(ग़ज़ल)
जग के उजियारे की ख़ातिर सूरज को तपना पड़ता है।
ग़म अंदर हों चाहे जितने,उनको सहना पड़ता है,
अपनो का दिल रखने को अश्क़ो को छुपाना पड़ता है।
सच के आगे बिका झूठ,दाम लगाना पड़ता है,
चलन है ये इस दुनिया का दस्तूर निभाना पड़ता है।
नहीं देर तक रहता साया,मिटना तो उसको पड़ता है,
खेल है ये बस धूप छाँव का मन को समझाना पड़ता है।
क़द कितना भी हो ऊँचा,झुकना फिर भी पड़ता है,
घर की साख बचाने को दिल पत्थर करना पड़ता है।-०-
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