सुख के नगमे ही गए हैं
(कविता)
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अख्तर अली शाह 'अनन्त'
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस,
इसीलिए सुख के नगमे ही गाए हैं।
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वक्त चाल से अपनी ही चलता हरपल,
हमको तो बस अपने फर्ज निभाने थे।
जैसा आया मौसम भोग लिया हमने,
आलस ने पर ढूंढे कई बहाने थे।।
अपने मन का होतो सुख नाहो तो दुख,
मन पर अंकुश ने ही सुख बरसाए हैं।
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस,
इसीलिए सुख के नग्में ही गए हैं।।
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अलविदा बीस, इक्कीस विदाई देता है,
नहीं शिकायत तुमसे तुम इतिहास बने।
याद करेंगे लोग तुम्हें ना भूलेंगे,
वे सारे तुम जिनके खातिर खास बने।।
कुछ व्यक्ति भगवान बने जीवन देकर,
कुछ ने सेवा कर जीवन उजलाए हैं।
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस,
इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।।
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घर में रहकर जीने का आनंद लिया,
छोड़ी भागम भाग तो राहत पाई है।
काम "अनंत" दूसरों के आए तब ही,
दूर गई दुखदर्दो की परछाई है।।
जनहित सेजो भटकगए रहबर अपने,
सदमें ,ऐसो ने ही बहुत उठाएं हैं।
जीवन लक्ष्य रखा आंखोंमें हमने बस,
इसलिए सुख के नग्में ही गाए हैं।।
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
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