मैं गुलाम नहीं होना चाहती
(कविता)
(कविता)
मैं गुलाम नहीं होना चाहती
अपनी आदतों की
अपने शौकों की
ना ही सोशल मीडिया की ..
मैं उतना ही सहज,
और आनन्दित होना चाहती हूँ
जैसे होतीं हैं बारिश की बूंदें
जैसे बहती है बयार,
जैसे कूकती है कोयल...
मैं गुलाम नहीं होना चाहती
अपने अहं की
अपने जिद की..
मुझे प्रिय है मेरी आजादी
मैं नहीं होना चाहती ऐसी
कि
मेरे संस्कार मुझे बोझ लगे..
और सत्य कटु..
चाहती हूं संस्कार ,
मेरी नस - नस में आनन्द की
तरह प्रवाहित हो..
नहीं चाहती कर्तव्य मुझे बोझ लगे
चाहती हूं मुझे मेरे कर्तव्य...
सूर्य की पहली किरण - सी
स्फूर्ति और ताजगी से भर दें...
मैं गुलाम नहीं होना चाहती
Inbox में पड़े sms का जवाब देने के लिए..
किसी की तारीफ या आलोचना
के लिए...
मैं गुलाम नहीं होना चाहती
किसी की भी ..
न रूप की , न रंग की ..
यहां तक कि लेखन का भी..
मुझे प्रिय है मेरी आजादी
मैं गुलाम नहीं होना चाहती
खुशियों की ..
अश्रुओं की..
चाहती हूं
जीवन फूलों - सी सहजता लिए
बह उठे धमनियों में..
शिशुओं के मुस्कान से
उतर आए आत्मा में
जीवन के हर आयाम..
मैं गुलाम नहीं होना चाहती ,
अपनी किसी भी ..
इच्छाओं की
पूर्वाग्रहों की
बोलने की
चुप रहने की
घूमने की
सोने की
पढ़ने की या न पढ़ने की..
बस प्रेम होना चाहती हूं
मुझे प्रिय है सबकी आज़ादी..
मुझे प्रिय है मेरा अकेला होना
मुझे प्रिय है तुम्हारा साथ अनंत ..
-०-
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