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Monday 21 December 2020

उदात्त प्रकृति (कविता) - ज्ञानवती सक्सेना

 

उदात्त प्रकृति
(कविता)
प्रकृति कितनी उदात्त है
इसे फिर भी नहीं प्रमाद है
हमारी ही करतूतों से
अब रहती उदास उदास है
धरती -अम्बर,नीर-समीर
हरते इंसा की हर पीर
कब समझे हम इनकी पीर
इंसा रहा सदा अधीर
जाने कब होगा गम्भीर
संकेतों को किया नजरअंदाज
निर्ममता से किया प्रहार
कृतघ्नता है अपरम्पार
हो जाएगा सुख शांति  का लोप
यदि बढ़ गया इनका प्रकोप 
-०-
पता : 
ज्ञानवती सक्सेना 
जयपुर (राजस्थान)
-०-

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गाँव का विकास (आलेख) - अ कीर्तिवर्धन

 

गाँव का विकास
(आलेख)
संत्री से मंत्री तथा प्रधानमंत्री तक गाँव के विकास या कहें अंतिम आदमी तक के विकास की बात नित प्रति बडे बडे सेमीनार तथा टीवी पर प्रायोजित भाषणों मे करते रहते हैं। अनेकों योजनायें भी ग्रामीण विकास को केन्द्र मे रखकर ही बनायी जाती हैं।
हमारी चुनाव प्रणाली का भी अध्ययन करें तो पायेंगे कि इस प्रक्रिया ये भी अन्तिम छोर तक का व्यक्ति विकास की इस प्रक्रिया से जुडा है। यहाँ हमे कुछ बातें समझनी होगीं जिसमें सर्वप्रथम गाँव के विकास के मायने क्या हों?
और इस विकास के होने अथवा नही होने देने के लिये कौन उत्तरदायी है? नेता-अधिकारी अथवा स्वयं जनता जिसके लिये विकास की बात की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिये क्या क्या सुविधाएं होनी चाहिये?
आज देश के लगभग सभी गाँव मे पक्की सडकें हैं। इन्टर तक के स्कूल आसपास के गाँव मे और डिग्री स्कूल भी हैं। पीने के पानी का प्रबन्ध भी अधिकतर है। वर्तमान युग की महत्वपूर्ण आवश्यकता इन्टरनेट सब जगह मौजूदहै।
ग्राम प्रधान, पंचायत अध्यक्ष विधायक, सांसद आदि के माध्यम से अत्याधिक धनराशि का आवंटन विकास के लिये किये जाता है। किसानों को कृषि यंत्र सरकारी सहायता छूट के माध्यम से न्यूनतम दाम पर उपलब्ध कराये जाते हैं। गांव मे विद्युत आपूर्ति बेहतर और न्यूनतम दाम पर उपलब्ध है। शिक्षा के क्षेत्र में पब्लिक स्कूलों की गाँव मे बाढ आ गयी है। जितने भी औद्योगिक क्षेत्र बनते हैं वह भी शहर से दूर ग्रामीण क्षेत्रों मे ही बनाये जाते हैं। ग्रामीणों के लिये अनेक लघु उद्योग योजनाओं को प्राथमिकता दी जाती है। गांव गांव में प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र हैं। 
इतना सब होने के बावजूद गाँव और ग्रामीण का विकास न हो पाने के कारणों पर विचार करना आवश्यक है। विचार करें क्या किसी सरकारी मंत्रालय को सुदूर गाँव मे बनाया जा सकता है अथवा किसी अंतरराष्ट्रीय कम्पनी का कार्यालय स्थानांतरित किया जा सकता है? शायद आपका भी उत्तर होगा नही। विचार करना होगा कि क्यों हमारे बच्चे शहर से 5-10 किमी दूर गांव मे भी नही रहना चाहते? गांव के स्कूलों में पढना अपमान क्यों लगता है? सभ्यता संस्कृति और संस्कारों का निर्वाह क्यों भारी लगने लगा? शहर के बच्चे प्राइवेट सैक्टर मे नौकरी करने को वरीयता देते हैं और गांव के बच्चे चाहे सारा जीवन बीत जाये, मजदूरी करते रहें, मकान खेत बेच दे मगर उनका सपना है केवल सरकारी नौकरी जो एक बार लग गयी तो गांव आकर झांकना पसन्द नही करते।
एक प्रश्न आता है साफ सफाई का तो प्रधान तथा पंचायत क्यों सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति नही करते? गांव का आदमी अपने गाँव मे मजदूरी नही करना चाहता। इसे वह अपमान समझता है। भ्रष्टाचार भी बहुत बडा कारण है गाँव से पलायन का। प्रधान सचिव, पटवारी और भी न कितने लोग हैं जो हर कदम पर लूट मे शामिल हैं। खुद ग्रामीण भी इस लूट का हिस्सा हैं।
बातें बहुत हैं जो वहाँ पर रहकर ही समझी जा सकती हैं और विगत तीन वर्ष से इसका अध्ययन भी कर रहे हैं।
परन्तु यहाँ मेरा प्रश्न यह है कि 50 वर्ष मे गांव को स्मार्ट क्यों नही बना पाये, क्या अवरोध हैं और क्या सपने व मापदंड हैं उन कारणों पर रोशनी डाली जाये। 
-०-
पता: 
अ कीर्तिवर्धन



