*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Saturday, 11 January 2020

माह दिसंबर २०१९ का सर्वोत्कृष्ट सृजन

सृजन महोत्सव के माह दिसंबर २०१९ की उत्कृष्ट रचनाएँ 
               आप सभी को बताते हुए हर्ष हो रहा है कि दीपावली के पावन पर्व पर प्रारंभ किए इस पटल पर आज तक दो सौ से भी अधिक साहित्यकार एवं उनकी लगभग साढ़े चारसौ से भी अधिक रचनाएं प्रकाशित की जा चुकी है. सभी रचनाकारों की विभिन्न विधाओं में प्रेषित और इस पटल पर प्रकाशित रचनाएं मौलिक एवं स्तरीय है, इसमें कोई दोराय नहीं है. आपको बताते हुए हर्ष हो रहा हैं कि सिर्फ नवंबर माह में देश-विदेश से लगभग १६९ गद्य तथा पद्य विधाओं की रचनाएं प्रकाशित की जा चुकी है. आप सभी सृजन धर्मियों का बहुत ही अच्छा प्रतिसाद, स्नेह और प्रेम मिल रहा हैं. इसके चलते आज तक लगभग २०,००० से भी अधिक  लोगों ने इस पटल को भेट दी है.
              आज इस पटल के माह दिसंबर २०१९ के सर्वाधिक पसंदीदा गद्य और पद्य विधा की भारतीय रचनाओं के रचना शिल्पियों सहित विदेशी रचना शिल्पियों के योगदान को ध्यान में रखते हुए प्रति माह एक विदेशी रचनाकार को भी सृजन महोत्सव परिवार की और से सम्मानित किया जा रहा है. वह निम्न हैं -
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) से पटल से निरंतर जुडी
डॉ.भावना कुँवर जी की लघुकथा 
'समसंवेदना' पर
'विदेशी सृजन शिल्पी'
सम्मान से 
पटल की ओर से सम्मानित करते हुए तथा
 सम्मान पत्र सपुर्द करते हुए हर्ष हो रहा हैं.
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-०-

पद्य विधा में भारत वर्ष के पुणे (महाराष्ट्र) के
चंदू चांदगुडे जी की रचना 'गुरु' पर
'पद्य सृजन शिल्पी' 
सम्मान से 
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गद्य विधा में भारत वर्ष के राजसमन्द (राजस्थान) के
गोविन्द सिंह चौहान जी की लघुकथा 
'एहसान-अहसास' पर
'गद्य सृजन शिल्पी'
सम्मान से 
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 सम्मान पत्र सपुर्द करते हुए हर्ष हो रहा हैं. 

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दोनों सृजन शिल्पियों का एवं हमारे साथ जुड़े सभी साहित्य कर्मियों का
हार्दिक आभिनंदन !!!




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परमाणु बिजली घर (लघु आलेख) - दिलीप भाटिया

परमाणु बिजली घर
(लघु आलेख)
परमाणु बिजली घर की कार्य प्रणाली से विद्यार्थी पढ़ने के नियम सीख सकते हैं। परमाणु बिजली घर में फिशन विखन्डन विधि से नाभिकीय ऊर्जा प्राप्त होती है। फिशन अर्थात एक बड़े पदार्थ का छोटे पदार्थों में टुकड़े होना। फिशन विधि से पढ़ाई करने के लिए विषयों या बड़े अध्याय को टुकड़ों में विभाजित कर के पढने से पढ़ाई की थकान एवं तनाव कम होगा। परमाणु बिजली घर में मन्दक माडरेटर तेज गति के न्यूट्रान को धीमी गति में बदलता है। इसी से सीख ले कर धीरे धीरे पढ़ने से पाठ शीघ्र याद होगा एवं रटने की आवश्यकता नहीं होगी। सतत श्रन्खला चेन रिएक्शन द्वारा ही परमाणु रिएक्टर से बिजली का सतत उत्पादन होता है। विद्यार्थी भी नियमितता निरन्तरता से प्रति दिन जितना भी पढ़ें , चेन रिएक्शन के समान अनवरत पढ़ें। परमाणु बिजली घर में रेडियेशन विकिरण को नियंत्रित सीमा में रखने के लिए कई प्रावधान होते हैं। विद्यार्थी भी वाट्सएप फेसबुक मोबाइल टेलिविज़न सेल्फि विडियो गेम टिक टिक को सीमित समय देकर एवं पढ़ाई में अधिकतम समय देकर इनसे होने वाले नुकसान को कम कर अच्छे कैरियर का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। बिजली घर में हर कार्य का लिखित प्रमाण रखा जाता है। पढ़ने में भी जो पढा है उसे लिख लेने से समय की बचत होगी एवं परीक्षा के लिए नोट्स बन जाएंगे। जिस प्रकार परमाणु बिजली घर अपनी बिजली से अन्धेरे घरों को रोशनी देता है उससे प्रेरणा लेकर विद्यार्थी भी अशिक्षा का अन्धेरा दूर कर एवं शिक्षा प्राप्त कर स्वयं परिवार एवं समाज को रोशनी दे सकते हैं। -०-
दिलीप भाटिया
रावतभाटा (राजस्थान)


