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Thursday 30 January 2020

दो शख़्स के बीच (ग़ज़ल) - टेकनारायण रिमाल 'कौशिक'

दो शख़्स के बीच
(ग़ज़ल)
हर दो शख़्स के बीच खड़ा हथियार है क्या कीजिएगा!
जब ये अख्खा शहर पड़ा बीमार है क्या कीजिएगा!

अमन चैन की बातें तो सोचिएगा नहीं यहाँ कभी
आपस में ही इंसाँ लड़ा बार बार है क्या कीजिएगा!

ख़ुदगर्ज़ हो गए हैं लोग भरोसा किस पर करें!
दिखावा ही दिखावा बस सड़ा प्यार है क्या कीजिएगा!
कोई मुस्कुराता है तो जैसे रोबोट मुस्कुरा रहा हो
बेवफ़ाई की ओर बढ़ा ऐतबार है क्या कीजिएगा!

आँखों में नफ़रत की आग है आज अक्सर लोगों की
ज़िद बन मय का अड़ा ख़ुमार है क्या कीजिएगा!
-०-
पता:
टेकनारायण रिमाल 'कौशिक'
यांगून(बर्मा)
-०-


***
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*ख्वाहिशों की रज़ाई* (कविता) - सविता दास 'सवि'


*ख्वाहिशों की रज़ाई*
(कविता)
बिखरी सुनहली
धूप को समेटकर ,
बैंगनी,लाल
गुलाबी आभा से
क्षितिज को सजाकर
ये शाम दिसम्बर की
आगोश में
भर लेती है
धरा को
ये रंग सारे फिर
गुम हो जाते हैं
चाँद के इर्द गिर्द
और मेरे मन में
फिर जगती हैं
उम्मीदे टिमटिमटिमाते
तारों सी , दूधिया बादलों
की ओट से मानो
चाँद मुस्कुराता है
तुम ज़हन में
चलते हो तो
ये ठंड भी गुनगुनी
लगती है
सर्द हवाएं छूकर जाए
तो ये काया ढूंढती है
तुम्हारे स्पर्श की
गर्माहट...
मैं जानती हूँ
तुम यहीं कहीं
आसपास रहते हो
रात की खामोशियों में
गूंजते हो याद बनकर
यूँ अनमना सा रहना
दिन भर अच्छा लगता है
जाड़ों की इन कंपकंपाती
रातों में ख्वाहिशों की
रज़ाई ओढ़कर सोना
अच्छा लगता है।
-०-
सविता दास 'सवि'
शोणितपुर (असम) 


-0-
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अस्पृश्यता आंदोलन: महात्मा गांधी (आलेख) - डॉ गुलाब चंद पटेल

अस्पृश्यता आंदोलन: महात्मा गांधी
(आलेख )
अंग्रेज सर कार ने हिंद के मुस्लिमों मे अलगाववादी भावना भड़काने का काम 1857 के विद्रोह के बाद शुरू कर दिया था, 1909 के सुधार किए गए कानून से यह प्रवुर्ती को ज्यादा बढावा मिला, गोल मेजी परिषद् तक कहीं सारे मुस्लिमों ने अलग मताधिकार ही नहीं बल्कि अलग देश की रचना के लिए सोचने लगे, लेकिन अंग्रेजो को दलित समुदाय को भी हिन्दू समाज से अलग करने का यकायक ख्याल आया, दलितों को गौरव महसूस कराने वाले महात्मा गांधी और उनके शिष्य थे, 1915 मे सत्याग्रह आश्रम में एक दलित परिवार को अपने साथ समभाव की भावना से गांधीजी ने हिन्दू समाज की गम्भीर ख़फ़ा झेलकर भी रखा गया था, उस के बाद भी दलितों को, अस्पृश्य लोगों को आगे बढ़ाने के लिए, उन्हें समृद्ध बनाने के लिए, समकक्ष बनाने के लिए भी गांधीजी ने अपने से हो सके इतने प्रयत्न किए गए थे, उनकी भावना शंका से पर थी, फिर