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Wednesday 19 August 2020

आराधना (कविता) - रूपेश कुमार


आराधना
(कविता)
माँ की छांव में ,
ममता की ममत्व से ,
दिल को छू लेने वाली तू ,
करो आराधना माता की !

जहाँ मिले आत्मा को ,
शान्ति की शान्त स्वभाव मे ,
शरण मे सर्वश्रेष्ट हो,
उस माँ की करो आराधना !

जो दुखों को करती संहार ,
पापियों को करती नाश ,
दुखों मे मेरा साथ देती ,
उस ममतामयी माँ की करो आराधना !

जो विश्व को पालन करती ,
सभी को लालन पालन करती ,
जिसकी दृष्टी मे हम सभी बसते,
उस ममतामयी माँ की करो आराधना!
-०-
पता:
रूपेश कुमार
चैनपुर,सीवान बिहार
-०-


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काश! (कविता) - राजीव डोगरा 'विमल'


काश!
(कविता)
काश! मेरी जुबान की
कड़वाहट के पीछे
तुम मेरे हृदय की मिठास को
समझ पाते ।

काश! मेरे मुस्काते
चेहरे के पीछे
तुम मेरे हृदय में दहकती
पीड़ा को समझ पाते।

काश ! मेरे बहते हुए
अश्कों के पीछे
तुम मेरे हृदय में बसी
मेरी कोमल भावनाओं को
समझ पाते।

काश! मेरे खिलखिलाते
चेहरे के पीछे
तुम मेरे अंतर्मन की
चीखती चिल्लाहट को
समझ पाते।
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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पूरी दुनिया से हम (ग़ज़ल) - राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'


पूरी दुनिया से हम 
(ग़ज़ल)
पूरी दुनिया से हम अकेले ही हमेशा लड़े।
बिना रुके बिना डरे आगे हम हमेशा बढ़े।।
क़त्ल के पहले दुश्मन ने भी हमको सजदा किया।
जंग में देखा जब अकेले और निहत्थे खड़े।।
पैरों में जूते चाहे हमने न पहने हों मगर।
देखे हैं सपने सदा हमने हैसियत से बड़े।।
जहां में ऐसा कोई काम नहीं किया मैंने।
जिससे हमको समाज में होना शर्मिंदा पड़े।।
वक्त कितना भी बदले और मैं कहीं भी रहूं।
है दुआ पैर हमेशा मेरे जमीं पे पड़ें।।
शौक हमको नहीं है दौलत गाड़ी बंगलों का।
ना ही चाहिए हमें आभूषण हीरे मोती जड़े।।
हम तो पहले भी तनहा थे जहां में "रघुवंशी"।
आज भी तन्हा शौक से उसी जगह हैं खड़े।।
-०-
पता- 
राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
हमीरपुर (उत्तर प्रदेश)

-०-

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