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अपना प्यारा गाँव (कविता) - डॉ. प्रमोद सोनवानी

अपना प्यारा गाँव
(कविता)
न्याय - धर्म का पाठ पढ़ाता ,
प्यारा अपना गाँव ।
गुणी जनों का है पग धरता ,
ऐसा अपना गाँव ।।

अलग-अलग हैं जाति-धर्म पर ,
हैं आपस में एक ।
सबके अपनें कर्म अलग हैं ,
फिर भी हैं हम एक ।।
दुःख में सब मतभेद भुलाकर ।
एक हो जाता गाँव ।।1।।

बहती हैं यहाँ प्रेम की धारा ,
मन में कहीं न द्वेष ।
कर्म को ही हम मानें पूजा ,
हम सबका एक भेष ।।
भावी पीढ़ी को मार्ग दिखाता ।
ऐसा प्यारा गाँव ।।2।।
-०-
डॉ. प्रमोद सोनवानी
रायगढ़ (छ.ग.)


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अमित ने जाना बिहू (कहानी) - वाणी बरठाकुर 'विभा'

अमित ने जाना बिहू
(कहानी) 

अमित और भव्य दोनों ही लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के छठी कक्षा के छात्र हैं। अमित के पिताजी का कुछ महीने पहले ही बिहार से असम के विश्वनाथ चाराली में तबादला हुआ था। अप्रैल माह की 13 तारीख , उसदिन से तीन दिनों के लिए रंगाली बिहु के लिए विद्यालय बंद होने के कारण भव्य ने अमित को अपने घर बुलाकर लाया। 
दूसरे दिन सुबह भव्य ने अमित को नदी के तट पर ले जाने के लिए जगाया । अमित ने उठकर देखा कि भव्य और भव्य के पिताजी और चाचा जी मिलकर गाय बैलों को लेकर नदी की ओर निकल रहे हैं तब भव्य ने उसे भी साथ चलने के लिए कहा । अमित ने चाचा जी और भव्य के हाथों में पिसे हुए हल्दी, उड़द की दाल और बाँस की पतली लाठी में सीया हुआ लौकी व बैंगन के टुकड़े देखकर आश्चर्य से पूछा, "चाचाजी, आप लोग गाय, बैलों को नदी तट पर क्यों ले जा रहे हैं और इन सबसे क्या करेंगे ?" चाचाजी जी ने हँसकर जवाब दिया, असमिया रिवाज के अनुसार चैत्र महीने के आखिरी दिन यानी आज से रंगाली बिहू मनाते हैं। आज के दिन को 'गरु बिहू' यानी 'गौ बिहू' कहते हैं। इस दिन गाय, बैल, भैंसों को नदी ,पोखर , झील आदि में ले जाकर हल्दी व उड़द के दाल से नहलाते हैं और माखियती नाम के पत्ते से शरीर झाड़कर गाते हैं -
"माखियती मक्खी पात! 
दीघल लती दीघल पात ! 
माक्खी मारो जात जात 
माँ छोटी बाप छोटा !
तू बनना बहुत मोटा ! "
चाचा जी के साथ वो भी गाने लगा। गाते गाते कब नदी के तट पहुंचे, पता ही नहीं चला । गाय बैलों को नहलाकर, घर लाकर लौकी, बैंगन खिलाया और नये पगहा ( घास पत्ते से परंपरागत एक किस्म की रस्सी ) से बांधे । शाम को गोशाला में बाँधकर पिठा खिलाए । धूप - दीप जलाकर पूजा किये। पंखों से हवा किया (असमीया रिवाज के अनुसार उसी दिन से पंखे की हवा लेते हैं ।) उस दिन खाने में सब्जी देखकर अमित को आश्चर्य हुआ । तब भव्य ने बताया कि उस दिन एक सौ आठ किस्म के साग पकाकर खाने का रिवाज है , खासकर कड़वा खाने का रिवाज है। लोक विश्वास के अनुसार उसदिन कड़वा खाने और नाखूनों पर मेहंदी लगाने से सर्प दंश से बचते हैं । अमित ने देखा कि भव्य के पिताजी नाहर पत्ते पर 'देव देव महादेव, नील ग्रीवा जटाधर । बातः वृष्टि हरं देव ऊँ नमः ऊँ नमः ऊँम नमः ।। ' लिखकर घर के चारों तरफ रख रहे है ं। अमित ने पूछा, "चाचाजी यह क्या लिख रहे हैं ?" उन्होंने बताया कि आंधी-तूफान घटाने के लिए भगवान् शिवजी से प्रार्थना कर रहे हैंं, उसे चार दीवारी पर रखने से तूफान से बचते हैंं ।"
