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Thursday 31 December 2020

यादों के कैनवास ! (कविता) - अशोक 'आनन'

 

 यादों के कैनवास ! 
(कविता)
आप  क्यों इतने उदास हैं ।
दूर होकर भी हम पास हैं ।

खोलके देखिए खिड़कियां ;
फैला हर तरफ उजास है ।

हिचकियों की हैं कुंचियां ;
यादों के अब कैनवास हैं ।

पतझड़ों के घरों में अब ;
खुशियों के मधुमास  हैं ।

अंखियों के गांवों में अब ;
सपनों के अमलतास हैं ।

शब्दों  के  हैं रोज़  रोज़े ;
चिट्ठियों के  उपवास हैं ।

सुखों का है राज तिलक ;
दु: ख़ों  को  वनवास  है ।

खराब वक़्त गुज़र गया -
घरों में हास - परिहास है ।

सूखे को भी अब ' आनन ' ;
सावन - भादौ की आस है ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (मध्यप्रदेश)




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पिरामिड: गीता सार (कविता) - डा. नीना छिब्बर

 

पिरामिड: गीता सार
(कविता)
      1. रे
           मन
           चिंतन
           लाए सुख
            चिंता दे दुख
           समझ अंतर
            गीता देती ये ज्ञान।।
         2.है
             यही
              रीत की
             जीव मात्र
        भोगे है भोग
       कर्म अनुरूप
      सदा परिवर्तन।।
        3. जो
            जग
           जान ले
            गूढ़ बात
         जीना मरना
          ध्रुर्व सत्य मान
          छोड़ दे अभिमान।।
         4. ये
             तन
           निश्चित
          बदलेगा
        समय देख
       अपना ये चोला
      गर्व क्यों नादान?
     5. दे
         प्रभू
       सुबुद्धि
       देख सके
       अपनी भूलें
        आत्मपरीक्षण
          मिलती सदा मुक्ति।।
      6. तू
          कर
         अर्पण
         देह मोह
      .  लोभ लिप्सा भी
          प्रभू चरणों में   ।।
       7. ये
            धरा
           घूमती
          कर्म -धर्म
           मंत्र को मान
           कर्त्तव्य निभाना
         कृष्ण  की गीता सार ।।
         8. जो
            रहे
            निर्मल
   .        सदा करे
           पुण्य के काम
            ईश्वर साथ दे
          .पूर्ण हो सब काज ।।
       9. है
           .सीख
           कृष्ण की
          मोहमाया
            मात्र बंधन
          तोड़ दे नादान
          हो श्री चरण  ध्यान ।।
       
      10. है
            टिकी
            जिंदगी
          पाप-पुण्य
          दो कर्मों पर
           जीवन पर्यंत
           इसी युद्ध का भान ।।
       11. है
            यज्ञ
            कर्तव्य
            मानवीय
           हो संरक्षित
          प्राकृतिक धन
          पाँचों तत्व हर्षित।।
       12. ना
             करे
            इंसान
          दान मात्र
          फल इच्छा से
        शुद्ध भाव धर्म
          सदा होता स्वीकार ।।
       13. जो
             पूजे
            हरि को
            ना भर्माए
             धन दौलत
            मृगमरीचिका
            कृष्ण नाम तू जाप।
        14. ऐ
              प्राणी
            पुनीत
             कर्मफल
            पाए ये प्राण
           मानव योनि का
           दान धर्म उद्धार।।
         15. मैं
                माँगूं
           प्रभू से
           वरदान
          सयंम देना
          अर्पित सर्वस्व
           मोक्ष का अरमान ।।
       16. जो
            देता
          भोजन
        . तृप्त करे
   .       जीव मात्र को
           प्रभू प्रसन्न हों
           मिले बैंकुंठ धाम ।।
        17.दे
            यही
          संदेश
         गीता ज्ञान
          पढ़ समझ
          आत्मा हो शुद्ध
          भीतरी युद्ध शांत।।
        18. हे
               कान्हा
            स्वीकारों
           ये प्रार्थना
           लेना छाया में
           मोह जाएं भाग
            सारथी बन हांक।।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

-०-

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सुख के नगमे ही गए हैं (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'

  