भी गोल मे जी परिषद् के समय ये देश के एक महान विद्वान को गांधीजी के विरोधी के रूप में डॉ बाबा साहब अम्बेडकर को अंग्रेजो ने खड़ा कर दिया था, गोलमे जी परिषद् मे दलितों को भी अलग मताधिकार देकर, विधान सभा में उनके प्रतिनिधियों को जाति के मुताबिक चुनने का अधिकार सरकार ने सोचा, लेकिन यदि जो ऎसा ही होगा तो मुस्लिम, दलित आदि सभी प्रकार के हिन्दू अलग हो जाय और एक दूसरे के दुश्मन बन जाय, हिंद के एकात्मकता की भावना खत्म हो जाय, गांधीजी किसी भी कीमत पर ऎसा अलगाव होने नहीं देना चाहते थे,
इस लिए गोल मे जी परिषद् मे जाकर मुंबई के आजाद मैदान में प्रथम सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, अस्पृश्य लोगों को अन्य हिंदी लोगों से अलग करने का प्रयास यदि ब्रिटिश शासन करेगा तो मे मेरे प्राण की परवाह किए बिना उसका विरोध करूंगा, गांधीजी सामाजिक एकता के ऎसे उपाय सोचते थे, शिक्षण, तालीम, गृह उद्योग, राष्ट्र भाषा इत्यादि राष्ट्र निर्माण के कार्य क्रम करते थे, तब ब्रिटिश शासन ने एक ही बाबत पर अपना ध्यान केंद्रित किया था, हिंद की आजादी की लड़ाई को तोड़ देना, अंग्रेजो ने इस प्रकार एक प्रकार से युद्ध ही छेड़ दिया था,, जवाहर, सरहद के गांधी बादशाह खान आदि स्वतंत्रता के अहिसंक योद्धा ओ को जैल मे डाल दिया था, गांधीजी ने वाई स रॉय को मिलने की अनुमति मांगी तो उसने मुलाकात देने से इंकार कर दिया, और बताया कि तुम कानून भंग की प्रवुर्ती कर रहे हैं, इस लिए कानून का पालन करने के लिए सरकार जो कदम उठाए उसके लिए गांधीजी की जिम्मेदारी होगी,
अंग्रेज की एसी धमकियों से गांधीजी डरने वाले नहीं थे, उन्होंने तो कौंग्रेस को समग्रतः लड़ाई का एलान कर दिया था, परिणाम स्वरुप गांधीजी को भी कैद कर लिया था, साथ साथ महादेव भाई देसाई को भी गिरफतार कर लिया, उन्हें यर वाड़ा जेल में बंद कर दिया, इस गिरफ्तारी के पीछे अंग्रेजो की एक मैली मुराद थी, जब कि ब्रिटिश शासन कौमी निर्णय दे तब उसका विरोध करने के लिए कोई बड़े नेता जैल से बाहर न हो, गांधीजी ब्रिटिश शासन की चाल समज गए थे, इस लिए उन्होंने जैल मे बैठे बैठे ब्रिटिश शासन को एक पत्र लिखा, जिस में बताया कि अस्पृश्य लोगों को हिन्दू ओ से अलग गिनकर यदि अलग मताधिकार दिया जाएगा तो मे जीवन के अंत तक उपवास करूंगा, ब्रिटिश शासन ने लंबे समय तक ये पत्र का जवाब नहीं दिया और जवाब दिया तब यह दिया कि, आपकी भावना ओका ध्यान रखेंगे,
