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Wednesday, 23 December 2020

आजादी के दीवानों का (कविता) - अनवर हुसैन

   

आजादी के दीवानों का
(कविता)
आजादी के दीवानों का,
नाम सुनहरा हो गया।
त्याग,बलिदान की मूरत,
का रंग गहरा हो गया।
जब जब दुश्मन आंख दिखाएं
खून खौलने लगता है।
भूल के सबकुछ,इन्कलाब फिर,
सर  बोलने  लगता है।
मिला है जब से रंग बसंती
रंग लहू का गहरा हो गया ।
आन वतन की,शान वतन की,
हमें जान से  प्यारी हैं।
जो काम न आए  इस वतन के,
तो जीना भी गद्दारी है।
इंकलाब की शमां से रोशन
दिल सहरा-सहरा हो गया ।
सरफ़रोशी चिंगारी को ,
शोला  बनाएं  रखना है
दुश्मन  है  गद्दार  बहुत,
खुदको जगाए रखना है
गुज़रे क्षण में मिलें धोखों
से,जख्म गहरा हो गया हैं।
आजादी  की  राहों  में ,
तन मन धन की बारी है।
तेरा  तुझको अर्पण हैं ,
अपनानी समझदारी  है।
जो सुनके दिलकी,अंजान
बने,सच में बहरा हो गया।

-०-
पता :- 
अनवर हुसैन 
अजमेर (राजस्थान)

***
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*दिल की बातें* (कविता) - लक्ष्मी बाकेलाल यादव

 

*दिल की बातें*
(कविता)
कैसी कश्मकश में है ये जिंदगी तू ,

ना किसी की चाहत, ना किसी की आरजू
ना कोई अपना लगता, ना बेगाना

कुछ मिले तो खुशी ना मिले तो गम
ऐसे अंदाज में ही जी रहें हैं हम

मन में तूफानों का सैलाब है
फिर भी लबों पर इक हसीन मुस्कान है

कोई मिन्नते करता,कोई दर-दर भटकता
कोई महलों में रहकर भी सारी रात है जगता

किसी की ख्वाहिश मरते दम तक ना होती पूरी
तो कोई किस्मत को ही समझ बैठता अपनी मजबूरी

लाखों की भीड़ में कोई रहता अकेला
तो किसी अकेले के लिए लगता हजारों का यहाँ मेला

कहीं ईमानदारी महँगी पड़ती
तो कहीं रिश्वतखोरों के लिए ताली है बजती

गरीबों का खून है चूसा जाता
अमीरी का गुण यहाँ हर कोई गाता

मासूम सी कलियों को रौंदा जाता
दरिंदो का अब यहाँ ताँता है लगता

शिक्षा का अब व्यापार चल रहा
पढ़-लिख युवा बेकार है पड़ा

अंधविश्वासों की झड़ी सी है लगी
मानवता की पल-पल बली चढ़ रही

अंधकारमय जग है ये हो रहा 
पता नहीं कब कौन चल पड़ा ...।
***
पता:
लक्ष्मी बाकेलाल यादव
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-



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तेरा मुस्कराना (ग़ज़ल) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

 

तेरा मुस्कराना
(ग़ज़ल)
गिराता है बिजली,तेरा मुस्कराना,
करे गत है दिल की,तेरा मुस्कराना।

क़यामत है आती,तेरा देखना यूँ,
ज़रूरत न छल की,तेरा मुस्कराना।

गुलाबों की खुशबूू,लगे रातरानी,
दिल की कसक की,तेरा मुस्कराना।

है यमुना की नहरें,है गंगा की कल-कल,
है निर्मलता जल की,तेरा मुस्कराना।

है सुलझी पहेली,किंचिंत जटिल ना,
ज़रूरत ना हल की,तेरा मुस्काराना।

है मंगल,मधुरता,मानस-चौपाई,
घड़ी है सुफल की,तेरा मुस्कराना

तूफान ला दे,ला दे जलजला जो,
ख़बर ना है कल की,तेरा मुस्कराना।

मीरा की भक्ति,कबिरा की वाणी,
यादें भजन की,तेरा मुस्कराना।

मुहब्बत की बातें करता है मानो,
दावत पहल की,तेरा मुस्कराना।

लूटे 'शरद' को बिना कट्टा,चाकू,
ज़रूरत क्या बल की,तेरा मुस्कराना।
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
-०-


