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Tuesday 3 March 2020

पायल (कविता) - आनंद प्रकश जैन


पायल
(कविता)
बचपन से ही
करती आ रही है सबको ये घायल,
पायल
कभी पावों में छन छन करके,
कभी नारी की शोभा बनके,
सब का मन हरती आ रही है ये,
पायल
कभी किसी तिज़ोरी में छुपके छुपके ,
कभी किसी अलमारी में दुबके,
सब पर हुकुम चला रही है ये,
पायल
कभी धन को सखी बनाकर,
कभी मूल्य आसमान चढ़ाकर,
सबका मान पा रहीं है ये,
पायल
कभी चांदनी के रंग में आकर,
कभी स्वर्ण का लेप चढ़ाकर,
संपन्नता कि सूचक बन रहीं है ये,
पायल
कभी आगमन का आभास कराकर,
कभी सौंदर्य का रूपक कहलाकर,
हर नारी की सहचर बन रहीं है ये,
पायल
कभी ख़ुद में घुंघरू लगाकर,
कभी भिन्न भिन्न नगीने जड़ाकर,
मन मोहिनी बन रहीं है ये,
पायल
-०-
पता:
आनंद प्रकश जैन
चित्तौड़गढ़
-०-

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★सच कहूँ, हाँ! एक पिता है वो★ (कविता) - अमन न्याती

★सच कहूँ, हाँ! एक पिता है वो★ 
(कविता)
प्यास बुझाता इक़ दरिया,
राहगीर की मंजिल का इक़ जरिया है वो,
मानो ना मानो इस जहाँ में इक़ खुदा है वो,
सच कहूँ..!!  हाँ एक पिता है वो।।

एक चिन्ता जो उसे हर दम सताती है,
बयाँ ना भी करे ,आंखे बताती है।
अपने टुकड़े को हरदम महफूज रखता है वो,
बस इसी कशमकश खुदा से भी लड़ पड़ता है वो,
सच कहता हूँ यार ..!! हाँ एक पिता ही है वो।।

इक़ रिश्ता उनसे कुछ खास है,
अनोखी सी उनमे इक़ बात है,
शायद तुम्हे पता नही खुदा है वो,
या फिर सच कहूँ.!!
तो उस खुदा से भी बढ़कर एक पिता है वो।।
-०-
पता :
अमन न्याती
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

-०-

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गाय (व्यंग्य) - राम नारायण साहू 'राज'


गाय
(व्यंग्य)
हे कृष्ण कन्हैया, आजकल आप कहाँ हो।
जहाँ गाय रहती है, क्या आप वहाँ हो।।
मैं उन्ही गायों की बात कर हू, जिसका माखन आप चुराते थे।
माता के आने से पहले, पूरा माखन खा जाते थे ।।
लेकिन हे कृष्ण भगवान, आज के गायों की हालत बहुत ही बदतर है।
अब इनका कोई नहीं, देखकर ऐसा लगता है।।
अब तो जहाँ गाय होती, वो भी बाटी जाती है।
बाटने के चक्कर में , वो भी काटी जाती है।।
हे भगवान तेरे रहते अब क्या क्या हो रहा है।
गाय रास्ते में, और कुत्ता अब मखवल में सो रहा है।।
इंसान अब इंसान नहीं रहा, शैतान हो गया है।
हद से ज्यादा बेईमानो का बेईमान हो गया है।।
कभी गाय घर के अंदर हुआ करती थी रात में।
अब कुत्तो को लोग, खूब चूमते है बात बात में।।
कभी गाड़ी के ठोकरों से, कभी भूखी गाय मर जाती है।
रास्ते में ही रहकर, जिंदगी गुजार जाती है।।
ये पापी इंसान, गाय को 32 हजार देवी देवताओं का वास मानता है ।
घर में गाय का फोटो लगाकर, पूजा करना जनता है। ।
लेकिन गाय कभी घर आई तो, कुछ भी नहीं खिलाता है।
ऊपर से इनको डंडे चार लगाता हैं।।
आखरी में गाय, पन्नी खाकर मर जाती है।
पेट भरने के चक्कर में, जाने क्या कर जाती है।।
बड़े दुःख की बात है, जिस देश में गाय को माँ सामान मानते है।
उसके दूध दही और घी को खाना जानते है।।
देख लो तुम भी कभी जाकर, वो गाय आज रो रही है,
अपने बछड़े के साथ रोड किनारे सो रही है।
हे कृष्ण भगवान एक बार धरती में फिर से आओ।
अपनी पूरी गायों को, जल्दी से ले जाओ।।
इनका दुःख देखा नहीं जाता ,अब गायो का स्थान नहीं है।
सतयुग में माँ कहलाती थी, कलयुग में सम्मान नहीं हैं।।
हों सके तो कृष्ण के आते तक,गायो सम्हाल लो।-०-
राम नारायण साहू 'राज'
रायपुर (छत्तीसगढ़)

-०-



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चंदा के पार (कविता) - दीपिका कटरे

चंदा के पार
(कविता)
सुन - सुन, सुन - सुन,
सुन मेरे यार ,
आजा ले चलूँ मैं,
तुझे चंदा के पार।

चंदा के पार है,
एक नया संसार,
वहीँ पैं, उगेगा,
एक नया भैंसार।
वहीँ पैं करेंगे,
दिल खोलकर प्यार।

सुन - सुन ,सुन-सुन,
सुन मेरे यार।
आजा ले चलूँ मैं,
तुझे चंदा के पार।

तेरी बाँहो आकर,
बिखर जाऊँगी।
धीरे से यूँ मैं ,
सिमट जाऊँगी।
अंग अंग से मैं ,
लिपट जाऊँगी।

मैं मिट्टी,
तु बन कुम्हार।
दे - दे मुझे कोई ,
तु नया आकार।

सुन -सुन ,सुन-सुन,
सुन मेरे यार।
आजा ले चलूँ मैं,
तुझे चंदा के पार।

मैं बिजली ,
तु घट बन जा।
मेरी जुल्फों की ,
तु लट बन जा।
सँवारु तुझको,
सुबह और शाम।
आजा ले चलूँ मैं,
तुझे चंदा के पार।

सुन-सुन , सुन-सुन ,
सुन मेरे यार ।
आजा ले चलूँ मैं,
तुझे चंदा के पार।
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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★ कर्ज़ ★ (कविता) - अलका 'सोनी'

★ कर्ज़ ★
(कविता)
मां की ममता का बेटा
कर्ज़ चुका क्या पाएगा

रखा था जैसे मां ने
क्या उसको वो रख पाएगा

मां ने तो अपनी रोटी बांटी
कितनी रातों की नींदें छोड़ी

बेटों ने दो रोटी की खातिर
उसको ठोकर खाने छोड़ी

जिसने जन्म दिया है तुमको
एहसान उसका न लौटा पाएगा

मां के लहू का कोई बेटा
कर्ज़ न कभी चुका पाएगा।
-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

-०-

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