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अपराधी कहलाएँगे (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'

 

अपराधी कहलाएँगे
(कविता)
अगर नहीं अब भी जागे हम ,
जख्मी तन मन पाएंगे ।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएगें।।
 
जब तक अंकुश नहीं लगेगा,
सत्ता की मनमानी पर ।
जब तक अज्ञानी नेता बन,
रोब कसेंगे ज्ञानी पर।। 
जब तक अंधे यहां अकल के,
चीरहरण करवाएंगे।
जब तक विद्या मंदिर में,
मधुघट छलकाए जाएंगे।। 
तब तक गम के बादल ही ,
शोले बरसाने आएंगे।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएंगे ।।

मेहनत से मुक्ति देकर ,
आलस को पनपाया हमने।
श्वेद बहाना भूल गए हम,
फोकट का खाया हमने ।।
बिना नींव के बांध बनाए ,
बिना सोच सड़कें रेलें।
मनमाने आदेश सुनाए ,
जनता के हित से खेले ।।
क्रांति उठेगी जब घर घर से ,
शौले कौन बुझाएंगे।
दुनिया वालों की नजरों में,
अपराधी  कहलाएगें।। 

शिक्षा देने वाले ही जब,
दर दर ठोकर खाएंगे।
आविष्कार कहाँ होंगे तब ,
कौन तरक्की लाएंगे।।
सोच अगर सेवा की होगी नहीं,
कौन तब तारेगा।
अशिक्षित अंधी जनता को ,
सागर पार उतारेगा।।
क्षमताओं की खुले आम ,
जब यूं होली जलवाएगें।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएंगे ।।

आरक्षण बेशक हो लेकिन ,
पैमानों को बदले हम।
जो गरीब तबके हैं उनकी,
भी सुध लें तो संभलें हम ।।
अगडों को पिछड़ों को करके ,
एक मिटा दें भेद सभी ।
छुआ छूत के जितने दानव हैं,
हो जाएं कैद सभी ।।
समरसता को जन जीवन में ,
अगर नहीं फैलाएंगे।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएंगे।।
 
न्याय चाहने वालों को ,
अन्याय मिले क्या अच्छा है ।
क्या उसका अधिकार नहीं,
जो चुप है सीधा सच्चा है।। 
जिसके वंशज रहे दूर ,
सीमा पर पहरेदार बने।
जिसके वंशज वक्त पड़ा तो ,
धन देकर सरदार बने ।।
जब तक ऐसे हकदारों के ,
हक लोगों झुठलाएगें।
दुनिया वालों की नजरों में ,
अपराधी कहलाएगें।।
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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