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Thursday, 31 December 2020

यादों के कैनवास ! (कविता) - अशोक 'आनन'

 

 यादों के कैनवास ! 
(कविता)
आप  क्यों इतने उदास हैं ।
दूर होकर भी हम पास हैं ।

खोलके देखिए खिड़कियां ;
फैला हर तरफ उजास है ।

हिचकियों की हैं कुंचियां ;
यादों के अब कैनवास हैं ।

पतझड़ों के घरों में अब ;
खुशियों के मधुमास  हैं ।

अंखियों के गांवों में अब ;
सपनों के अमलतास हैं ।

शब्दों  के  हैं रोज़  रोज़े ;
चिट्ठियों के  उपवास हैं ।

सुखों का है राज तिलक ;
दु: ख़ों  को  वनवास  है ।

खराब वक़्त गुज़र गया -
घरों में हास - परिहास है ।

सूखे को भी अब ' आनन ' ;
सावन - भादौ की आस है ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (मध्यप्रदेश)




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