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Wednesday, 23 December 2020

'मान लो पापा जी का कहना' (कविता) - रजनीश मिश्र 'दीपक'

  

'मान लो पापा जी का कहना'
(कविता)
                     
बेटा जी तुम मान लो पापा जी का कहना।                    
यूँ गलती करते रहकर मुश्किल है खुश रहना।                
पापा मम्मी से हैं प्यारे,तुमको लगते हैं जो न्यारे।              
उनके जिम्मे भार सारे,उनका जिम्मा तुम्हें सँवारें।            
वह करते हैं कितने निबटारे,                                        
पर कितने कार्यों से अभी भी हारे।                               
खेल उन्हें भी लगते हैं प्यारे,
पर अब वह कैसे बाजी मारें।  
बाबा दादी सब उनके सहारे,                                        
ये जिम्मेदारियां वह कैसे टारें।                                     
हर दम उन्हें चिंताएं सतातीं,                                     
कैसे लाएं चीजें जो तुम्हें भातीं।                                   
घर, कपड़े, सब्जी, राशन की, 
रहती  हरदम जेब में पाती।  
परेशान हो जाते पापा,जब भी किसी को बीमारी आती।  
उनका हाथ बँटाने को,उनका सपना सजाने को।              
उनका मान बढ़ाने को, जग में नाम कमाने को।                
तुम्हें राजा बेटा है बनना, 
खूब मन लगाकर है पढ़ना।        
मेहनत का ज्ञान दीप जलाकर, 
जग उजियारा है करना।
-०-

पता 

रजनीश मिश्र 'दीपक'
शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)

-०-



***
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