दीप माटी के जलाकर
(कविता)
दीप माटी के जलाकर
आज अँधियारा मिटाओ
मन की कलुषित कालिमा को
प्रेम की लाली बनाओ.
अभिमान से ह्रदय भरा
अज्ञान का तम है घना
तोड़ नफरत की दीवारें
ज्ञान की गंगा बहाओ.
शब्द ही होती कड़ी वो
जो करें अपना पराया
माँ शारदे जिह्वा से मेरी
ना कभी निंदा कराओ.
मान होता जहाँ बड़ों का
देवता रहते वहाँ सब
प्रेम श्रद्धा के दिये
मन के मंदिर में जलाओ.
यूँहीं नहीं जाता कमाया
धन बहुत मुश्किल से आता
छोड़ कर महँगे पटाखे
और ना प्रदूषण बढ़ाओ.
गयी रीत खील बताशों की
महँगे अब उपहार बँटें
सच्चा आनंद चाहो पाना तो
निर्धन के घर खूब सजाओ.
दीप माटी के जलाकर
आज अँधियारा मिटाओ
मन की कलुषित कालिमा को
प्रेम की लाली बनाओ.
अभिमान से ह्रदय भरा
अज्ञान का तम है घना
तोड़ नफरत की दीवारें
ज्ञान की गंगा बहाओ.
शब्द ही होती कड़ी वो
जो करें अपना पराया
माँ शारदे जिह्वा से मेरी
ना कभी निंदा कराओ.
मान होता जहाँ बड़ों का
देवता रहते वहाँ सब
प्रेम श्रद्धा के दिये
मन के मंदिर में जलाओ.
यूँहीं नहीं जाता कमाया
धन बहुत मुश्किल से आता
छोड़ कर महँगे पटाखे
और ना प्रदूषण बढ़ाओ.
गयी रीत खील बताशों की
महँगे अब उपहार बँटें
सच्चा आनंद चाहो पाना तो
निर्धन के घर खूब सजाओ.
बहुत ही खूबसूरत रचना 💞😍🙏🏻
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteदीपावली के लिए अर्थ पूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएं
हार्दिक आभार
Deleteजी बहुत ख़ूब
ReplyDeleteतहे दिल शुक्रिया
Deleteतहे दिल शुक्रिया
Deleteतहे दिल से शुक्रिया
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