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Sunday, 4 October 2020

मत सोचो (कविता) - निधि शर्मा

 

मत सोचो 
(कविता)
मत सोच, ऐ मुसाफिर!
मत सोच कि
लोग क्या कहेंगे,
अरे! लोगो का काम है कहना,
लोग अपना काम करेंगे,
तू अपना कर्म कर।

मत सोच कि
दुनिया क्या सोचेगी,
'परिवर्तन दुनिया का नियम है'
आज तेरे खिलाफ है,
सफल होने पर
कल तेरे साथ होगी।

मत सोच कि
लोग क्या सोचेंगे,
ये जिन्दगी तेरी है,
तेरे हिसाब से चलनी चाहिए,
लोगों की सोच से नहीं।

लोग क्या सोचेंगे,
अरे! अगर ये भी तुम ही सोच लोगे
तो लोग क्या सोचेंगे।
-०-
पता:
निधि शर्मा
जयपुर (राजस्थान)


-०-


***
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इसीलिए (कविता) - राजीव डोगरा 'विमल'


इसीलिए
(कविता)
दर्द कम नहीं था
इसीलिए
बेदर्द होना पड़ा।
हमसफ़र कोई नहीं मिला
इसीलिए
हम राही होना पड़ा।
राज बहुत दफन थे
इस तड़फते दिल में
इसीलिए
हमराज होना पड़ा।
दिल बहुत दुखता था
अपनों के दिए गम से
इसीलिए
महाकाल की भक्ति में
चूर होकर
मुझे भी काल होना पड़ा।
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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सफलता चूमेगी क़दम (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

सफलता चूमेगी क़दम
(कविता)
मैं सफलता...चूमूँगी तुम्हारे क़दम।
अगर है तुम्हारे में...
क्षमा,सहयोग ओर सहायता की भावना,
करना  जानते हो  आड़े वक़्त में...
मुसीबतों व मुश्किलों का सामना।
तो अपनी सोई प्रतिभा को जगाओ,
व्यर्थ पड़ी इच्छाओं की योजना बनाओ।
ज्ञान ओर विवेक से बढ़ाने होंगे क़दम,
मैं सफ़लता हूँ...चूमूँगी तुम्हारे क़दम।।

अगर पहुँचना है  शिखर पर,
शुरूआत करो निचले स्तर पर।
समय से डरना नहीं, ख़ुद से हारना नहीं,
विवेक खोना नहीं,  क्रोधित होना नहीं।
मुश्किलें आती हैं , लड़ना सिखाती हैं।
मैं तपस्या हूँ, मुझे पा लो करके प्रयत्न,
मैं सफलता हूँ..चूमूँगी तुम्हारे क़दम।

ज़िंदगी में ...चुनौतियाँ तो आएँगी,
हार भी गए तो,कुछ सिखा के जाएँगी।
हार भी मौक़ा है ,ख़ुद को तराशने का,
अपने आप को   आँकने का।
जो ठाना है, पूरा कर के दिखाओ,
इच्छा शक्ति को अपनी ताक़त बनाओ।
रह कर मज़बूत, आगे बढ़ाओ क़दम.,
मैं सफलता हूँ....चूमूँगी तुम्हारे क़दम।

भले ही तुम  साधन रहित हो,
मत हो उदास, विचारों के धनी हो।
अपने विचारों पर रखो भरोसा,
समय कभी एक सा नहीं होता।
खोना नहीं आत्मविश्वास, करो विश्वास,
लहराएगा तुम्हारा भी परचम।
मैं सफलता हूँ...चूमूँगी तुम्हारे क़दम।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-०-



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