परोपकार का भाव
(गजल)
कितना स्वच्छ सुंदर अपना शहर रखता है,परोपकार का भाव ठहरा शज़र रखता है ।
ग़म में बिखर कर भी हमेशा मुस्कुराता है ,
अपने साथ वह यादों का सफ़र रखता है ।
तरक्की के शिखर पर अब वही पहुंचता,
जो दिल इधर औ' दिमाग उधर रखता है ।
अब साजिशों से बच पाना है इधर मुश्किल ,
वो अपनों से बचने के लिए खंजर रखता है ।
शालीनता कहाँ शहरों की भूल-भुलैया में ,
वो तो घने साये में भी दोपहर रखता है ।
अपने किए की सजा सब यहीं भोग जाते ,
कोई तो है जो सब पर नज़र रखता है ।
वक्त के रण में हमेशा बनता वही सिकंदर ,
जो दोस्त संग दुश्मनों की भी ख़बर रखता है ।
अबकी हादसे में कम मिले अस्थि-पंजर ,
कौन है जो लाशों पर पत्थर रखता है ? -०-