हैं। यूं लघु कथाएं भी पिछली सदी के सातवें दशक से लेकर अब तक निरंतर लिख रहा हूं।


● राजन - आपने खूब बाल साहित्य सृजन किया है, बालसाहित्य की दशा व दिशा के बारे में क्या कहेंगे?
➨ गोविंद शर्मा - राजन जी, बाल साहित्य खूब लिखा है। कथाओं के अलावा सामान्य ज्ञान पर आधारित बाल साहित्य भी लिखा है। मेरी कोशिश तो यही रही है कि बाल पाठकों को मौलिक, रोचक, उपयोगी और शिक्षाप्रद बाल साहित्य दूं। इस संबंध में कितना सफल हुआ हूं - यह तो पाठक ही बता सकते हैं।

● राजन - आपने अधिकांशतः बच्चों के लिए कहानी विधा में ही लिखा है, कहानी विधा को ही क्यों अधिक महत्व दिया?
➨ गोविंद शर्मा - जी हां, केवल बाल कहानी विधा में लिखा है। कई बार कविता लिखने की कोशिश की, पर पेन आगे चलने में अटकता रहा, जबकि कहानी लिखते समय मेरी कलम मुझसे भी आगे चलती गई। यह भी देखा है कि बच्चों में कविता की अपेक्षा कहानी ज्यादा पसंद की जाती है। वे कविता पढ तो लेते हैं, पर कुछ समय बाद उसे बिना पढे सुना नहीं सकते। जबकि पढी हुई कहानी को हूबहू न सही, अपनी भाषा के लहजे में सुना देते हैं। मुझे लगा कविता से पहले कहानी की उन्हें अधिक जरूरत है। वैसे भी बाल कविताएं लिखने वाले कवि बहुत हैं।

● राजन - यह देखने में आता है कि अच्छा बाल साहित्य बालकों तक नहीं पहुंच पाता इसके लिये दोषी कौन है? ..........कुछ बात बालसाहित्य की स्तरीयता पर...
➨ गोविंद शर्मा - आपका यह मानना सही है कि बाल साहित्य बाल पाठकों तक नहीं पहुंचता है। अच्छा या बिना अच्छा बाल साहित्य की क्या बात करें, किसी भी तरह का बाल साहित्य उन तक नहीं पहुंचता है। इसके लिये दोषी हैं केवल माता-पिता और अध्यापक। माता-पिता न तो उनके लिए बाल साहित्य की किताबें खरीद कर लाते हैं और न उन्हें पढने की प्रेरणा देते हैं। उनका जोर रहता है पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढो और खूब सारे-ढेर सारे नंबर लेकर आओ। अध्यापक एक पढा लिखा प्राणी होता है। आजकल लगता है, यह वर्ग पढने से दूर भागने लगा है, किसी तरह घिसटते हुए सेलेबस पूरा करता है। अतिरिक्त पुस्तकें न स्वयं पढ़ते हैं, न पढने की बच्चों को प्रेरणा देते हैं। यह सभी के लिये नहीं कह रहा हूं, अधिकांश के लिये। यदि माता-पिता बाल साहित्य की पुस्तकें घर में लाएं, टी.वी. को बंद कर वे पुस्तकें पढ़े तो निश्चय ही बच्चे भी पढने की ओर उन्मुख होंगे। इसी तरह यदि अध्यापक भी बच्चों के साथ साहित्य पर वार्तालाप करें, विचार विमर्श करें तो बच्चे पढने की ओर आकर्षित होंगे ही।

● राजन - शर्मा जी, बाल साहित्य बच्चों तक पहुंचे इसके लिए क्या प्रयास होने चाहिए?
➨ गोविंद शर्मा - "हम भारतीयों के लिये कहा जाता है कि यदि मुफ्त में जहर मिले तो वो भी खाने को तैयार हो जायेंगे। यह अतिशयोक्ति भी हो सकती है। पर यह सत्य है, संपन्न से संपन्न भारतीय भी मुफ्त में किताब लेना चाहेगा। इसके लिये वह शर्म छोड़कर भिखारी भी बन जायेगा। किसी भी जगह, किसी से भी मुफ्त किताब मिल जाये तो वाह! वाह!
सबसे पहले तो हमें अपनी इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा। बच्चों को जन्मदिवस या अन्य किसी अवसर पर अनावश्यक और केवल सजावटी महंगे उपहार देने के स्थान पर उपयोगी बाल साहित्य दिया जाए। बाल साहित्य को पढने पर बच्चों को यह न कहा जाए कि वह वक्त खराब कर रहा है। बल्कि उत्साहित-प्रेरित किया जाए। स्कूलों को, घरों को बाल साहित्य से समृद्ध किया जाए। उनके परीक्षाफल में बाल साहित्य पढने के अंक भी जोड़े जाएं - जैसे प्रैक्टिकल, खेल आदि के अंक जोड़े जाते हैं।