लेकिन अगस्त महीने में ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने जो निर्णय दिया गया था उसमे दलितों को अलग मताधिकार दिया, उनके लिए बैठक भी तय कर दी किन्तु साथ साथ ही दंगा शुरू कर दिया, अस्पृश्य उम्मीदवार की रिजर्व जगह पर अस्पृश्य ही इलेक्शन मे खड़े हो सके, लेकिन बिन रिजर्व जगह पर भी इलेक्शन मे नामांकन कर सके ऎसा छूट मिला, याने कि हिन्दी लोग अस्पृश्य लोगों को चुनकर अपनी उदात्त भावना दिखा सके, गांधीजी की मांग को लेकर ऎसा किया गया है, ऎसा अंग्रेज लोगों ने दिखावा किया, यह निर्णय से हिन्दू ओ को दोगुना नुकसान होता था, अस्पृश्य बाकी के समाज से अलग है एसी भावना जन्म लेकर कायम बन जाता, यदि कोई अस्पृश्य बिन रिजर्व बैठक पर इलेक्शन मे नामांकन के लिए यदि आगे आए तो स्वर्ण हिन्दू गुस्से में आए, 
गांधीजी अंग्रेजो की एसी अलगाव वादी नीति से बहुत थक गए थे, उन्हों ने तय किया था कि उच्च बलिदान के बिना अब यह प्रश्न हल नहीं होगा, उन्होंने ऎसा बताया, कौमी निर्णय मे अस्पृश्य लोगों को हिन्दू ओ से अलग रखा गया है उसके विरोध में, मे 20 सितंबर से उपवास शुरू करूंगा, 
आप शुभ आशय से काम करते हो फिर भी आप के विरोधी दुश्मन आप के कामों का हल्का अर्थ निकाल सकते हैं, ये दुनिया में पहले से ही ऎसा ही चलता आया है, बड़े लोगों के जीवन में ही नहीं बल्कि छोटे लोगों के जीवन में भी ऎसा ही होता है, कितने लोग मूलरूप से ही स्वार्थी, द्वेषी और विकृत मनोदशा वाले होते हैं, शुभ निष्ठा से किए गए कामों का भी ये लोग विकृत अर्थ निकालते हैं, इशू ख्रीस्त तो भोले मानव को सिर्फ प्रेम और दया का मार्ग दिखाता है, सड़ी हुई धर्म विधियां छोड़कर एक परम पिता की भक्ति की रीत सिखाते थे, लेकिन अपनी सता और संपति छिन जाएगी एसी डर के कारण धर्म गुरु ओ ने उनको दंगा बाज ठहराए, राज्य छीनने के लिए उत्सुक ठहराए, देश के दुश्मनों के हाथों उन्हें स्तंभ में जड़ दिया गया, गांधीजी की भी एसी ही दशा हुई, उनके दिल में अस्पृश्य लोगों के प्रति द्वेष का एक अंश भी नहीं था, रूढी वादी चुस्त हिन्दू अस्पृश्य के प्रति जो हल्का व्यावहार करते थे उसे बदलने के लिए गांधीजी ने तो ह्रदय पूर्वक प्रयास किया था, उनकी सिर्फ यही इच्छा थी कि हिन्दू कॉम मे शामिल हिन्दू समाज में बंटवारा न हो जाए, हकीकत में हिंदी प्रजा मे हिन्दू मुस्लमान के भाग करने मे अंग्रेज सफल हुए ही थे, और यह हल्के काम के लिए हिन्दू और मुस्लिम दौनों कॉम से अमीर लोग मिल गए थे, अस्पृश्य लोगों को गांधीजी की कौंग्रेस मे प्रयाप्त स्थान था, इलेक्शन मे भी पर्याप्त स्थान मिलने वाला था, अरे, क्रम सह अस्पृश्यता मीट जाय और हिन्दू सिर्फ हिन्दू बनकर रहे, उनके बीच भेदभाव न हो, यह दिशा में गांधीजी और उनके सज्जन साथी काम कर रहे थे, 
फिर भी अंग्रेज शासन कर्ता ओ ने गांधीजी के उपवास का और उनकी एकता की भावना ओ का भी उल्टा अर्थ निकाला, ब्रिटन के प्रधान मंत्री ने बताया था कि गांधी अस्पृश्य लोगों को उनके अधिकार से वंचित रखने चाहते हैं, इस लिए वो अस्पृश्य लोगों की रिजर्व जगाओ और अलग मताधिकार का विरोध करते हैं,! 
