मैंने सबसे कहा
(कविता)
मैंने मछुआरे से कहा
तुम्हें मछलियां नहीं पकड़नी चाहिए
जैसे तुम नहीं पकड़ते हो
अपने खेलते हुए बच्चों को
मैंने बहेलिये से कहा
तुम्हें बूटी भर गोश्त के लिए
नहीं करना चाहिए चिड़ियों का शिकार
जैसे डरते हो तुम
शेर का शिकार हो जाने से
मैंने कसाई से कहा
तुम्हें अबोध और बेज़ुबान
पशुओं का नहीं करना चाहिए क़त्ल
जैसे
साये में छुपाते रहते हो तुम अपने औलाद को
मैंने सबसे कहा
पर हत्या फिर भी हुई
बलि फिर भी दी गई
और आकाश में उड़ते चिड़ियों के
पर फिर भी काट दिए गये
पर हम कहते रहे
जैस अपनी ज़िद से जलता रहा एक दिया
जैसे एक जुगनू देता रहा रौशनी
जैसे एक दूब
उगता रहा अपनी कोशिशों से
जैसे पिंजड़े में क़ैद परिंदे
लड़ते रहे आख़री दम तक बंदिशों से...
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