(कविता)
हल लेकर निकल पड़े अन्नदाता
भविष्य की सोच लेकर विधाता |
हर मौसम को झेल कर,
एक-एक दाने समेट कर |
मौज मस्ती नहीं किया कभी
दिन रात मेहनत करते सही |
भोर उठ फसलों का दिया ग्यान,
हर वक़्त जपते हैं अनाज - धान |
गाय की विष्ठा की खुशबू पसीने के
गुस्ल समय बुआई की पहचान |
हर मौसम की रखता है जानकारी,
फिर भी भर जाते कीट आपतकारी |
धरती पुलक थिरकती है इसके मोह,
सुखद अहसास करते हैं इसके ही दाह |
नभ देख समय परखते हैं,
धूप की छाया देख घर चलते हैं |
सदा देश की सोच में बांध,
यही हैं देश के सूरज चाँद |
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