यह सभी पत्र व्यावहार लोगों के सामने रखा गया, पूरे देश में हाहाकार मच गया, अस्पृश्य लोगों को अपनाने का उत्साह पूरे देश में प्रकट हुआ, अस्पृश्य लोगों के लिए मंदिर भी खुल्ले रखने का शुरू हुआ, ज्यादातर हिन्दू अस्पृश्य लोगों को अपनाने के लिए तैयार ही थे, सिर्फ कुछ पुरानी रस्म के रूढी वादी और उच्च मनाते हिन्दू ओ को थाप कर लाभ प्राप्त करने की कोशिश करते हुए सडे हुए राजकीय लोग ही एकता के विरुध्द थे, 
गांधीजी के उपवास की खबर और अनेक प्रकार से अस्पृश्य लोगों को अपनाने की हिंदी ओ की प्रेरणा फिर भी अंग्रेज सर कार ने कौमी निर्णय मुल्तवी रखा, इस लिए बीसवीं सदी में सितंबर से गांधीजी ने उपवास शुरू कर दिए, इस लिए उन्हें गुरुदेव रवींद्र टैगोर के साथ समग्र देश की शुभ कामनाएँ प्राप्त हुई, पूरे देश ने गांधीजी के स्वस्थ्य के लिए प्रार्थना की, उपवास के चार दिन बीत गए तो पूरे देश में हलचल मच गई, अस्पृश्य लोगों के सबसे अग्रणी नेता डॉ भीमराव अम्बेडकर थे, लोगों ने अम्बेडकर को समझाया कि जिद न करे, अस्पृश्य लोगों को अलग मानने की आपकी मांग छोड़ दो, ब्रिटिश सर कार आपकी मांग को लेकर ही गांधीजी और कौंग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं, बहुत समझाने के बाद अम्बेडकर मान गए, उन्होंने गांधीजी के साथ समझौता किया, यह समझौते को 'यर वडा पे कट' कहा गया, हिंदी नेता ओ की ऎसा समझौता हो जाने के बाद ब्रिटिश शासन के पास अस्पृश्य लोगों के अलग मंडल रचने का बहाना न बचा, इस लिए ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने तुरंत ही तार करके यह नियम रद किया, इस तरह पांच दिन के उपवास के बाद गांधीजी की एकात्मकता का विजय प्राप्त हुआ, उस दिनों में गांधीजी और अम्बेडकर बार बार मिले, उसके बाद अम्बेडकर और अन्य देश नेता ओ के साथ ही रहे, आजादी के बाद केन्द्र में मंत्री बने, और हिंद का स्वतंत्र संविधान बनाने के समय उन्होंने मुख्य रूप से भूमिका अदा की, उनके कारण संविधान में प्रगति शील नियम बन सके, इस ओर गांधीजी ने अस्पृश्यता के कलंक को दूर कर के अस्पृश्य मनाते लोगों को सम्पूर्ण नागरिक समानता दिलाने के लिए सतत प्रयत्न किए गए, इस के लिए तो उन्हें कुछ शास्त्रों का अध्ययन करना प़डा, कुछ हिंदू शास्त्री उनके पास दलील करने के लिए जाते थे, खास कर के महा राष्ट्र और मद्रास के शास्त्री अस्पृश्यता को बना रखने के लिए बहुत ही चुस्त थे, लेकिन गांधीजी की वक़ालत उस समय काम आई, फिर भी कुछ जड़ दलील के सामने हार जाते थे और शाम तक उनका शिर दुखने लगता था, 
गांधीजी की अस्पृश्य सेवा ओ ने विचित्र प्रकार की प्रति क्रिया को जन्म दिया है, कुछ द्वेषी ऎसा प्रचार करने लगे कि गांधीजी ने हरिजन - हरि जनों की लत लेकर देश की आजादी की लड़ाई को कमजोर बना दिया है! 