● राजन - इधर आज का बालक सोशल मीडिया में उलझता जा रहा है इस बारे में आपका क्या कहना है?
➨ गोविंद शर्मा - सोशल मीडिया, मोबाइल फोन, केवल ऊंगलियों से खेला जाने वाला खेल दिन ब दिन बच्चों को अपने जाल में जकड़ रहे हैं। मोबाइल से दूर रहने की शिक्षा अभिभावक-अध्यापक देते हैं - पर उस वक्त उनके हाथ में भी मोबाइल होता है और आंखे मोबाइल की स्क्रीन पर। मोबाइल की दुनिया में उलझते जा रहे बच्चों को बचाने के लिए हमें पहले स्वयं इसका त्याग करना होगा। पर यह संभव दिखाई नहीं दे रहा। हां, रोचक बाल साहित्य की उपलब्धता और अध्यापक अभिभावक का स्वयं द्वारा किया गया त्याग इस दिशा में बच्चे को इस जाल से बचाने में सहायक हो सकता है।
● राजन - एक बालसाहित्य लेखक को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
➨ गोविंद शर्मा - वैसे तो बाल साहित्यकार को साहित्यकार से अधिक सतर्क होकर लेखन करना चाहिए। क्येांकि बाल साहित्यकार की गलती का असर बाल मन को विकृत कर सकता है। बाल साहित्यकार को बाल साहित्य रचते समय हर तरह से अनुशासित होकर लिखना चाहिए।

● राजन - शर्मा जी,साहित्य की हमारे विकास में क्या भूमिका है? इसे समझाइये
➨ गोविंद शर्मा - पुस्तकों ने, साहित्य ने सदा से मानव मन को प्रभावित किया है। आज इसकी आवश्यकता सौ गुना बढ गई है। माता-पिता के पास समय नहीं होता है, बच्चों को कुछ सिखाने का। ऐसे में साहित्य ही है जो उनके जीवन निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकता है। साहित्य उनके विकास को सही दिशा देकर अपनी भूमिका को सार्थकता प्रदान कर सकता है।

● राजन - आप अपने लेखन द्वारा समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
➨ गोविंद शर्मा - जहां तक संदेश की बात है समाज के लिये अनेक संदेश हो सकते हैं। मेरी रचनाओं में रोचकता के आवरण में कोई न कोई सीख जरूर होती है। फिर भी यह कहूंगा कि बच्चों को संस्कारवान बनाना है तो उनके सामने स्वयं को संस्कारित रूप में पेश करें और उन्हें साहित्य से जोडे़ं।

● राजन - आज बाल साहित्य की जो पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही है, उनकी भाषा व स्तरीयता के बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
➨ गोविंद शर्मा - देश में अनेक बाल साहित्य पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। उनके विद्वान संपादक पत्रिका का स्तर बनाए रखने का पूरा प्रसास कर रहे हैं। 'नन्दन' का स्तर वर्षों से उच्च श्रेणी का बना हुआ है। राजस्थान में भीलवाड़ा से 'बाल वाटिका' डॉ. भैंरूलाल गर्ग के संपादन में, श्री संचय जैन के संपादन में ‘बच्चों का देश’ वर्षों से प्रकाशित हो रहे हैं। इन्होंने कभी भी अपने स्तर से समझौता नहीं किया। भाषा संबंधी कोई आपत्ति भी नहीं है। लखनऊ से 'बालवाणी', पटना से 'बाल किलकारी, आदि भी स्तरीय पत्रिकाएं हैं। कुछ बड़े अखबारी संस्थान भी बाल पत्रिकाएं प्रकाशित कर रहे हैं। कुछ ने तो बाल साहित्य का दर्जा देश-विदेश की लोक कथाओं और धार्मिक कथाओं को दे रखा है। निःसंदेह यह बाल साहित्य नहीं होता है।

● राजन -  आपको लगातार कई सम्मान मिले, इस वर्ष केन्द्रीय साहित्य अकादमी का सम्मान मिला, कैसा महसूस करते हैं?
➨ गोविंद शर्मा - सन् 1971 में पहली बार एक रचना के लिये दस रूपये का पारिश्रमिक मिला था। वह मिलते ही उस दिन की भूख, प्यास, नींद मारे खुशी के उड़ गई थी। अब तो कुछ रचनाओं के उससे सौ गुना पारिश्रमिक मिलने लगा है और उसे मानदेय नाम मिल गया है।
जहां तक सम्मान/पुरस्कारों की बात है सन् 1980-81 से मिलने शुरू हो गये थे। भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से भारतेन्दु पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी से बाल साहित्य का पुरस्कार तो मिला ही है। अनेक गैर सरकारी संगठनों से पुरस्कार/सम्मान मिल चुका है। अब केन्द्रीय साहित्य अकादमी से हिन्दी में बाल साहित्य के लिये पुरस्कार मिल रहा है। राजस्थान में किसी हिन्दी रचनाकार को यह पहली बार मिल रहा है। निःसंदेह खुशी तो होगी ही, और अधिक रचनाकर्म की प्रेरणा भी मिलेगी।

