*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Wednesday 30 October 2019

दीपावली की तीन कविताएँ (कविता) - डॉ अवधेश कुमार अवध


दीपावली की तीन कविताएँ (कविता)
1- 
दिवाली 
कोई तो हमको समझाये, होती कैसी दीवाली!
तेल नदारद दीया गायब, फटी जेब हरदम खाली।
हँसी नहीं बच्चों के मुख पर,चले सदा माँ की खाँसी।
बापू की आँखों के सपने, रोज चढ़ें शूली-फाँसी।
अभी दशहरा आकर बीता,सीता फिर भी लंका में।
रावण अब भी मरा नहीं है, क्या है राघव-डंका में!
गिरवी माता का कंगन है, बंधक पत्नी की बाली।
कोई तो हमको .................!
राशन पर सरकारें बनतीं, मत बिकते हैं हाटों में।
संसद की हम बात करें क्या, तन्त्र बँटा है भाटों में।
ईद गई बकरीद गई औ, तीन तलाक बना मुद्दा।
सवा अरब की आबादी, पर लावारिस दादी दद्दा।
मिडिया का कुछ हाल न पूछो,लगे हमें माँ की गाली।
कोई तो हमको..................!
अगर मान लो बात हमारी, दिल को दीप बना डालो।
सत्य धर्म ममता निष्ठा को, मीठा तेल बना डालो।
नाते रिश्तों की बाती में, स्वाभिमान-पावक भर दो।
जग में उजियारा फैलाये, ऐसी दीवाली कर दो।
ऐसे दीप जलायें मिलकर, कहीं न हों रातें काली।
कोई तो हमको..................!

2-
दीपोत्सव

सी जगह पर दीप जले अरु कहीं अँधेरी रातें हों ।
नहीं दिवाली पूर्ण बनेगी, अगर भेद की बातें हों ।।
ऐसे व्यंजन नहीं चाहिए, हक हो जिसमें औरों का ।
ऐसी नीति महानाशक है, नाश करे जो गैरों का ।।
हम तो पंचशील अनुयायी, सबके सुख में जीते हैं ।
अगर प्रेम से मिले जहर भी, हँस करके ही पीेते हैं ।।
चूल्हा जले पड़ोसी के घर, तब हम मोद मनाते हैं ।
श्मशान तक कंधा देकर, अन्तिम साथ निभाते हैं ।।
किन्तु चोट हो स्वाभिमान पर,जिन्दा कभी ना छोड़ेंगे ।
दीप जलाकर किया उजाला, राख बनाकर छोड़ेंगे ।।
दीपोत्सव का मतलब तो यह,सबके घर खुशहाली हो ।
दीन दुखी निर्बल के घर भी, भूख मिटाती थाली हो ।।
प्रथम दीप के प्रथम रश्मि की,कसम सभी जन खाएँगे।
दीप जलाकर सबके घर में, अपना दीप जलायेंगे ।।
घर घर में जयकारा गूँजे, कण कण में खुशहाली हो ।
सच्चे अर्थों में उस दिन ही, दीपक पर्व दिवाली हो ।।

3-
दीपों का बलिदान याद हो

जब मन में अज्ञान भरा हो,
अंधकार अभिमान भरा हो,
मानव से मानव डरता हो,
दिवा स्वप्न देखा करता हो,
गलत राह मन को भाती हो,
मानवता खुद शर्माती हो,
धर्म कर्म अभियान याद हो ।
दीपों का बलिदान याद हो ।।
सबके घर में उजियारा हो,
सर्वे सुखिन: का नारा हो,
जीने का अधिकार मिला हो,
सदाबहारी फूल खिला हो,
हर मुख के पास निवाला हो,
पढ़ने को बेहतर शाला हो,
भारत का गुणगान याद हो ।
दीपों का बलिदान याद हो ।।
पूर्वज की दिल में गाथा हो,
शर्म - शील उन्नत माथा हो,
उड़ने की चाहत मन में हो,
सारा भूमंडल परिजन हो,
नशा मुक्त मानव समाज हो,
नवल नवोदित सा सुराज हो,
न्यायोचित बुनियाद याद हो ।
दीपों का बलिदान याद हो ।।
-०-
डॉ अवधेश कुमार अवध
मैक्स सीमेंट (प्लांट), चौथी मंजिल, एल बी प्लाजा जी एस रोड, भंगागढ़
गुवाहाटी-781005 (असम)
-०-


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

1 comment:

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