पिरामिड: गीता सार
(कविता)
1. रे
मन
चिंतन
लाए सुख
चिंता दे दुख
समझ अंतर
गीता देती ये ज्ञान।।
2.है
यही
रीत की
जीव मात्र
भोगे है भोग
कर्म अनुरूप
सदा परिवर्तन।।
3. जो
जग
जान ले
गूढ़ बात
जीना मरना
ध्रुर्व सत्य मान
छोड़ दे अभिमान।।
4. ये
तन
निश्चित
बदलेगा
समय देख
अपना ये चोला
गर्व क्यों नादान?
5. दे
प्रभू
सुबुद्धि
देख सके
अपनी भूलें
आत्मपरीक्षण
मिलती सदा मुक्ति।।
6. तू
कर
अर्पण
देह मोह
. लोभ लिप्सा भी
प्रभू चरणों में ।।
7. ये
धरा
घूमती
कर्म -धर्म
मंत्र को मान
कर्त्तव्य निभाना
कृष्ण की गीता सार ।।
8. जो
रहे
निर्मल
. सदा करे
पुण्य के काम
ईश्वर साथ दे
.पूर्ण हो सब काज ।।
9. है
.सीख
कृष्ण की
मोहमाया
मात्र बंधन
तोड़ दे नादान
हो श्री चरण ध्यान ।।
10. है
टिकी
जिंदगी
पाप-पुण्य
दो कर्मों पर
जीवन पर्यंत
इसी युद्ध का भान ।।
11. है
यज्ञ
कर्तव्य
मानवीय
हो संरक्षित
प्राकृतिक धन
पाँचों तत्व हर्षित।।
12. ना
करे
इंसान
दान मात्र
फल इच्छा से
शुद्ध भाव धर्म
सदा होता स्वीकार ।।
13. जो
पूजे
हरि को
ना भर्माए
धन दौलत
मृगमरीचिका
कृष्ण नाम तू जाप।
14. ऐ
प्राणी
पुनीत
कर्मफल
पाए ये प्राण
मानव योनि का
दान धर्म उद्धार।।
15. मैं
माँगूं
प्रभू से
वरदान
सयंम देना
अर्पित सर्वस्व
मोक्ष का अरमान ।।
16. जो
देता
भोजन
. तृप्त करे
. जीव मात्र को
प्रभू प्रसन्न हों
मिले बैंकुंठ धाम ।।
17.दे
यही
संदेश
गीता ज्ञान
पढ़ समझ
आत्मा हो शुद्ध
भीतरी युद्ध शांत।।
18. हे
कान्हा
स्वीकारों
ये प्रार्थना
लेना छाया में
मोह जाएं भाग
सारथी बन हांक।।
-०-
डा. नीना छिब्बरजोधपुर(राजस्थान)
-०-
***
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मनोहर काव्य
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