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Thursday 31 October 2019

दीप माटी के जलाकर (कविता) - अंजलि गोयल 'अंजू'


दीप माटी के जलाकर
(कविता)

दीप माटी के जलाकर
आज अँधियारा मिटाओ
मन की कलुषित कालिमा को
प्रेम की लाली बनाओ.

अभिमान से ह्रदय भरा
अज्ञान का तम है घना
तोड़ नफरत की दीवारें
ज्ञान की गंगा बहाओ.

शब्द ही होती कड़ी वो
जो करें अपना पराया
माँ शारदे जिह्वा से मेरी
ना कभी निंदा कराओ.

मान होता जहाँ बड़ों का
देवता रहते वहाँ सब
प्रेम श्रद्धा के दिये
मन के मंदिर में जलाओ.

यूँहीं नहीं जाता कमाया
धन बहुत मुश्किल से आता
छोड़ कर महँगे पटाखे
और ना प्रदूषण बढ़ाओ.

गयी रीत खील बताशों की
महँगे अब उपहार बँटें
सच्चा आनंद चाहो पाना तो
निर्धन के घर खूब सजाओ.
-०-
अंजलि गोयल 'अंजू'
बिजनौर (उत्तरप्रदेश)

-०-
***
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8 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत रचना 💞😍🙏🏻

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  2. दीपावली के लिए अर्थ पूर्ण कविता
    बहुत-बहुत शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. तहे दिल शुक्रिया

      Delete
    2. तहे दिल शुक्रिया

      Delete
    3. तहे दिल से शुक्रिया

      Delete

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