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Tuesday, 5 January 2021

अन्नदाता (कविता) - डॉ. मलकप्पा अलियास महेश

 

अन्नदाता
(कविता)
हल लेकर निकल पड़े अन्नदाता
भविष्य की सोच लेकर विधाता |

हर मौसम को झेल कर, 
एक-एक दाने समेट कर |

मौज मस्ती नहीं किया कभी
दिन रात मेहनत करते सही |

भोर उठ फसलों का दिया ग्यान,
हर वक़्त जपते हैं अनाज - धान |

गाय की विष्ठा की खुशबू पसीने के
गुस्ल समय बुआई की पहचान |

हर मौसम की रखता है जानकारी, 
फिर भी भर जाते कीट  आपतकारी |

धरती पुलक थिरकती है इसके मोह,
सुखद अहसास  करते हैं इसके ही दाह | 

नभ देख समय परखते हैं, 
धूप की छाया देख घर चलते हैं |

सदा देश की सोच में बांध, 
यही हैं देश के सूरज चाँद |
-०-
पता:
डॉ. मलकप्पा अलियास महेश
बेंगलूर (कर्नाटक)

-०-
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***
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