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Tuesday, 5 May 2020

गीत (कविता) - राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'

गीत 
(कविता)
मैं तुम्हें बस यूं ही रोज लिखता रहा,
कविता और गीत गजलों में गाता रहा।

तू ही है वो कली ख्वाब में जो पली,
मन के मंदिर में तुम को सजाता रहा।।

मैं तुम्हें बस यूं ही रोज लिखता रहा...
मेरे ख्वाबों के पूरे जहां में थी तू,

हर गली हर तिराहे हर बस्ती में तू,
ख्वाब के हर झरोखे में पहरा तेरा,

जिसमें दिखता है बस मुझको चेहरा तेरा,
बिन देखे तुझे तेरी तस्वीर को,

मैं तसव्वुर में अपने बनाता रहा।
तू ही है वो कली एक ख्वाब में जो पली,

मन के मंदिर में तुझको सजाता रहा।।
मैं तुम्हें बस यूं ही रोज लिखता रहा...

तू मेरी शायरी मैं हूं शायर तेरा,
बिल्कुल था ये गलत मानना ये मेरा,

प्यार तुझको न था तुझको बस खेल था,
तेरा मेरा मिलन बिल्कुल बेमेल था,

बेवफा तुम हुए तो हुआ क्या सनम,
मैं तो फिर भी वफाएं निभाता रहा।

तू ही है वो कली ख्वाब में जो पहली,
मन के मंदिर में तुम को सजाता रहा...

मेरी कविता गजल गीत और शायरी,
सब है तेरे लिए सुनले ओ बावरी,

लिख मैं सकता नहीं इसमें नाम तेरा,
तुम समझती हो शायद इशारा मेरा,

मैं तुम्हारा जिकर कर सका ना कहीं,
मन ही मन बस तुम्हें गुनगुनाता रहा।

तू ही है वो कली ख्वाब में जो पहली,
मन के मंदिर में तुम को सजाता रहा।।

मैं तुम्हें बस यूं ही रोज लिखता रहा...
कविता और गीत गजलों में गाता रहा...

तुझको प्यार करने की ख़ता है पता,
है कुबूल अब मुझे यार मेरी ख़ता,

इतने भी मग़रूर लोग होते यहां,
नफरतों से भरा है प्यार का जहां,

मैं तुझे भूलने की हर एक कोशिशें,
हर पल हर घड़ी आज़माता रहा,

तू ही है वो कली ख्वाब में जो पहली,
मन के मंदिर में तुम को सजाता रहा।।

मैं तुम्हें बस यूं ही रोज लिखता रहा...-०-
कवि 
राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
-०-

***
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1 comment:

  1. बाह ! बहुत ही सुन्दर रचना है आदरणीय ! आँप को बहुत बहुत बधाई है।

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