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Sunday, 1 March 2020

हमारे आने से पहले (कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'

हमारे आने से पहले 
(कविता)
तुम तो चले गये
हमारे आने से पहले

भुला मत देना वो मुलाकातें
हमारे मरने से पहले

मुरझाये महकता गुलाब
तुम आ जाना उससे पहले

बंद हों सांसें हमारी
हाथ थाम लेना उससे पहले

बीते मधुमास, आये पतझड़
तितलियों सी चहकना पहले

घर हमारा तोड़ मत देना
घर बसाने से पहले

साथ पार करेंगे दरिया
मुँह न मोड़ना, किनारा मिलने से पहले

तुम तो चले गये
हमारे आने से पहले
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
-०-

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सड़क पर सड़क नहीं (ललित आलेख) - डॉ. लालित्य ललित

सड़क पर सड़क नहीं
(ललित आलेख)
सड़कों पर शहर है। शहरी लोग है उसमें गांवों के आंचलिक लोग भी है जो किसी काम से शहर में आए हैं। कुछ रोजगारपरक है। कुछ व्यावहारिक भी। कुछ टाइमपास फ़ुरसतिया भी है। सड़कों पर गाड़ियां भी है। दुपिहया से लेकर चौपाया तक नए मॉडल से लेकर खटारा तक अपनी औकात से लेकर फैशन तक कर्ज में डूबे और कब्जियत से अघाए लोग सड़कों पर है। वे क्या करें, क्या न करें, बेबस लोग सड़कों पर समझदार लोग सावर्जनिक व्यवस्था का उपयोग कर रहे वे तनिक समझदार है। जरा सोचिए! जब सड़क नहीं तो महंगी गाड़ियों की आवश्यकता!सोचिये, आप ने गाड़ी ली। इंटरेस्ट रेट डाउन है। बायर है नहीं। इंस्टालमेन्ट भरना इतना आसान नहीं।  घरेलू आदमी अनेक विपदाओं से घिरा।  नई विपदा नहीं लेना चाहता उसे उसके माहौल में जी लेने दो। कितने दिन बचे है।  उसके पास खुली हवा के जब आक्सीजन बिक रही बाजारों में कोई क्या करेगा, कहाँ जाएगा। तमाशबीन लोग समझते नहीं। उन्हें तो स्टेटस सिंबल से सरोकार है। 
बस! उसके सिवाय उन्हें कुछ नहीं पता सड़क सड़क से लापता है। उसमें गड्ढे है। लगता है सड़क के ठेकेदार की व्यवस्था भी ईएमआई में फंस गई है। कुछ नहीं किया जा सकता, कुछ भी तो नहीं। तभी रामप्यारी ने कहा कि घर के जाले ही हटा दो। कुछ तो करो। पांडेय जी ने कहा कि जो मेरे लायक काम हो वही बताया करो,जब देखो जालें हटा दो। पांडेय जी को ये सब करना बड़ा बुरा लगता था।एक बार स्टूल से गिर गए थे। इस कारण जरा सतर्क रहते है।
अभी कुछ देर पहले राधेलालजी का फोन आया कि उनकी सोसायटी में दिवाली से पहले शनिवार को कवि सम्मेलन का कार्यक्रम है क्या आ पाओगे! पांडेय जी ने कहा कि प्रभु! इस बार अपनी बुकिंग जरा साउथ दिल्ली से आई है।पहले ही सहमति दे रखी है। आप ने निवेदन करने में देर कर दी।हम्म! अच्छा लगा कि आजकल बुकिंग चल रही है। पांडेय जी भी कम उस्ताद न थे,झट कह दिया कि नवरात्रि का असर है,मातारानी सब की सुनती है।देर ही अंधेर नहीं।
ठीक है जी।जैसा आप चाहे।राधेलालजी ने फोन रख दिया। पांडेय जी ने सोचा कि आखिर लिजलिजे लोग समाज में क्यों है! मन्थन शुरू हुआ और रचना तैयार हुई।
-०-
संपर्क
डॉ. लालित्य ललित
संपादक
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
नई दिल्ली-110070
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मिठाई (लघुकथा) - ज्योत्स्ना ' कपिल'

मिठाई
(लघुकथा)
रात को सोने से पहले परेश ने घर के दरवाजो का निरीक्षण किया। आश्वस्त होकर अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ा ही था कि तभी सदा के नास्तिक बाबूजी को उसने चुपके से पूजाघर से निकलते देखा।

"बाबूजी, इतनी रात को ... ?"

उसकी उत्सुकता जाग गई,और उसका पुलिसिया मन शंकित हो उठा। वह चुपके से उनके पीछे चल पड़ा। वे दबे पाँव अपने कमरे में चले गए, फिर उन्होंने अपना छिपाया हुआ हाथ माँ के आगे कर दिया

" लो तुम्हारे लिये लड्डू लाया हूँ, खा लो। "

" ये कहाँ से लाए आप ?"

" पूजा घर से ।" उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा।

" पर इस तरह ... "

" क्या करूँ, जानता नही क्या की तुम्हे बेसन के लड्डू कितने पसन्द हैं। परेश छोटा था तो हमेशा तुम अपने हिस्से का लड्डू उसे खिला दिया करती थीं। आज घर मे मिठाइयाँ भरी पड़ी हैं पर बेटे को ख्याल तक नही आया , की माँ को उसकी पसन्द की मिठाई खिला दे। "

" ऐसे मत सोचिए, उस पर जिम्मेदारियों का बोझ है, भूल गया होगा । " माँ ने उसका पक्ष लेते हुए कहा।

" तुम तो बस उसकी कमियाँ ही ढकती रहो , लो अब खा लो। "

" आप भी लीजिये न "

" नहीं, तुम खाओ, जीवनभर अपने हिस्से का दूसरों को ही देती आयीं। तुम्हे इस तरह तरसते नही देख सकता मैं ।" कहते हुए बाबूजी ने जबरन लड्डू उन्हें खिला दिया।

उसकी आँखें भर आयीं अपनी लापरवाही पर। माता पिता की भरपूर सेवा करने का उसका गुरुर चकनाचूर हो गया। घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था। उसने लड्डू का डिब्बा उठाया और नम आँखें लिये माँ बाबूजी के कमरे की ओर चल दिया।
-०-
पता - 
ज्योत्स्ना ' कपिल' 
गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश)

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'समझ जो पाया' (कविता) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'

'समझ जो पाया'
(कविता)
ज़िन्दगी की
किताब के
हर हर्फ़ में
है छिपा सन्देश
उजाले का।
समझ जो पाया
अमल में लाया
हो गया मालामाल
बंदा वह खुशहाल
नजर आया।
-०-
पता-
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा (हरियाणा)
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