गांधीजी के आश्रम में एक एसी घटना बनी की आश्रम की शुद्धि के लिए गांधीजी को इक्कीस दिनों का उपवास करना प़डा, हम जानते हैं कि, गांधीजी की महात्मा के रूप में पहचान से बहुत सारे विदेशी भी उनके साथ रहना चाहते थे, मे डी लेने स लेड नामक महिला ने तो अपना नाम मीरा धारण कर के गांधीजी जब तक जिए तब तक हिंद मे ही रहे, दिन बंधु एन दूज की गांधी भक्ति जानी जाती है, लेकिन पश्चिम के कुछ लोग ने हिंद और हिंदी ओ का मतलब स्व इच्छा के अनुसार छूट, एसी एक महिला आश्रम में रहने के लिए आ गई थी, नीला देवी नाम धारण किया था, उसका स्वेच्छा चार इतना बढ़ गया था कि पूरे आश्रम में भय का माहौल बन गया, गांधीजी ने उस महिला को बहुत ही डाँटा उससे उनके आत्मा को शांति नहीं मिली, इस लिए उन्हों ने प्रथम तो इक्कीस दिनों के उपवास किए, आश्रम वासी ओ की चारित्र्य का ही मुद्दा उपवास में था नहीं की राजकीय, यह उपवास में से मुस्किल से वो बाहर निकले, तब उन्होंने एक अलग दूसरा निर्णय लिया, साबरमती आश्रम को बिखेर देने का, जिस आश्रम में नैतिकता न हो ऎसा आश्रम रखके क्या फायदा, एसी उनकी भावना थी, उन्होंने कहा कि अगस्त की पहली तारीख को मे और 32 आश्रम वासी जो शुद्धि की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं, हम सभी आश्रम छोड़ देंगे, हम पैदल खेड़ा जिले में स्थित बोर सद के पास रास गांव में जाएंगे और वहा से वो हरिजन लोगों का करेंगे, गांधीजी की पद यात्रा डांडी कूच जेसा परिणाम लाएगी ऎसे डर के कारण अंग्रेज सर कार ने गांधीजी की गिरफतार कर लिया, उन्हें यर वाड़ा जेल में ले गए, वहा उन पर केस चलाकर उन्हें एक साल की सजा दी गई, एसी सजा से गांधीजी डरते नहीं थे, लेकिन अगली साल 1932 को जिस जेल में बैठे बैठे हरिजन कार्य की छूट थी एसी छूट यहा नहीं मिलेगी, गांधीजी ने कहा कि हरिजन की सेवा तो मेरे लिए प्राण समान है, इस लिए वा इस रॉय ने जवाब भेजा कि यदि तुम्हें हरिजन सेवा प्राण समान हो तो वहीं काम करिए, उसके लिए आप को हम छोड़ दे लेकिन तुम्हें राजकीय काम नहीं करना हे, हिंद की स्वतन्त्रता की बात नहीं करने की, गांधीजी ऎसे दबाव में आए ऎसे नहीं थे, उन्हों ने तो फिर उपवास शुरू कर दिया, लोगों ने वाई स रॉय को समझाया कि गांधीजी को आप जेल में नहीं रख सकते हैं, उनकी सेवा प्रवुर्ती पर रोक नहीं लगा सकते हैं, लेकिन सर कार जिद मे आ गई, सभी लोगों को मना कर दिया, नेता ओ ने भी गांधीजी को समझाया कि उपवास छोड़ दो, आप जितने दिन जेल में होंगे उतने दिन हरिजन सेवा का काम हम करेंगे, गांधीजी ने कहा कि ब्रिटिश सर कार को मेरे काम मे दखल देने का कोई अधिकार नहीं है, जब तक मुजे कैद मे से नहीं छोड़ेंगे तब तक मेरे उपवास चालू रहेंगे, छह दिन के बाद गांधीजी बहुत ही बीमार हो गए, सर कार ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया, वहा कृत्रिम रूप से उन्हें खाना देने के लिए कोशिश किया किन्तु वो सफल नहीं हुए, अब अंग्रेज घबराए, कहीं ये मर जाएगा, यदि वो कैदी की हालत में मर जाये तो देश में दंगे फसाद चालू हो जाए उसकी चिंता होने लगी, अंत में लोगों के तार संदेश के कारण गांधीजी को मुक्त किया जाता है ऎसा दावा सर कार ने किया, सर कार ने उन्हें बिना किसी शर्त रिहा कर दिया, 23 अगस्त को वो कैद से मुक्त हुए, हरिजन सेवा में उन्हों ने पूरे जोश से काम करना शुरू किया, 
