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Tuesday, 3 March 2020

गाय (व्यंग्य) - राम नारायण साहू 'राज'


गाय
(व्यंग्य)
हे कृष्ण कन्हैया, आजकल आप कहाँ हो।
जहाँ गाय रहती है, क्या आप वहाँ हो।।
मैं उन्ही गायों की बात कर हू, जिसका माखन आप चुराते थे।
माता के आने से पहले, पूरा माखन खा जाते थे ।।
लेकिन हे कृष्ण भगवान, आज के गायों की हालत बहुत ही बदतर है।
अब इनका कोई नहीं, देखकर ऐसा लगता है।।
अब तो जहाँ गाय होती, वो भी बाटी जाती है।
बाटने के चक्कर में , वो भी काटी जाती है।।
हे भगवान तेरे रहते अब क्या क्या हो रहा है।
गाय रास्ते में, और कुत्ता अब मखवल में सो रहा है।।
इंसान अब इंसान नहीं रहा, शैतान हो गया है।
हद से ज्यादा बेईमानो का बेईमान हो गया है।।
कभी गाय घर के अंदर हुआ करती थी रात में।
अब कुत्तो को लोग, खूब चूमते है बात बात में।।
कभी गाड़ी के ठोकरों से, कभी भूखी गाय मर जाती है।
रास्ते में ही रहकर, जिंदगी गुजार जाती है।।
ये पापी इंसान, गाय को 32 हजार देवी देवताओं का वास मानता है ।
घर में गाय का फोटो लगाकर, पूजा करना जनता है। ।
लेकिन गाय कभी घर आई तो, कुछ भी नहीं खिलाता है।
ऊपर से इनको डंडे चार लगाता हैं।।
आखरी में गाय, पन्नी खाकर मर जाती है।
पेट भरने के चक्कर में, जाने क्या कर जाती है।।
बड़े दुःख की बात है, जिस देश में गाय को माँ सामान मानते है।
उसके दूध दही और घी को खाना जानते है।।
देख लो तुम भी कभी जाकर, वो गाय आज रो रही है,
अपने बछड़े के साथ रोड किनारे सो रही है।
हे कृष्ण भगवान एक बार धरती में फिर से आओ।
अपनी पूरी गायों को, जल्दी से ले जाओ।।
इनका दुःख देखा नहीं जाता ,अब गायो का स्थान नहीं है।
सतयुग में माँ कहलाती थी, कलयुग में सम्मान नहीं हैं।।
हों सके तो कृष्ण के आते तक,गायो सम्हाल लो।-०-
राम नारायण साहू 'राज'
रायपुर (छत्तीसगढ़)

-०-



***
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1 comment:

  1. वाह, गाय माता पर इस व्यंग्य कि रचना ने एक बार फ़िर जनता को आइना दिखाने का कार्य किया है....

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