अमित को नई नई चीज़े देखना और नया खाना खाना बहुत पसंद आया और साथ ही भव्य की माँ द्वारा दिया हुआ पैंट-शर्ट के साथ बिहूवान ज्यादा पसंद आया। रात को अमित ने भव्य से पूछा, "भव्य! यही रंगाली बिहू है क्या!" "धत्त !" भव्य जोर जोर से हँसने लगा । अमित ने फिर पूछा, "क्या हुआ! मैंने ऐसा क्या कह दिया कि तुम हँसने लगे!"
भव्य ने बताया " सुन....सुन... सिर्फ यही नहीं, रंगाली बिहू तो चैत्र महीने के अंतिम दिन से बैसाख महीने के सातवें दिन तक मनाते हैं। पहला दिन 'गरु बिहू' जो तू ने आज देखा । दूसरे दिन यानी बैसाख महीने की पहली तारीख को असमिया नव वर्ष मनाते हैं । उस दिन को मानुह बिहु (मानव बिहु ) कहते हैं। उस दिन लोग नहा धोकर नए कपड़े पहनते हैंऔर गोसाई घर (मंदिर ) में पूजा करते हैं। गले में बिहुवान (एक किस्म का गमछा ) लेने की परंपरा है । छोटे लोग बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। सभी लोग चिवड़ा, दही, लड्डू, पिठा, खांदह इत्यादि खाते और खिलाते हैं । मैदानों में तरह-तरह के खेल और बिहु नृत्य प्रतियोगिता एवं प्रदर्शनी होते हैं । उसी दिन से गांव के आदमी -औरत, युवा मिलकर हुचरि ( हरि भक्ति गाने के साथ बिहु ) गाते हुए घरवालों को मंगलकामना करते हुए आशीर्वाद देते हैं। इसी तरह सात दिनों तक हुचरि गाते हैं ।" ये सुनते ही अमित खुशी से चिल्ला उठा, "वाह.... कल से मुझे बिहू नृत्य देखने को मिलेगा, बहुत मजा आएगा । 
उस दिन स्कूल में विद्यालय में परी, अनुप्रीति, अर्णव ये सभी नाचे थे न ! वही बिहू नृत्य है क्या?" भव्य की माँ दोनों की बातें सुन रही थी । उन्होंने जवाब दिया, "हाँ, उसी को बिहू नृत्य कहते हैं ।" "चाची, बिहू नृत्य गीत के लिए क्या क्या चाहिए?" अमित ने पूछा । भव्य की माँ बोलती गई, "बिहु गाने के लिए ढोल, पेपा, ताल, टका, गगना और खुटुली वाद्ययन्त्रों की जरूरत हैंं । बिहु नृत्य के लिए लड़के धोती, कुर्ता, माथे पर, गले पर और कमर पर गमछा पहनते हैंं । कलाई पर लाल रुमाल बांधते है । लड़कियाँ मुंगा रेशम से बुना हुआ मेखला चादर पहनती हैं । बालों का जोड़ा बांधकर कपौ फूल लगाते हैं। ललाट पर लाल बिंदी लगाते हैं। गले में जोनबिरि, ढोलबिरि, गलपता, दुगदुगी, कानों में जापि फूलि और हाथों में गाम खारु अथवा मुठि खारु इत्यादि गहने पहनते हैं । कमर में हासती (रुमाल) बांधते हैं । पुराने जमाने में केवल मैदानों में ही बिहु नृत्य करते थे । आजकल पूरे बैसाख महीने में जगह-जगह मंच पर बिहु मनाते हैं।" इतनी सारी बातें जानकर अमित बहुत खुश हुआ । 
