आजादी के दीवानों का
(कविता)
आजादी के दीवानों का,
नाम सुनहरा हो गया।
त्याग,बलिदान की मूरत,
का रंग गहरा हो गया।
जब जब दुश्मन आंख दिखाएं
खून खौलने लगता है।
भूल के सबकुछ,इन्कलाब फिर,
सर बोलने लगता है।
मिला है जब से रंग बसंती
रंग लहू का गहरा हो गया ।
आन वतन की,शान वतन की,
हमें जान से प्यारी हैं।
जो काम न आए इस वतन के,
तो जीना भी गद्दारी है।
इंकलाब की शमां से रोशन
दिल सहरा-सहरा हो गया ।
सरफ़रोशी चिंगारी को ,
शोला बनाएं रखना है
दुश्मन है गद्दार बहुत,
खुदको जगाए रखना है
गुज़रे क्षण में मिलें धोखों
से,जख्म गहरा हो गया हैं।
आजादी की राहों में ,
तन मन धन की बारी है।
तेरा तुझको अर्पण हैं ,
अपनानी समझदारी है।
जो सुनके दिलकी,अंजान
बने,सच में बहरा हो गया।
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