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'मान लो पापा जी का कहना' (कविता) - रजनीश मिश्र 'दीपक'

  

'मान लो पापा जी का कहना'
(कविता)
                     
बेटा जी तुम मान लो पापा जी का कहना।                    
यूँ गलती करते रहकर मुश्किल है खुश रहना।                
पापा मम्मी से हैं प्यारे,तुमको लगते हैं जो न्यारे।              
उनके जिम्मे भार सारे,उनका जिम्मा तुम्हें सँवारें।            
वह करते हैं कितने निबटारे,                                        
पर कितने कार्यों से अभी भी हारे।                               
खेल उन्हें भी लगते हैं प्यारे,
पर अब वह कैसे बाजी मारें।  
बाबा दादी सब उनके सहारे,                                        
ये जिम्मेदारियां वह कैसे टारें।                                     
हर दम उन्हें चिंताएं सतातीं,                                     
कैसे लाएं चीजें जो तुम्हें भातीं।                                   
घर, कपड़े, सब्जी, राशन की, 
रहती  हरदम जेब में पाती।  
परेशान हो जाते पापा,जब भी किसी को बीमारी आती।  
उनका हाथ बँटाने को,उनका सपना सजाने को।              
उनका मान बढ़ाने को, जग में नाम कमाने को।                
तुम्हें राजा बेटा है बनना, 
खूब मन लगाकर है पढ़ना।        
मेहनत का ज्ञान दीप जलाकर, 
जग उजियारा है करना।
-०-

पता 

रजनीश मिश्र 'दीपक'
शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)

-०-



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किसान की व्यथा कथा (कविता) - राजेश तिवारी 'मक्खन'

  

किसान की व्यथा कथा 
(कविता)
आसमान से ओले आते देख आख भर आयी ।
बने विधाता बाम कृषक  ने कैसी किस्मत पायी ।।

कर परिश्रम्य असीम खेत में बीज कृषक ने बोया ।
चाय हो गया श्याम घाम से रात नींद अति सोया ।।
जमा बीज जब देख रेख हुआ हृदय हरषायी  ।।-.--.--.--.--.--.-१

नींद गुडाई करी कुटुम्ब संग ,सीच सीच  श्रम भारी ।
किया कलेऊ बैठ कदम्ब तर ,जल  भर लायी नारी।।
किया हास परिहास विगत श्रम , हाथ कुदाल उठायी ।।-.--.--.--.--.--.-२

लगा के बारी कर रखवारी बीत विभावरी जाती   ।
रोज रोज और नील गाय के कारन नीद न आती   ।।
मेङन मेङन करत रतजगा , गावत फाग दिवायी ।।-.--.--.--.--.--.--.-३

खेत लहलहा देख कृषक तब मन में है हरषाता  ।
बरष जाहि में ब्याह बिटू को लगता करत विधाता ।।
कंगन कर्ज में रखे कबैके , अबके लेहु उठायी   ।।-.--.--.--.--.--.--.--.--.-४

घटा घिरी घनघोर  चहु दिश गया हृदय घबरायी ।
सोचा क्या क्या आज परभू जी  कैसी विपदा आयी ।।
दौङा दौङा गया खेत पर गिरा भूमि  भररायी ।।-.--.--.--.--.--.--५

आसमान से ओले आते देख आख भर आयी ।ओ
फसल नष्ट सी देख दुर्दशा  हारा हिम्मत भायी ।।
चढ बबूल पर वाही दिन को फासी गले लगायी ।।-.--.--.६

प्यारे ऐसा न करते तुम , मेहनत मजदूरी करते ।
पीले हाथ अपनी बिटिया के, सम्मेलन में करते ।।
सोची समझी नहीं सजन ने , आफद द ई बङायी ।।
बने विधाता बाम कृषक ने,कैसी किस्मत पायी ।।.......॥॥.७
-०-
पता:
राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी  (उत्तरप्रदेश)

-०-

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