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Wednesday, 15 January 2020

गुड़ की डली (लघुकथा) - तरुण कुमार दाधीच

गुड़ की डली
(लघुकथा)
चार दिन पहले स्वयंप्रभा जी की पोती मेखला का विवाह हुआ.सगे संबंधी सम्मिलित हुए.रिश्तेदारों और बारातियों को आलीशान होटलों में ठहराया गया. लजीज़ व्यंजनों तथा स्वरुचि भोज ने विवाह समारोह को अविस्मरणीय बना दिया.
घर में काम करने वाली बाई कमला की मां भंवरी एक दिन दोपहर के समय स्वयंप्रभा जी मिलने और बधाई देने पहुंची. दोनों के बीच स्वामिनी-सेविका से हटकर आत्मीयता रही थी जिसे अब कमला उसी तरह निभा रही थी।स्वयंप्रभा जी विचारने लगी कि बधाई की कौन सी मिठाई भंवरी को खिलाऊं?आजकल के भोजन समारोह से घर पर आता ही कहां है! आर्डर देकर मंगवाए मिठाई के डिब्बे हाथों हाथ बंट चुके थे. वो उठकर रसोई में गई और एक गुड़ की डली लाकर भंवरी को देते हुए कहा कि लो मुंह तो मीठा करो.भंवरी ने गुड़ की डली के दो टुकड़े कर एक स्वयं ने खाया और दूसरा स्वयंप्रभा जी को खिलाया.
लाखों रुपये विवाह में खर्चा करने के बाद भी स्वयंप्रभा के मुंह में गुड़ की डली कितना रस घोल पाई,पता नहीं परंतु भंवरी गुड़ की डली की मिठास से बहुत प्रसन्न थी.
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तरुण कुमार दाधीच
उदयपुर (राजस्थान)
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मकर संक्रांति का महत्व (आलेख) - सुरेश शर्मा

मकर संक्रांति का महत्व
(आलेख)
मकर संक्रांति ! यह पर्व हमारे हिन्दु धर्म की पुरानी रीति रिवाज के अनुसार पौराणिक तथ्यों के आधार पर मना जिता है । यह पर्व हमारे हिन्दु धर्म के प्रमुख त्योहारो में शामिल है । भारतवर्ष के हर राज्य मे इसे मनाया जाता है 
इसकी कुछ विशेषताएँ भी है । 
इसे दूसरे त्योहारो की तरह अलग तारीखों पर नही, बल्कि हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, जब सूर्य उत्तरायन होकर मकर रेखा से गुजरता है ।

पौराणिक कथा के अनुसार ,ज्योतिष की दृष्टि से इस दिन
सूर्य धनु राशि त्याग कर मकर राशि के अन्दर प्रवेश करता है तब जाकर सूर्य के उत्तरायण की प्रक्रिया आरंभ होती है ।

भारत के अलग -अलग प्रान्तो और क्षेत्रों मै इस पर्व को अलग -अलग तरह तथा अलग अलग नाम से मनाया जाता है । 
आन्ध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक मे इस पर्व को लोग 
बड़े हर्षोल्लास के साथ संक्रांति के नाम से मनाते है । वही कर्नाटक मे इसे पोंगल के नाम से बड़ी धूमधाम से मनाते हैं ।
हरियाणा तथा पंजाब मे लोग नई और लहलहाते फसल की खुशी मे लाहौरी के नाम से खुशियाॅ मनाते हुए इस पर्व को पालन करते हैं ।
असम के लोग इस पर्व को माघ बिहू के नाम से बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं । लोग तिल तथा गुड़ के लड्डू बनाकर आपस मे मिल बांटकर खाते हैं ।
कुछ प्रान्तो मे पतंगबाजी का भी आनंद उठाने का रिवाज हैं ।

