झालावाड़ (राजस्थान)
जैसे किसी गन्ने को चरखी में से चार बार गुजारने के बाद उसकी हालत होती है, या किसी भी पतरे की अलमारी को गोदरेज की अलमारी कहने की तर्ज पर पानी की हर बोतल को बिसलरी कहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा पूरी बोतल गटकने के बाद उसे मरोड़ मरोड़ कर जो हालत कर दी जाती है,या सैंकड़ो बार भट्टी पर चढ़ने के बाद कड़ाही के पैंदे की जो हालत होती है या अचानक हुई ओलावृष्टि के बाद खेतों में खड़ी फसल की दुर्दशा होती है, वही हालत आज कालू भिया की हो रही थी। सुबह का अखबार उनके लिए ऐसी खबर लाया था जिसका शीर्षक पढ़ कर ही उनका मूड़ खीज, उदासी सहित ग़म के सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। फिर भी हिम्मत जुटा कर उन्होंने पूरी खबर पढ़ी, जिसे पढ़ने के बाद उनका दिल ऐसा बैठा कि दोपहर 2:00 बजे तक उन्होंने चाय तो छोड़ो कुल्ला तक नहीं किया,मोबाइल पर कई काॅल आए पर एक भी रिसीव नहीं किया। पत्नी बच्चे हैरान-परेशान,चिंतित, आखिर हुआ क्या है? ना तो बुखार है ना खांसी-जुकाम हुआ है? कुल मिलाकर कोरोना का कोई लक्षण नहीं...! फिर यह स्थिति क्यों? कल रात को अच्छे भले चकहते लहकते घर आए थे, बच्चों से हंसी मजाक किया था, पत्नी से भी 'पतिवत' व्यवहार किया...! फिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो कालू भिया का पूरा अस्तित्व,व्यक्तित्व सुबह से किसी शव यात्रा या नेता का जुलूस गुजरने के बाद सड़क पर बिखरे फूलों पर से सैकड़ों वाहन गुजरने के बाद जैसा लग रहा था...!
कालू भिया का काम सिर्फ और सिर्फ समाजसेवा करने का ही था, जिसकी बदौलत उनके शहर में लगभग दस-बारह मकान थे, दो चार पहिया,पाँच दो पहिया वाहन सर्वसुविधा युक्त शानदार बंगले नुमा घर अलग, जिसमे वे सपरिवार रहते थे...! इसी समाजसेवा के अंतर्गत वे मात्र दस प्रतिशत के मामूली ब्याज पर जरूरतमंदों को पैसा मुहैया करवाते थे, जिसकी बदौलत लोग उन्हे अपने मकान, ज़मीन, दोपहिया, चार पहिया वाहन भी कभी-कभी सौंप जाते थे, लेकिन पिछले 15 दिनो से तो उन्होंने किसी को ब्याज के लिए अनुरोध भी नहीं किया था, बल्कि किसी ने आकर गुज़ारिश भी की, कि "वह अभी ब्याज नहीं दे पाएगा" तो उन्होंने बड़े प्यार से हँसते-हँसते उसको "कोई बात नहीं" कहकर ही विदा किया था। एकदम खिले खिले लग रहे थे अभी वे, यार दोस्तों,मोहल्ले वालों से खूब गपशप करते थे, दिन भर किसी न किसी बहाने सबकी सहायता करने के लिए उतावले प्रतीत होते थे। जरूरत से ज्यादा सामाजिक होते दिखने पर पत्नी ने एक-दो बार मजाक करते हुए पूछ भी लिया था "क्या बात है, आजकल कुछ ज्यादा ही समाज सेवा हो रही है, चुनाव लड़ने का इरादा है क्या?" कालू भिया हंस कर टाल देते थे, कोई जवाब नहीं देते थे। पर आज सुबह से अपने पति की ऐसी स्थिति देखकर पत्नी की चिंता बहुत बढ़ गई थी। बेटे से पूछा तो बेटे ने बताया कि सुबह अखबार पढ़ने के बाद से यह हालत है तब पत्नी ने पूरा अखबार कई बार गौर से देखा, यहां तक कि विज्ञापन तक पढ़ डाले, उन्हें कहीं कोई ऐसी खबर नहीं दिखी जिसका सीधा संबंध वह अपने पति से जोड़ सकें। न किसी सगे-संबंधी, जान-पहचान वाले के परलोक गमन की ना ही देश-विदेश में कोई प्राकृतिक आपदा की ख़बर थी, किसी बड़े आतंकी हमले को तो छोड़िए कहीं कोई गोली चलने तक का समाचार नहीं था। आखिर उसने जिद पकड़ ली वह कालू भिया के पीछे पड़ गई कि उन्होंने अखबार में ऐसा क्या पढ़ा जिससे उनकी हालत ऐसी हो गई ? आखिर कालू भिया को वह ख़बर बताना पड़ी जिसे पढ़कर उनकी यह हालत हुई थी। शीर्षक था- "नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव स्थगित, फरवरी के बाद होंगे।" कालू भिया ने पत्नी को बताया कि अभी कुछ दिन पहले चुनाव होने की खबर पढ़कर उन्होंने पार्षद का चुनाव लड़ने के लिए मोहल्ले में प्रचार अभियान भी चालू कर दिया था, दस-पंद्रह दिनो से पूरी तरह अपने आप को इस अभियान में झोंक दिया था और अब यह खबर... जिसने सब किए कराए पर पानी फेर दिया था।