अमित दो दिनों से रंगाली बिहू के कई नियमों को सीखा । बातों बातों में अमित ने भव्य से पूछा, "यह रंगाली बिहू है तो बहाग बिहू कौन-सा है?" भव्य के पिता ने बताया, "बेटा, रंगाली बिहू ही बहाग यानी बैसाख बिहू है । असल में बैसाख महीने में यह बिहू मनाने के कारण बहाग (बैसाख) बिहू कहते हैंऔर इस बिहू में लोग नाचते-गाते और कई खेल कुद के साथ आनन्द से मनाने के कारण बहाग बिहू को रंगाली बिहू भी कहते हैं।" अमित ने आश्चर्य से पूछा, " चाचा जी, मैंने सुना है बिहू तीन हैं तो बाकी दो बिहू कौन से हैं? " "तुमने सही सुना है । दूसरी बिहू काति बिहू है । यह बिहू आश्विन और कार्तिक महीने के मध्य में मनाते हैं। उसदिन आंगन में तुलसी का पौधा लगातेंहै और धूप दीप नैवेद्य से पूजा करते हैं । किसी ऊँची चीज़ में टांग कर उसदिन से पूरा कार्तिक महीने में जलाते हैं । उसे आकाश बंति कहते हैं । काति बिहू के दिन धान के खेतों में दीया जलाकर लक्ष्मी देवी का आह्वान करते हैं । काति बिहू के समय सभी के भंडार घर खाली हो जाते हैंं । खेतों में धान की फसलें फलने लगती हैं और सब्जियाँ भी होने लगती हैं। उस समय हर जगह अकाल सा होता है । इसलिए इस बिहू को कंगाली भी कहते हैं।" इतने में भव्य की माँ ने सबको खाना खाने के लिए बुलाया । भव्य के पिताजी ने बाद में बात करेंगे, कहकर तीनों खाना खाने चलें गए ।
शाम का समय सभी बरामदे में बैठे। अमित ने भव्य के पिताजी से तीसरी बिहू के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि माघ बिहू पौष संक्रांति के दिन मनाया जाता है । संक्रांति के कुछ दिन पहले कई परिवार एक होकर पुवाल और बाँस से पथार में एक घर बनाते हैं । उसे बिहू घर अथवा भेला घर कहते हैं। उसके पास ही बाँस और लकड़ी के मेजी (दिखने में मंदिर जैसा ) बनाते हैं । संक्रांति के आगे के दिन को उरुका कहते हैं । उसी दिन लोग एक होकर भोज (खाना) खाते हैं । मांस-मछली के साथ साथ कई तरह के स्वादिष्ट भोजन बनाते हैं । पूरी रात नाचते गाते उसी बिहू घर में रहते हैं। गृहणिया तरह तरह के पीठा (खोला पीठा, बर पीठा, घीला पीठा, तेल पीठा, फेनी पीठा, सुतुली पीठा,चुंगा पीठा ) कई प्रकार के लड्डू ( नारियल के , तील के , गम के ,पोहे के, मुरी के ) माँह कड़ाइ (उड़द , चना, चावल, अदरख आदि बना) खान्दह, दही, क्रीम आदि बनाती हैं । संक्रांति के दिन भोर में (सूरज निकलने से पूर्व ) सभी नहा- धोकर मेजी को और भेला घर को जला देते हैं। आग में पीठा, लड्डू देकर अग्नि देवता की पूजा करते हैं। कभी कभी कुछ लोग भेला घर को उस दिन न जलाकर माघ महीने के आखिरी दिन तक रहने देते हैं। संक्रांति के दिन सभी घर-घर जाकर बिहू खाते हैं। माघ बिहू में कई स्वादिष्ट पकवान भोग करने को मिलने के कारण इसे भोगाली बिहू भी कहते हैं । चाचा जी की बात सुनकर अमित ने कहा, "सच में भव्य ,मैं तुम्हारे घर आकर बहुत कुछ सीखा । तुम्हारे घर का परिवेश और इतने प्यार करने वाले लोगों से मिलकर और खास कर बिहू के बारे में जानकर मैं बहुत खुश हूँ ।" अमित की बातें सुनकर भव्य के पिताजी ने कहा , "बेटा, असमिया जाति के लिए बिहू केवल एक त्योहार ही नहीं है अपितु बिहुओं के पावन रीति से लोगों के मन में से बैर भाव दूर हो जाता है और साथ ही भाईचारे का भाव बढ़ जाता है। उस समय सभी गिले शिकवे भुलाकर एक-दूसरे के गले मिलते है ।" 
अमित अपने मन में बिहू तथा भव्य के घर के पावन परिवेश से कई नई उपलब्धियाँ लेकर छुट्टियाँ खत्म करके भव्य के साथ स्कूल के लिए रवाना हुआ ।
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वाणी बरठाकुर 'विभा'
शोणितपुर (असम)