● राजन - राजस्थान सरकार ने राजस्थान में बाल साहित्य अकादमी की स्थापना का क्रांतिकारी निर्णय लिया है। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
➨ गोविंद शर्मा - राजन जी, बाल साहित्य अकादमी की स्थापना की मांग राजस्थान में काफी पुरानी है। कई अन्य प्रदेशों में भी यह मांग होती रही है। पर बाजी रही राजस्थान के वर्तमान यशश्वी मुख्यमंत्री माननीय अशोक गहलोत के हाथ। उन्होंने बजट में घोषणा कर दी कि राजस्थान में जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमीकी स्थापना की जाएगी। निःसन्देह इससे बाल साहित्य उन्नयन की दिशा में भरपूर मदद मिलेगी। बाल साहित्य तो अपने आप के विशिष्ट होता है। बाल साहित्यकार भी उत्साहित होंगे और बालकों में बाल साहित्य के प्रति रुचि का विकास होगा।

● राजन - विद्यालयों में पठन- पाठन, पुस्तकालय संस्कृति लगभग समाप्त सी हो गई है, क्या इसको पुनर्जीवित किया जाना चाहिए?
➨ गोविंद शर्मा - मुझे तो अपना जमाना याद है। हमारे स्कूल में पुस्तकालय होता था। हम सब बच्चे रुचि से खूब पुस्तकें पढ़ते थे। अब हालात यह है कि अधिकांश स्कूलों में पुस्तकाध्यक्ष के पद ही नहीं है। जहां कुछ अध्यापकों के पाश यह जिम्मेदारी है वे बच्चों को पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय पुस्तकों की सुरक्षा पर ही विशेष ध्यान देते हैं।इसलिए पुस्तकें हमेशा अलमारियों में ही कैद रहती है।
सरकार को चाहिए कि हर स्कूल में पुस्तकालय संचालन की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करवाये। संस्थाप्रधान व अध्यापक बच्चों में पढ़ने की रुचि पैदा करे, उन्हें पुस्तकें उपलब्ध करवाए। खेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमो की तरह ही पुस्तक प्रेम को महत्व दिया जाए और इसके लिए विशेष आयोजन किये जायें। विद्यालयों के साहित्य प्रेम का पाठ पढ़ने वस्ल बालक निःसन्देह बाद में सुनागरिक व देश हितैषी बनेगा।

● राजन - शर्माजी, अंत मे, आज के नये बालसाहित्यकारों के लिये कोई संदेश ?
➨ गोविंद शर्मा - वैसे तो सन्देश वगैरह देने से मैं बचता रहा हूं। फिर भी आपने पूछा है तो कहूंगा कि बाल साहित्य के उन्नयन, उसके विकास, उसकी उपयोगिता बनाए रखने का दायित्व नये/उभरते/नवोदित बाल साहित्यकारों का ही है। वे नये-नये विषयों पर कविताएं/कहानियां और अन्य विधाओं में रचनाएं लाएं। मक्खी, मच्छर, पतंग, चिड़िया पर बहुत कविताएं लिखी जा चुकी है। आज के बालक की रूचि को सुरूचि बना, उसकी आवश्यकतानुसार साहित्य रचिए। शुभकामनाएं।
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श्री गोविंद शर्मा कृत बाल साहित्य की महत्वपूर्ण पुस्तकें*
● दीपू और मोती ●ऐसे थे स्वामी केशवानन्द ● चालाक चूहे और मूर्ख बिल्लियां ● सबका देश एक है ●मुझे तारे चाहिए ● सवाल का बवाल ●कालू कौआ ● मुकदमा हवा पानी का ● समझदारी से दोस्ती ●हम बच्चों के प्यारे● कहानी केशवानन्द की ●अपने अभ्यारण्य ●चीची ने किया कमाल ●हमें हमारा घर दो ●मेहनत का मंत्र ●सबसे बड़ा तिरंगा● दोस्ती का रंग●नया बाल दिवस ● खेरू जीत गया ●लोमड़ी का तोहफा ●दोस्ती का दम ●दोबु और राजकुमार ●बबलू नाचा झूमकर ●मटकू बोलता है ●हीरा मिल गया ●गंगू की गर्मी ●बंदर की करतूत ●काचू की टोपी ● गोविंद शर्मा की चुनिंदा बाल कथाएं ●मुझे भी सीखना ●मेरी बाल कथाएं आदि
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2 comments:

  1. आदरणीय गोविंद शर्मा जी ने इस साक्षात्कार में अपने मन की पूरी बात उंडेल दी हैं । कुल मिला कर बालसाहित्य पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है । यह साक्षात्कार वाकई बहुत सुंदर और शानदार है । हार्दिक बधाई आदरणीय गोविंद शर्मा जी और साक्षात्कारकर्ता आदरणीय राजकुमार जैन राजन जी।

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  2. आदरणीय गोविंद शर्मा जी ने इस साक्षात्कार में अपने मन की पूरी बात उंडेल दी हैं । कुल मिला कर बालसाहित्य पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है । यह साक्षात्कार वाकई बहुत सुंदर और शानदार है । हार्दिक बधाई आदरणीय गोविंद शर्मा जी और साक्षात्कारकर्ता आदरणीय राजकुमार जैन राजन जी।

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