पूरी दुनिया से हम
पूरी दुनिया से हम अकेले ही हमेशा लड़े।
बिना रुके बिना डरे आगे हम हमेशा बढ़े।।
क़त्ल के पहले दुश्मन ने भी हमको सजदा किया।
जंग में देखा जब अकेले और निहत्थे खड़े।।
पैरों में जूते चाहे हमने न पहने हों मगर।
देखे हैं सपने सदा हमने हैसियत से बड़े।।
जहां में ऐसा कोई काम नहीं किया मैंने।
जिससे हमको समाज में होना शर्मिंदा पड़े।।
वक्त कितना भी बदले और मैं कहीं भी रहूं।
है दुआ पैर हमेशा मेरे जमीं पे पड़ें।।
शौक हमको नहीं है दौलत गाड़ी बंगलों का।
ना ही चाहिए हमें आभूषण हीरे मोती जड़े।।
हम तो पहले भी तनहा थे जहां में "रघुवंशी"।
आज भी तन्हा शौक से उसी जगह हैं खड़े।।
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