सुख के नगमे ही गए हैं
(कविता)
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, 
इसीलिए सुख  के  नगमे  ही  गाए  हैं। 
*****
वक्त चाल से अपनी  ही चलता हरपल, 
हमको तो बस अपने  फर्ज  निभाने थे। 
जैसा आया  मौसम  भोग  लिया हमने, 
आलस   ने   पर   ढूंढे  कई  बहाने  थे।। 
अपने मन का होतो सुख नाहो तो दुख, 
मन पर अंकुश  ने ही  सुख  बरसाए हैं। 
जीवन लक्ष्य रखा आंखों  में हमने बस, 
इसीलिए  सुख  के   नग्में   ही  गए  हैं।। 
*****
अलविदा बीस, इक्कीस  विदाई देता है,
नहीं शिकायत तुमसे तुम  इतिहास बने। 
याद   करेंगे    लोग   तुम्हें   ना  भूलेंगे, 
वे सारे  तुम जिनके  खातिर खास बने।। 
कुछ व्यक्ति भगवान बने  जीवन देकर, 
कुछ  ने  सेवा कर  जीवन  उजलाए हैं। 
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, 
इसीलिए  सुख  के  नगमे  ही  गए  हैं।। 
*****
घर में  रहकर  जीने  का आनंद लिया, 
छोड़ी भागम भाग  तो  राहत  पाई  है। 
काम "अनंत" दूसरों के आए  तब  ही, 
दूर    गई   दुखदर्दो   की   परछाई  है।। 
जनहित सेजो भटकगए रहबर अपने, 
सदमें ,ऐसो  ने   ही   बहुत   उठाएं हैं। 
जीवन लक्ष्य रखा आंखोंमें हमने बस, 
इसलिए सुख  के  नग्में   ही  गाए  हैं।।
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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जिंदगी में.... यह साल (कविता) - प्रीति शर्मा 'असीम'

   

जिंदगी में.... यह साल
(कविता)
यह साल ,
बहुत ख़ास रहा |
जिंदगी की कड़वी  यादों में |
मीठी बातों का भी  स्वाद  रहा |

यह साल बहुत ख़ास  रहा |
किन भरमों में जी रहे थे।
आज तक .........?

उनसे  जब  ,
आमना -सामना  हुआ|

क्या  कहूं ..........!
जिंदगी में, इस  साल |
तुज़र्बों का एक काफ़िला  -सा  रहा |

कुछ  के चेहरे से नकली नकाब उतरे,
कुछ को छोड़कर,
हर चेहरा दागदार रहा।।
 कुदरत ने हर चेहरे पर मास्क लगाकर,
 चेहरे की अहमियत का वो  सबक दिया।

यह  साल बहुत ख़ास रहा |

जहां कुछ जिंदगी की हकीकतें समझ गए।
 किस दौड़ में जी रहे थे.....
 बंद घरों में करके कैद में रख दिए।
 
वहीं कुछ चेहरे दिल में सिमट गए।
 जिंदगी बंद करती है एक दरवाजा,
तो कहीं कई  दरवाजे खुल गए।
हर उस प्रेरणा  का
शुक्रिया ........
जिस ने जिंदा होने का,
अहसास दिला दिया।

 जिंदगी की अहमियत का,
इस साल ने वो  सबक दिया।
 जो समझेंगे..... सालों को जी जाएंगे।
वरना हर साल में...  बस
सालों के कैलेंडर ही बदलते रह जाएंगे।

 यह साल बहुत खास रहा।
मैं  हारता हुआ भी हर बाज़ी मार गया |

जिंदगी  का हर  दिन अच्छा या  बुरा,
हर अनुभव  बहुत ही ख़ास रहा |

नये साल  को सींचूगा 
इन अहसासों से |

जिंदगी  को  जीने के, वे-मिसाल उमदा,
इन  तरीको से | 
यह  साल बहुत ही ख़ास रहा |
 जिंदगी की हकीकतों  को दिखाता बेमिसाल आईना रहा।
-०-
पता:
प्रीति शर्मा 'असीम'
नालागढ़ (हिमाचल प्रदेश)

-०-


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जाने वाले साल (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी

 

जाने वाले साल
(कविता)
धन्यवाद देता हूँ तुझको जाने वाले साल।
एक वर्ष में दिखलायें है तुने कई कमाल।
किसी के मूंह से रोटी छिनी किसी से छिना प्राण।
उथल-पुथल करके रख्खा और मचा दिया धमाल।

गोदे सुनी हो गई माँ की बाप के कन्धे टूटे।
ना जाने कितने ही घर सोये रातों में भूखे।
कैद हुए हम कई महीने अपने घर के भीतर। 
बीबी बच्चों संघ बैठे हम अक्सर रूठे-रूठे। 

बिलख-बिलख कर रोयें बच्चे मांये अश्रु बहायें।
पिता की चिंता सोचे दिनभर कैसे समय बितायें।
पैसे नहीं है इक भी घर में खाने को न दाना है। 
नौकरी भी तो छूट गई अब रोटी कहाँ से लायें।

बहनें विधवा हुईं कई और बच्चे कई अनाथ हुए।
कोरोना के चलतें जाने कितने घर बर्बाद हुए।
आने वाला है इक्कीस उम्मीद हृदय में जागी है।
ऐसा हुआ प्रतित की मानों कैद से हम आजाद हुए।

फिर भी तुझको दोष न दूंगा तुने ज्ञान सिखाया है।
बड़ी-बड़ी मुश्किल से कैसे बचना हमें बताया है।
कोरोना से लड़ते-लड़ते जीना हम सब सीख गये।
तुने ही हर मुश्किल से लड़ना हमें सिखाया है।

नववर्ष में कोरोना का प्रभु हो जाये समाधान।
हर कोई बढ़ चढ़ कर पाये इस दुनियां में मान।
कोई भी भूखा न सोये ये दुनियां हो खुशहाल।
हाथ जोड़कर विनय यही है ईश्वर दो वरदान।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-


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