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Sunday 19 July 2020

प्रिये तुम (श्रंगार गीत) - राजेश तिवारी 'मक्खन'


प्रिये तुम
(श्रंगार गीत)
 छेड़ा मैने राग रागिनी ,तुम भी तो कुछ गाओ ।
प्रिये तुम जरा पास तो आओ ।।

क्या उम्दा सुर ताल मिले है ।
उर के सुन्दर सुमन खिले है ।
रितु वर्षा सुहागिन हो तुम , अब सफला हो जाओ ।..............१

राग आग सुर धधक रहा है ।
पके  खता सा दहक रहा है ।
आज मुझे  आप्लावित करने , राग मल्हार को गाओ ।................२

सप्त सुरों का यह तन वीना ।
क्यों मेरा सुख चैन है छीना ।
तन रूपी वीणा के ऊपर , आकर तुम हाथ फिराओ .।...................३

तेरी तान मधुर  मुझे भाती ।
पंचम स्वर में जब तू  गाती ।
देखा तेरा रूप सलोना , मुझे और न अब तरसाओ ।...................४
-०-
पता:
राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी  (उत्तरप्रदेश)

-०-

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तुम (कविता) - सविता वर्मा 'ग़ज़ल'


तुम
(कविता)
तुम!
कितने सालों बाद मिले हो।
अंतस में यूँ फूल खिले हो।
जीवन को मधुमास मिला
फिर तुम्हारा अहसास मिला।
चेहरे पर हैं हंसी पुरानी
आंखों में एक नमी लिए हो।
अधरों पर स्मित सी हंसी।
तुम।
कितने सालों बाद मिले हो।।
बालो में हल्की सी चांदी
गालों पर थोड़ी सिलवट भी
चश्मा भी थोड़ा मोटा सा
वक्त कटा कितना कठिन
लेकिन दिल मे प्रीत लिए
तुम।
कितने सालों बाद मिले हो।
टूटा आज भी बटन शर्ट का
कॉलर भी कुछ मुड़ा-मुड़ा सा
घड़ी अभी भी वही पुरानी
थामे कलाई साथ निभाती
पैन जेब में हुए जमाये
अनजानी राहों पर चलके
तुम।
कितने सालों बाद मिले हो।।
दिल धड़कन धक-धक करती
साँसे भी बेकाबू सी चलती
पंख समय के लगे हों मानों
अरमानों की लिये पोटली
बिछड़े हुए पंछी बोलो कैसे
उड़कर हम तक पहुंचे हो
तुम।
कितने सालों बाद मिले हो।
यादों के बदरा भी बैरी बन
नैनों की बरसात लिये अब
उमड़-घुमड़ कर बरस रहे हैं
बात बहुत थी और शिकवे भी
किन्तु अब इतना है कहना
इन राहों पे ए राही मिलते रहना
तुम।
इतने सालों बाद मिले हो।।
-०-
पता:
सविता वर्मा 'ग़ज़ल'
मुज़फ्फरनगर (उत्तरप्रदेश)

-०-

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विपदा में आनंद (दोहे) - डॉ० धाराबल्लभ पांडेय 'आलोक'


विपदा में आनंद
(पद्य-दोहे )
आज समय जो भी मिला, ले उसका आनंद।

कोरोना के काल में, सभी घरों में बंद।
आज समय जो भी मिला, ले उसका आनंद।।

गृह में ही रखी हुई, जो भी होय किताब।
बड़े प्रेम से मनन करि, ज्ञान का लें आनंद।।

बच्चों के संग खेल लें, लूडो, सीड़ी साँप।
शतरंजी के खेल में, रहें सदा आनंद।।

छोटे बच्चे हों अगर, खेलें उनके संग।
लुक्का छुप्पी खेल में, लें घर में आनंद।।

समय निकालें सोच कर, लिखें शब्द साहित्य।
मन के भाव समाय दें, कविता के आनंद।।

करले सेवा कार्य भी, मास्क  बनाएँ गेह।
बाँटे बँटवाएँ उन्हें, प्रहरी रक्षक वृंद।।
-०-
डॉ० धाराबल्लभ पांडेय 'आलोक'
अध्यापक एवं लेखक
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)


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