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Wednesday 30 October 2019

वजूद (कविता) - डॉ दलजीत कौर

वजूद 
(कविता) 
तुम पुरुष / तुम सभी कुछ
मैं औरत / मैं कुछ भी नहीं
तुम जन्मे /तुम्हारे अपने सब
मैं पराई / माँ -बाप के लिए
मैं गैर / सास -ससुर के लिए
मेरा घर / कहीं नहीं
मेरा अपना / कोई नहीं
तुम पुरुष / सार्री दुनिया तुम्हारी
मैं क्या ?
मेरा कुछ वजूद नहीं ?
पुरुष हो तुम / तो क्या ?
मैं कठपुतली तो नहीं |
बनाऊँगी मैं वजूद अपना
सच करुँगी हर सपना
तोडूंगी बाधाएँ
मैं कुछ कर दिखाउंगी
दुनिया में आगे निकलकर
नाम से / महान कहलाऊँगी
हर औरत की मैं
पहचान बन जाऊँगी
हाँ ! मैं औरत
मेरा भी वजूद है
मेरा वजूद है |
-०-
संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
2571 सेक्टर -40 सी, चंडीगढ़

-०-

***
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