उदात्त प्रकृति
(कविता)प्रकृति कितनी उदात्त है
इसे फिर भी नहीं प्रमाद है
हमारी ही करतूतों से
अब रहती उदास उदास है
धरती -अम्बर,नीर-समीर
हरते इंसा की हर पीर
कब समझे हम इनकी पीर
इंसा रहा सदा अधीर
जाने कब होगा गम्भीर
संकेतों को किया नजरअंदाज
निर्ममता से किया प्रहार
कृतघ्नता है अपरम्पार
हो जाएगा सुख शांति का लोप
यदि बढ़ गया इनका प्रकोप
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