वेद और पुराणो के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों मे तड़के उठकर नहाने से पुण्य की प्राप्ति भोजन होती हैं ।
ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथायों के अनुसार इस दिन गुड़ , तिल , चिड़वा फल तथा राशि दान करने से भी पुण्य होता है । ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से सूर्य देवता प्रसन्न हो जाते है ।
अन्ततः मै यही कहूंगा कि हमे भी सदियो से चली आ रही प्रथा का पालन करना चाहिए तथा हमारी आने वाली पीढ़ी को भी इसे मानने के लिए प्रेरित करना चाहिए ।
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सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
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उत्सव प्रिय : मनुष्य (आलेख) - डॉ गुलाब चंद पटेल

उत्सव प्रिय : मनुष्य
(आलेख )
महा कवि कालिदास ने यथोचित कहा है कि, उत्सव सब किसी लोगों को प्रिय है,हमारे उत्सव याने कि हमारा जीवन कोई न कोई जीवन दर्शन पेश कर रहा है, मकर संक्रांति भी ऎसा ही कुछ दर्शन करा रहा है,
हमारे युवा त्योहार चंद्र के क्षय और वृद्धि के आधर पर मनाते हैं, लेकिन सिर्फ एक मकर संक्रांति सूर्य की गति, (दिशा) के आधार पर मनाया जाता है, पोष मास में सूर्य सूर्य मकर संक्रांति मे प्रवेश करता हे, इस लिए उसे मकर संक्रांति याने कि उत्तरायण कहा जाता है.
दूसरी एक आश्चर्य की बात यह है कि, तिथि के साथ मनाए जाने वाले उत्सवों में से सिर्फ मकर संक्रांति अंग्रेजी महीने की 14 जनवरी के दिन पोष मास में ये पर्व आता है, प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनुसार हम मकर संक्रांति मनाते हैं, और पतंग उड़ाते है, लेकिन पतंगोत्सव तो उभर आया है, चीन se, चीन वासी अंतरिक्ष में बस्ते अपने पूर्वज और देवता तक मैसेज पहुचाने के लिए, प्राथना करते, हे. धीरे धीरे ये राष्ट्र की सीमा लांग कर पतंग उत्सव आया है, हमारे देश में, इस लिए ठंड के दिनों में इसे सहज रूप से हो जाता है सूर्य स्नान, देखिए, शरीर स्वास्थ को आनंद के साथ जोड़ लेने की कितनी अद्भुत कला हे.
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार से आज पतंग उत्सव मनाया जाता है. 
हमारे गुजरात राज्य मे मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की सर कार ने मकर संक्रांति पर्व अंतराष्ट्रीय पतंगोत्सव का आयोजन बर्षों पहले बहुत सारे सालो से शुरू किया है, और गुजरात के मुख्य शहरो मे समग्र विश्व के पतंग बाजों ने विभिन्न प्रकार की पतंग उड़ाने के लिए आमंत्रित किए जाते हैं, पतंगोत्सव देखने के लिए, हज़ारों लोग इकट्ठे होकर पतंगोत्सव का आनंद लेते हैं, 
