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Saturday 21 December 2019

रफ़्तार (कहानी) - मोनिका शर्मा

रफ़्तार
(कहानी)
आर्यन कक्षा 10 में गया ही था कि वह रोज मां से जिद करता, मां मुझे एक्टिवा की चाबी दे दो मुझे चलाना है।
मां ने समझाया अभी तो भारतीय संविधान ने भी तुम्हें एक्टिवा हाथ में लेने के लिए नहीं कहा है ।
पहले इतने बड़े तो हो जाओ कि तुम एक्टिवा चला सको ।
आर्यन ने बोला "मां स्कूल के सारे लड़के एक्टिवा चलाते हैं एक तुम ही हो जो मुझे हमेशा मना करती रहती हो"।
मां को हमेशा डर रहता कि कहीं आर्यन ओर लड़कों की तरह एक्टिवा हाथ में आते ही रफ्तार ना पकड़ ले ।
उसने खुले शब्दों में आर्यन को कहा था 18 साल के होने के बाद तुम एक्टिवा क्या बुलेट ले लेना लेकिन अभी नहीं।
एक दिन की बात है मां को किसी रिश्तेदार के घर नोएडा जाना था उसने आर्यन को कहा "आर्यन रिक्शे के पैसे ले लो तुम कल ट्यूशन खुद ही चले जाना ,मुझे बुआ जी के घर नोएडा जाना है।
ठीक है मां मैं चला जाऊंगा आर्यन ने कहा ।
अगले दिन मां नोएडा चली गई।
आर्यन स्कूल से आकर ,खाना खाकर ट्यूशन के लिए तैयार हुआ ।
उसकी नजर मेज पर पड़ी एक्टिवा की चाबी पर पड़ी । उसका मन ललचाया,उसने एक्टिवा की चाबी उठाई और सोचा मां को कहां पता चलेगा कि मैंने एक्टिवा चलाई है।
चुपचाप लाकर खड़ा कर दूंगा।
उसने एक्टिवा स्टार्ट की और निकल पड़ा घूमने के लिए। उस दिन आर्यन ट्यूशन नहीं गया।
उसने सोचा कि आज दोस्तों के साथ सैर सपाटा करता हूं ,मां को पता ही नहीं चलेगा ।
‌उसने अपने दोस्तों को फोन करके बुलाया।
सब ने आनंद बेकरी पर मिलने की सोची।
आर्यन जब स्कूटी चला रहा था तो स्कूटी की रफ्तार हवा से बातें करती , पीछे बैठा अमित उसको बार-बार कहता," थोड़ा धीरे चला अभी तू कच्चा है कहीं गिर ना जाए", अपने हाथ पैर भी तोडे़गाऔर मेरे भी "।
आर्यन बोला "अरे कुछ नहीं होगा डरपोक कहीं का "।
उसने पीछे मुडकर यह बात कही थी कि अचानक उसके सामने एक कार आ गई और धड़ाम से आवाज आई दोनों कार के नीचे थे आर्यन और अमित लहूलुहान थे। दोनों बेहोश हो गए थे। आसपास के लोगों ने मिलकर दोनों को अस्पताल पहुंचाया ।
अमित को 3 फ्रैक्चर आए थे ।आर्यन जोकि मौत और जिंदगी से लड़ रहा था । मां ने जब आयन का फोन किया तो किसी ने बताया कि आपका बेटा अस्पताल में एडमिट है उसका एक्सीडेंट हुआ है ।
मां के तो जैसे होश उड़ गए, मां जैसे तैसे नोएडा से दिल्ली आती है ।
बताए पते पर अस्पताल पहुंचकर उसने जब आर्यन और अमित को देखा तो अपने आप से यही सोचती रही कि जिस बात का डर था आज वही हो गया, मैं आर्यन को बार-बार समझाती थी कि यह तेज रफ्तार सही नहीं । पता नहीं आज के नवयुवक क्यों नहीं मां-बाप की बात समझते ।
रह रह कर रोती रही अमित की मां आर्यन को बार-बार कोस रही थी कि आर्यन ने ही अमित को फोन करके बुलाया था घूमने के लिए।
आर्यन की मां के पास रोने के अलावा कुछ नहीं था ।
थोड़ी देर में डॉक्टरों ने जवाब दे दिया मस्तिष्क में अंदरूनी खून बहने के कारण आर्यन की मौत हो गई ।
आर्यन के मां बाप बार-बार इसी बात के लिए तड़पते रहे कि क्यों उनका बेटा एक्टिवा लेकर निकला ?क्यों उसने तेज रफ्तार पकड़ी ?
आज की युवा पीढ़ी क्यों अपने मां-बाप की बातों को अनदेखा कर देती है?
यह एक शाप बन के के बन के के रह गया उनकी जिंदगी पर।
-०-
पता:
मोनिका शर्मा
गुरूग्राम (हरियाणा)

-०-

***
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20 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. Nice msg. Today's generation must understand this

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  3. अति उत्तम।।
    बिल्कुल सही कहा आज की युवा पीढ़ी रफ्तार को अहम मानकर अपने मां बाप को अनसुना करती है।
    ऐसी रचनाएं लिखते रहो और देश को जागरूक करते रहो ।

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  4. bahut sunder vaykhya aaj ki pidhi ki

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  5. sunder likha hai monika ji apne

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  6. didi hum sab k liye bahut acha likha aapne

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  7. bahut he sunder udharan uvwa pidhi k liye

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  8. बिल्कुल सही बात है

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  9. Nice story with a good message. Keep up the spirit. 👍👍😘

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  10. एक अच्छी कहानी,साधुवाद...
    चित्रण बहुत सुंदर,
    अपरिपक्व बच्चों के लिए बड़ी सीख..
    अजय वर्मा

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