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शरद के दोहे (दोहे) - शिव कुमार 'दीपक'


शरद के दोहे
(दोहे)
की अगुवानी महल ने, हुआ हास परिहास ।
लगे छलकने शिशिर में,मदिरा भरे गिलास ।।-1

देव दिवाकर धूप की, भेजें चादर आप ।
होरी करता रात भर,धूप-धूप का जाप ।।-2

कँपी रात भर झोपड़ी, गर्म रहे प्रासाद ।
ठिठुर-ठिठुर दुखिया करे,जाड़े का अनुवाद ।।-3

भरी पेटियां शीत की, आयीं मेरे गाँव ।
तपने लगे अलाव पर,कई घरों के पाँव ।।-4

निष्ठुर मारे नारि को, ज्यों कोड़ों की मार ।
शीत प्रकृति पर कर रहा, ऐसा तेज प्रहार ।।-5

लक्ष्मण रेखा खींच कर, सो जाते प्रासाद ।
लाँघ उसे कब जा सका,जाड़े का उन्माद ।।-6

वर्षा और समीर से, शीत हुआ बलवान ।
काँप-काँप कर कट रहा,रात और दिनमान ।।-7

भूखी सोये झोपड़ी, काँपे सारी रात ।
होरी का दिनमान क्या, बुरे हुए हालात ।।-8

सर्द पेटियां शिशिर की,लाया पवन तुरंग ।
जीव-जंतु कपने लगे, छिपने लगे भुजंग ।।-9

हाय ! निगोड़े शीत को,ऐसा चढ़ा जुनून ।
हँसते-खिलते जगत के,तोड़े मधुर प्रसून ।।-10

वसुधा ने जब ओढ ली,कुहरा वाली सौर ।
तब युग्मों में चल पड़ा,मधुर प्रेम का दौर ।।-11

क्यों देता जग को शरद, हँस-हँस गहरी पीर ।
तेरा मधुऋतु रश्मियां, कर देगीं आखीर ।।-12
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शिव कुमार 'दीपक'
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
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था बड़ा बचपन सलौना (रूपमाला छन्द) - रीना गोयल

था बड़ा बचपन सलौना
(रूपमाला छन्द)
बचपने की ढल गयी है ,खूबसूरत शाम ।
करवटें बदली उमर ने ,तज सुखद आराम ।
खो गए वो दिन पुराने ,खो गए सब खेल ।
एक दिन लड़ना झगड़ना ,दूसरे दिन मेल ।

मीत वो सारे रसीले ,इक हसीं अहसास ।
माँ सुनाती लोरियां जो थी बहुत वो खास।
शोर कक्षा में मचाते, हाल कर बेहाल ।
मेज को तबला बनाकर थे मिलाते ताल ।

बारिशों में नाव कागज की चलाते खूब ।
घूमना वह पाँव नंगे नित मुलायम दूब
हाय!तन्हाई सताती बचपना मासूम ।
ढूंढती हूँ मिल गया तो गोद भर लूं चूम ।
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पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