सूर्य के संक्रमण के साथ हमारा जीवन जुड़ा हुआ है, वह दृष्टिकोण से यह उत्सव का संस्कृतिक रीत से महत्व अनोखा है, सूर्य अपनी आलस मिटाकर अंधकार के प्रति आक्रमण करने का प्रयास उस दिन करता हे, याने कि ये दिनों से धीरे धीरे लंबे होते जाते हैं, और रात्री छोटी होती जा रहती है, अच्छे कार्य करने के लिए शुभ दिनों की शुरुआत भी होती है, 14 दिसंबर से शुरू हुए क मुरत का जन्म होता है, जनवरी में मकर संक्रांति के दिन उसका अंत आता है, हिंदू मकर संक्रांति के बाद ही अपनी मृत्यु आए ऎसा मानते हैं, यमराज को मकर संक्रांति तक रोकने वाले पितामह भीष्म इसका श्रेष्ठ उदाहरण है, 
आनंदोत्सव के साथ मनके संकल्प बदलने चाहिए विचार क्रांति लानी चाहिए ऎसा संदेश भी मकर संक्रांति दे जाती है, सक्रांति याने कि संघ क्रांति, किसी भी महान कार्य मे संगठन की जरूरत होती है, संघ में विशिष्ट शक्ति होती है, जो किसी भी कठिन कार्य को सहज और सफल बनाता है, 
संघ मे जुड़े हुए लोगों के सम्बंध स्नेहपूर्ण और मधुर होना चाहिए, ये बात की स्मृति रूप संक्राति के दिन तिल गुड के लड्डू एक दूसरे को देने की प्रथा शायद इसी लिए हे, तिल मे स्निग्धता है, रुक्ष कठोर बने हुए संबंधो मे तिल स्निग्धता ला सकते हैं और गुड की मधुरता मन की कडवा हट दूर करे, ऎसे स्नेह और मिठास का प्रतीक है, तिल और गुड, महाराष्ट मे तो लोग एक दूसरे को तिल गुड देते हैं, और देने के समय कहते हैं कि, "तिल गुल ध्या आनी गॉड गॉड बोला" तिल के लड्डू मे पेसे रखकर देने की प्रथा गुप्त दान का महत्व समझाता है, लोग गरीबो को यथा शक्ति गुप्त दान का महत्व समझाता है, लोग गरीबो को यथा संभव दान देते हैं, पशु ओ को घुघुरि खिला हे, श्रीमंत लोग सोने का दान भी देते हैं 
यह उत्सव में तिल के लड्डू को महत्व पूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है, उसका नैसर्गीक कारण भी है, सर्दी की ऋतु में जकड़े हुए अंगों को लहू का भ्रमण मिलता है, शरीर रुक्ष हो जाय तब स्निग्धता की जरूरत होती है, स्निग्धता का गुण तिल मे रहा हैं, आयुर्वेद के अनुसार यह ऋतु में तिल उत्तम खुराक हे, 
तात्विक तात्विक धार्मिक दृष्टीकोण से देखा जाए तो ये अदृश्य ईश्वरीय शक्ति कोई अज्ञात बाल्कनी मे खड़ी रहकर अपने जीवन रूपी पतंग को उड़ा रहे हैं, हमारी पतंग की डोर उनके हाथ में है, वो डोर उनकी हाथो से छूट न जाय, हमारा जीवन अस्तव्यस्त न हो जाय उस लिए प्रभू को प्रार्थना करनी होगी,, हे प्रभु, मेरा जीवन पतंग जोक न जाय उस लिए, मेने तेरे हाथ में उसकी डोर दी है, सम्भाल ना, 
ये पर्व निमित सूर्य का प्रकाश, तिल गुड की मिठास और प्रभु पर विश्वास हमारे जीवन में सक्रिय होता है, तब ही ये हमारे जीवन का सही संक्रमण गिना जाता है! 
मकर संक्रांति का पर्व