आज भी हिन्दू धर्म में लगा हुआ अस्पृश्यता का कलंक को ढ़ो देने के लिए ज्यादा लंबा लिखने की जरूरत नहीं है, इस के लिए महा सभा वादियों ने बहुत कुछ किया है, यह बात सच है लेकिन बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि, बहुत सारे महा सभा वादियों ने अस्पृश्यता निवारण को हिन्दू ओ को सम्बंध हे तब तक हिन्दू धर्म को जिंदा रखने के लिए जरूरी समझने के बजाय सिर्फ राजकीय जरूरी यात गिन सकते हैं, हिन्दू कांग्रेसी यह कार्य करने मे अपनी सफलता हे ऎसा मानकर उसे उठा ले तो सनातनी ओ के नाम से पहचाने जाते उनके धर्म बंधु पर आज तक जितना असर पड़ा है उसके अलावा ज्यादा असर पहुंचाकर उनका दिल पलट सकेंगे, सनातनी ओ के पास उन्हें लड़ने के लिए अपनी अहिंसा को स्पर्श करे एसी मित्र चारि की भावना से पहुचना चाहिए, खुद हरि जनों की बाबत मे तो यकायक हिन्दू ओ ने उनका अपना काम मानकर उन्हें मदद करना चाहिए, और उनके अलगाव मे उनकी साथ खड़ा रहना चाहिए अपने हिंदू भाई बहन को बाकी के हिन्दू ओ अपने से अलग रखते हैं, परिणाम स्वरुप उन्हें जो दर्द नाक और राक्षसी अलगाव सहना पड़ता है, उसकी जोड़ दुनिया में कहीं भी मिल सके ऎसा नहीं हे, यह कार्य कितना कठिन है हे वो मे अनुभव से जानता हूँ, स्वराज की इमारत खड़ी करने के लिए जो काम हम लेकर बैठे हैं उसका ही यह एक हिस्सा है, अलबता ये स्वराज तक पहुचने का रास्ता चढ़ने वाला और शंकु हे, उस रास्ते में बहुत सारे ढलान और गहरी खाई या हे, यह सभी ढलान और चढ़ने वाले रास्ते से शिखर तक जरा सा भी हिलने बिना स्थिरता से पहुचना चाहिए, 
अस्पृश्यता का अर्थ है किसी को स्पर्श करने से अपवित्र हो जाते हैं, एसी मान्यता है, अ खा भक्त ने कहा है कि, 'अस्पृश्यता अदा के रू अंग' वह हर जगह कहीं भी धर्म के नाम पर विघ्न डालते ही रहते हैं, और धर्म को कलंकित करते हैं, यदि आत्मा एक ही है, इश्वर एक ही है, तो अस्पृश्य कोई भी नहीं है, जिस तरह हरिजन को अस्पृश्य गिने जाते हैं वो भी अस्पृश्य नहीं है, उसी तरह मृत देह भी अस्पृश्य नहीं है, वो मान और करुणा के पात्र हैं, मृतक का शरीर का स्पर्श करके तेल लगाकर या हजामत कर के कराके स्नान करते हैं वो तो स्वस्थ्य के लिए, मृतक के शरीर को स्पर्श करके या तेल लगाकर स्नान नहीं करे वो चाहे गन्दा कहलाये, वो पापी नहीं है, वेसे तो माता चाहे बच्चे का मैला उठाने के बाद स्नान न करे, या हाथ पैर न धूए, तब तक अस्पृश्य होता है, लेकिन यदि बच्चा रमते रमते उसे स्पर्श करे तो वो अस्पृश्य नहीं होगा, उसका आत्मा मैला होगा, लेकिन वो तिरस्कार के रूप में वाल्मीकि, चमार या बुनकर के नाम से पहचाना जाता है, चाहे उसने हजार बार साबुन से अपना शरीर शुध्द पानी से स्नान करके साफ किया हो,, चाहे वह रोज गीता पाठ करता हो, लेखक हो तब भी वो अस्पृश्य गिना जाता है, ऎसे जो धर्म माना जाता है कि आचरण किया जाता है वो अधर्म हे और नाश के पात्र हैं, अस्पृश्यता हिन्दू धर्म में घुसा हुआ स डा हे, वहम हे, पाप हे, उसका निवारण करना हर हिन्दू का धर्म है, उसका परम कर्तव्य है, समझदारी से प्रत्येक हिन्दू ने अस्पृश्य मानते भाई बहन को अपनाना चाहिए, ऎसा गांधीजी ने मंगल प्रभात व्रत में कहा है,प्रेम से स्पर्श करके, उन्हें पावन मानकर अस्पृश्य के दुख दूर करना चाहिए, वर्षो