पायल
(कविता)
बचपन से ही
करती आ रही है सबको ये घायल,
पायल
कभी पावों में छन छन करके,
कभी नारी की शोभा बनके,
सब का मन हरती आ रही है ये,
पायल
कभी किसी तिज़ोरी में छुपके छुपके ,
कभी किसी अलमारी में दुबके,
सब पर हुकुम चला रही है ये,
पायल
कभी धन को सखी बनाकर,
कभी मूल्य आसमान चढ़ाकर,
सबका मान पा रहीं है ये,
पायल
कभी चांदनी के रंग में आकर,
कभी स्वर्ण का लेप चढ़ाकर,
संपन्नता कि सूचक बन रहीं है ये,
पायल
कभी आगमन का आभास कराकर,
कभी सौंदर्य का रूपक कहलाकर,
हर नारी की सहचर बन रहीं है ये,
पायल
कभी ख़ुद में घुंघरू लगाकर,
कभी भिन्न भिन्न नगीने जड़ाकर,
मन मोहिनी बन रहीं है ये,
पायल
बचपन से ही
करती आ रही है सबको ये घायल,
पायल
कभी पावों में छन छन करके,
कभी नारी की शोभा बनके,
सब का मन हरती आ रही है ये,
पायल
कभी किसी तिज़ोरी में छुपके छुपके ,
कभी किसी अलमारी में दुबके,
सब पर हुकुम चला रही है ये,
पायल
कभी धन को सखी बनाकर,
कभी मूल्य आसमान चढ़ाकर,
सबका मान पा रहीं है ये,
पायल
कभी चांदनी के रंग में आकर,
कभी स्वर्ण का लेप चढ़ाकर,
संपन्नता कि सूचक बन रहीं है ये,
पायल
कभी आगमन का आभास कराकर,
कभी सौंदर्य का रूपक कहलाकर,
हर नारी की सहचर बन रहीं है ये,
पायल
कभी ख़ुद में घुंघरू लगाकर,
कभी भिन्न भिन्न नगीने जड़ाकर,
मन मोहिनी बन रहीं है ये,
पायल
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पता:
आनंद प्रकश जैन
चित्तौड़गढ़
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