
वजूद
(कविता)
तुम पुरुष / तुम सभी कुछ मैं औरत / मैं कुछ भी नहीं
तुम जन्मे /तुम्हारे अपने सब
मैं पराई / माँ -बाप के लिए
मैं गैर / सास -ससुर के लिए
मेरा घर / कहीं नहीं
मेरा अपना / कोई नहीं
तुम पुरुष / सार्री दुनिया तुम्हारी
मैं क्या ?
मेरा कुछ वजूद नहीं ?
पुरुष हो तुम / तो क्या ?
मैं कठपुतली तो नहीं |
बनाऊँगी मैं वजूद अपना
सच करुँगी हर सपना
तोडूंगी बाधाएँ
मैं कुछ कर दिखाउंगी
दुनिया में आगे निकलकर
नाम से / महान कहलाऊँगी
हर औरत की मैं
पहचान बन जाऊँगी
हाँ ! मैं औरत
मेरा भी वजूद है
मेरा वजूद है |
-०-
संपर्क
डॉ दलजीत कौर
2571 सेक्टर -40 सी, चंडीगढ़
2571 सेक्टर -40 सी, चंडीगढ़
-०-
No comments:
Post a Comment