से उन्हें कचड़ा है, उनके दोष दूर करने मे मदद करना चाहिए, अस्पृश्यता का कलंक पृथ्वी पर भार रूप बन गया है, इश्वर के नाम पर खुद को पूजते हो गए हैं, जीव मात्र को अपने मे नही देखेगा खुद को जीव मात्र मे डाल नहीं देगा तब तक शांत नहीं होगा, अस्पृश्यता दूर करना याने कि पूरे जगत के साथ मैत्री रखना उसका सेवक बनना, ऎसे अस्पृश्यता निवारण अहिंसा की जोड़ बन जाता है, अहिंसा याने कि प्रत्येक जीव के प्रति सम्पूर्ण प्रेम, अस्पृश्यता निवारण का यही अर्थ है, जीव मात्र के साथ भेद मिटाना, अस्पृश्यता का दोष जगत में कुछ अंश मे व्यापक हे, यहा हिन्दू धर्म में स डा के रूप मे सोचा है, क्यू की हिन्दू धर्म में धर्म का स्थान लिया है, धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों की स्थिति गुलाम जेसी बन गई है,, 1915 मे सत्याग्रह आश्रम की स्थापना हुई तब गांधीजी जब अहमदाबाद से पसार हुए तब कुछ मित्रों ने अहमदाबाद पसंद करने को कहा, और आश्रम का खर्च उन्होंने उठा ने का अवसर प्राप्त किया, मकान ढूंढ ने का भी उन्होंने कबूल किया, अहमदाबाद पर गांधीजी की नजर ठहरी थी वे गुजराती होने से गुजराती भाषा के द्वारा देश की ज्यादा से ज्यादा सेवा कर सकेंगे ऎसा मानते थे, अहमदाबाद पहले हाथ बुनाई का केंद्र होने से चरखे काम यहा बहुत अच्छी तरह हो सकेगा एसी भी मान्यता थी, गुजरात का राजधानी होने से यहा के अमीर लोग धन की ज्यादा मदद कर सकते हैं एसी आशा थी, अहमदाबाद के मित्रों के साथ संवाद मे अस्पृश्यता का प्रश्न की चर्चा हुई थी, गांधीजी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि, यदि कोई कोई अस्पृश्य भाई आश्रम में दाखिल होना चाहता है तो मे जरूर उन्हें आश्रम में दाख़िल करूंगा, एसी उच्च भावना के साथ आश्रम की स्थापना गांधीजी के द्वारा की गई है! ऎसे मानवता वादी युग पुरुष को कोटि कोटि वंदन,
-०-
डॉ गुलाब चंद पटेल
गाँधी नगर  (गुजरात)
-०-



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नई बात (लघुकथा) - महावीर उत्तराँचली

नई बात
(लघुकथा)
“काश! तुम लोगों ने मुझे इंसान ही रहने दिया होता, भगवान् नहीं समझा होता,” प्रभु विन्रम स्वर में बोले।
“प्रभु ऐसा क्यों कह रहे हैं? क्या हमसे कुछ अपराध बन पड़ा है?” सबसे करीब खड़े भक्त ने करवद्ध हो, व्याकुलता से कहा।
“अगर मै सच्चा इंसान बनने की कोशिश करता तो संभवत: भगवान् भी हो जाता,” प्रभु ने पुन: विन्रमता के साथ कहा।
“वाह प्रभु वाह।” आज आपने ‘नई बात’ कह दी,” भक्त श्रद्धा से नतमस्तक हो गया और वातावरण में चहुँ ओर प्रभु की जय-जयकार गूंजने लगी। भगवान् बनने की दिशा में वो एक कदम और आगे बढ़ गए।•••
पता: 
महावीर उत्तराँचली
दिल्ली
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हमारी शिक्षा व्यवस्था (कविता) - सत्यम भारती

हमारी शिक्षा व्यवस्था
(कविता)
हमारी शिक्षा व्यवस्था
हमसे यही चाहती-
रटो तोते की तरह
भागो घोड़े की तरह
सिलेबस ढ़ोओ गदहे की तरह
डिग्री इक्ट्ठा करो ऊंट की तरह
नौकरी के लिए भटको छछूंदर की तरह,
कहना तो नहीं चहता था
लेकिन कहता हूं-
अगर पाना चाहते हो सर्वसुख
तो दूम हिलाओ कुत्ते की तरह,
नाचो इशारे पर बंदर की तरह ।
-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
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