14 जनवरी को ये दिन पवित्र पर्व के रूप में पूरे देश में "मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है, ये दिन का भारतीय खगोल, ज्योतिष, भौगोलिक, धार्मिक एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष महत्‍व पूर्ण हे ये जानकारी बहुत कम लोगो के पास हे, उस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है
भारतीया जायोतिष ग्रंथों में मकर संक्रांति के समय के अनुसार नियम दिन, नक्षत्र, योग जेसी चीजो को लक्ष में रखकर देश के भविष्य का फल कथन किया जाता है, मकर संक्रांति अगर सोम के दिन होती है तो, दोहरा, मंगल के दिन होती है तो महोदरी, बुध के दिन होती है तो मंदाकिनी, गुरु के दिन होती है तो नंदा, सुक्र के दिन होती है तो मिश्र और शनि के दिन होती है तो राक्षसी नाम दिया जाता है, ग्रंथों में बताया हे कि, ये दिन तिल का उपयोग विविध स्वरूपों में किया जाना चाहिए, शिवालय में तिल के तेल में दिया जलाना चाहिए, उस दिन सूर्य नारायण को दूध अर्पित करना चाहिए, पतंग चढ़ाने का भी सूर्य का संकेत है, वही सूर्य नारायण हे जिसने पांडवों को वन वास के दौरान अच्छी तरह जीने के लिए अक्षय पात्र दिया था,
तमिल में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है प्रथम दिन में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को चार दिनका का पौंगल को त्योहार के रूप में मनाया जाता है सूर्य पूजा केन्द्र स्थान पर होती है और मकर संक्रांति के दिन मंत्र, साधना, उपासना, विध्यभ्यास, स्पर्धात्मक प्रवूती, आर्थिक आयोजन, बचत, मूडी निवेश, नवीन धान्य का प्रसाद औषध के लिए वनस्पति की उपार्जन का काम करने का विशेष महत्व है
ये साल 14 जनवरी 2020 के दिन पोष वद चौथ मंगलवार को समय में सूर्य निरेयान मकर राशि में प्रवेश करता है
उतरायन और मकर संक्रांति मे भिन्नता है उतरायन का अर्थ है सूर्य का सायन मकर राशि में प्रवेश जब कि, मकर संक्रांति का अर्थ है सूर्य का निरेयान मकर राशि में प्रवेश करना, भूतकाल में स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 मकर संक्रांति के दिन हुआ था. अभी 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती है लेकिन नजदीकी भविष्य में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी, 72 से 73 सालो के बाद मकर संक्रांति एक दिन आगे यानी कि 14 के बजाय 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी, मकर संक्रांति मे स्वास्थ्य मे सुधार होता है, सफलता प्राप्त होती है, मकर संक्रांति के दिन राशिवाली व्यक्ति को नीचे दी गई जानकारी के मुताबिक काम करने से लाभ प्राप्त होता है
मेष और वरुषभ राशि सूर्य मंत्र के साथ मंगल मंत्र की एक एक माला जापे,
वरुषभ और तुला राशि वाली व्यक्ति को सूर्य के मंत्र के साथ एक एक माला सुक्र की भी करना होगा, 
मिथुन और कन्या राशि वाली व्यक्ति को सूर्य मंत्र के साथ बुध मंत्र की एक एक माला जपना होगा 
कर्क राशि वाली व्यक्ति को चंद्र के मंत्र के साथ सूर्य मंत्र की दो दो माला करनी होगी. धनु और मीन राशि वाली व्यक्ति को सूर्य के मंत्र के साथ गुरु का मंत्र सूर्य मंत्र के साथ एक एक माला करनी होगी
मकर और कुंभ राशि वाली व्यक्ति को सूर्य मंत्र के साथ शनि मंत्र की एक एक माला धर्म ग्रंथों के अनुसार करनी चाहिए
मकर संक्रांति के दिन कुत्तो को लड्डू बनाकर खिलाया जाता है, युवा और आदमी लोग पतंग चढ़ाने के लिए छत पर चले जाते हैं और पूरे दिन म्यूज़िक के साथ पतंग चढ़ाते हैं, तिल के व्यंजन खाते हैं, गरीबो को दान दिया जाता है, गौ माता को घास खिलाया जाता है, पतंग के शौखीं न लोग मकर संक्रांति के दूसरे दिन को बासी उतरायन के रूप में मनाकर दूसरे दिन भी पतंग चढ़ाने की अपनी इच्छा पूरी कर लेते हैं!
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डॉ गुलाब चंद पटेल
गाँधी नगर  (गुजरात)
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शिक्षक (लघुकथा) - महावीर उत्तराँचली

