शिव कुमार 'दीपक' की कुण्डलिया
(कुंडली)
(दिनांक ११ दिसंबर २०१९ की पोस्ट से क्रमश ..)
सोतीं भूखी आज भी, कई करोड़ों जान ।
मगर उन्हीं के पास है, बचा हुआ ईमान ।।
बचा हुआ ईमान, और सब कुछ खोया है ।
मेहनतकश इंसान , गरीबी में रोया है ।।
संसद में भरपेट , भूख पर चर्चा होतीं ।
'दीपक' फिर भी देख,जिंदगी भूखी सोतीं ।।-8
रोटी कपड़ा हो न हो, ना हो भले मकान ।
खड़े धर्म के नाम पर, बंदूकों को तान ।।
बंदूकों को तान, विरुद्ध खड़े भारत के ।
गंवा रहे हैं जान, ख्वाब पाले जन्नत के ।।
'दीपक' पाकिस्तान,चल रहा चालें खोटी ।
बांट रहा बंदूक, नहीं खाने को रोटी ।।-9
हारा वह जिसके यहां ,था कोई गद्दार ।
घर के भेदी ने किए, घर के बंटाढार ।।
घर के बंटाढार , किए घर के लोगों ने ।
दिए उन्हींने भेद, सहे अन्याय जिन्होंने ।।
'दीपक' खुफिया तंत्र,जहां चौकस था सारा ।
साक्षी है इतिहास, कभी वह जंग ना हारा ।।-10
सुंदर हो मधु गंध हो,खींचे सबका ध्यान ।
माली ऐसे फूल को , देता है सम्मान ।।
देता है सम्मान, योग्यता को कोई भी ।
शोभा बनते फूल, मूर्ति मंडप अर्थी की ।।
देगा 'दीपक' छोड़ ,फूल में अगर कसर हो ।
चुना गया वह फूल , गंध जिसकी सुंदर हो।।-11
लंकापति को आज तक, मार न पाए राम ।
उठा-उठा सिर दीखता, यहां वहां हर ठाम ।।
यहां वहां हर ठाम , रूप रावण के दिखते ।
कवि लेखक हर वर्ष,जल गया रावण, लिखते ।।
'दीपक' बारंबार , यही होती है शंका ।
किस रावण को मार, राम ने जीती लंका ।।-12
मानवता रोती रही, सहे नियति के डंक ।
पलता रहा समाज में, अनाचार आतंक ।।
अनाचार आतंक , बढ़ा तब लोग लड़े हैं ।
अब भी उनका जोश, हौसले बढ़े चढ़े हैं ।।
दीपक अपने पास, करो पैदा वह क्षमता ।
डर का होवे अंत, फले फूले मानवता ।।-13
पाले थे क्यों आपने, आस्तीन के सांप ।
काट लिया तो आपकी, रूह गई है कांप ।।
रूह गई है कांप, डरे हो , पछताते हो ।
पालोगे अब श्वान, हमें क्यों बतलाते हो ।।
'दीपक' होते ठीक, श्वान फिर भी रखवाले ।
सहता है खुद डंक, सांप जिसने हों पाले ।।-14
माटी का दीपक बना, बाती जिसके प्राण ।
स्नेह जल रहा उम्र का,लौ जिसकी मुस्कान ।।
लौ जिसकी मुस्कान,सुखद आलोक लुटाती ।
खर्च रही है कोष, सांस हर आती जाती ।।
दीपक ही है श्रेष्ठ, दीप्ति जिसकी परिपाटी ।
प्रतिफल दिव्यप्रकाश, शेष है, सो है माटी ।।-15
काट लिया तो आपकी, रूह गई है कांप ।।
रूह गई है कांप, डरे हो , पछताते हो ।
पालोगे अब श्वान, हमें क्यों बतलाते हो ।।
'दीपक' होते ठीक, श्वान फिर भी रखवाले ।
सहता है खुद डंक, सांप जिसने हों पाले ।।-14
माटी का दीपक बना, बाती जिसके प्राण ।
स्नेह जल रहा उम्र का,लौ जिसकी मुस्कान ।।
लौ जिसकी मुस्कान,सुखद आलोक लुटाती ।
खर्च रही है कोष, सांस हर आती जाती ।।
दीपक ही है श्रेष्ठ, दीप्ति जिसकी परिपाटी ।
प्रतिफल दिव्यप्रकाश, शेष है, सो है माटी ।।-15
-०-
शिव कुमार 'दीपक'
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
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शिव कुमार 'दीपक'
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
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मान्यवर,कुंडलिया प्रकाशित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
ReplyDeleteअति सुंदर
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