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Sunday, 4 October 2020

मत सोचो (कविता) - निधि शर्मा

 

मत सोचो 
(कविता)
मत सोच, ऐ मुसाफिर!
मत सोच कि
लोग क्या कहेंगे,
अरे! लोगो का काम है कहना,
लोग अपना काम करेंगे,
तू अपना कर्म कर।

मत सोच कि
दुनिया क्या सोचेगी,
'परिवर्तन दुनिया का नियम है'
आज तेरे खिलाफ है,
सफल होने पर
कल तेरे साथ होगी।

मत सोच कि
लोग क्या सोचेंगे,
ये जिन्दगी तेरी है,
तेरे हिसाब से चलनी चाहिए,
लोगों की सोच से नहीं।

लोग क्या सोचेंगे,
अरे! अगर ये भी तुम ही सोच लोगे
तो लोग क्या सोचेंगे।
-०-
पता:
निधि शर्मा
जयपुर (राजस्थान)


-०-


***
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