शिक्षक
(लघुकथा)
“आप हर परिस्थिति में इतने शांत, धीर-गंभीर कैसे रहते हैं?” उसने आश्चर्य से कहा.
“मैं जीवन के रहस्य को समझ गया हूँ बेटा,” वृद्ध व्यक्ति ने अपनी उम्र से आधे उस जिज्ञासु युवा से कहा, “क्या मैं तुम्हें बेटा कहने का अधिकार रखता हूँ.”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं, आप मेरे पिता की आयु के हैं,” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे कुछ ज्ञान दीजिये.”
“बचपन क्या है?” यूँ ही पूछ लिया वृद्ध ने.
“मूर्खतापूर्ण खेलों, अज्ञानता भरे प्रश्नों और हँसी-मज़ाक़ का समय बचपन है,” उसने ठहाका लगाते हुए कहा.
“नहीं वत्स, बाल्यावस्था जीवन का स्वर्णकाल है, जिज्ञासा भरे प्रश्नों, निस्वार्थ सच्ची हँसी का समय,” वृद्ध ने गंभीरता से जवाब दिया. फिर पुन:नया प्रश्न किया, “और जवानी?”
“मौज-मस्ती, भोग-विलास और एशो-आराम का दूसरा नाम जवानी है,” युवा तरुण उसी बिंदास स्वर में बोला.
“दायित्वों को पूर्ण गंभीरता से निभाने, उत्साह और स्फूर्ति से हर मुश्किल पर विजय पाने, नए स्वप्न सँजोने और सम्पूर्ण विश्व को नव दृष्टिकोण देने का नाम युवावस्था है,” वृद्ध ने उसी धैर्य के साथ कहा.
“लेकिन वृद्धावस्था तो मृत्यु की थका देने वाली प्रतीक्षा का नाम है,” वह तपाक से बोला. शायद वह बुढ़ापे पर भी वृद्ध के विचारों को जानना चाहता था, “जहाँ न ऊर्जा का संचार है, न स्वप्न देखने की ज़रूरत. बीमारी और दुःख-तकलीफ़ का दूसरा नाम जीवन संध्या. क्यों आपका क्या विचार है?” उसने मानो वृद्ध पर ही कटाक्ष किया हो.
“वत्स, तुम फिर ग़लत हो. जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखो.” वृद्ध ने अपना दृष्टिकोण रखा, “वृद्धावस्था उन सपनों को साकार करने की अवस्था है, जो तुम बचपन और जवानी में पूर्ण नहीं कर सके. अपने अनुभव बच्चों और युवाओं को बाँटने की उम्र है यह. रही बात मृत्यु की तो किसी भी क्षण और किसी भी अवस्था में आ सकती है, उसके लिए प्रतीक्षा कैसी?”
“आप यदि मेरे गुरु बन जाएँ तो संभव है मुझे नई दिशा-मार्गदर्शन मिल जाये,” नतमस्तक होकर वह वृद्ध शिक्षक के चरणों में गिर पड़ा.
•••
पता: 
महावीर उत्तराँचली
दिल्ली
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तेरी हथेलियाँ (कविता) शिखा सिंह

तेरी हथेलियाँ
(कविता) 
तेरी हथेलियों के छाले
मेरी प्यार की यादों को
छोटा कर देतीं है
जो धूप और छाँव को
देखें बगैर माता पिता
बेच देते है अपनी कीमती कुंजी
जो जीवित रखती है
अपने रिश्तों के ताले को
बिना नाप तौल के
गालियों की बौछार से
भर लेता है पेट अपना
ले आते है शाम की खुशियाँ
बटोर कर मैली कुचैली थैली में
परोसते है फिर भी प्रेम से
अपने जिगर के टुकड़ों को
उनकी साँसों से ही
बच्चों की किलकारियां है
जहाँ कुछ हो न हो
प्रेम का बंधन ही
बाँध कर भूख और प्यास
मिटा देती है
ऐसे जीते है रिश्ते
फुटपात पर बिना शर्त के
प्रेम से

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पता 
शिखा सिंह 
फतेहगढ़- फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)

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