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Monday, 14 September 2020

हिंदी मेरी भाषा (ग़ज़ल) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

कोरोना वायरस
(ग़ज़ल)
प्यारी - प्यारी सबसे न्यारी मेरी भाषा ।
हिंदी पर बिन्दी हिंदी प्यारी मेरी भाषा ।।

देश - विदेशों मे है जिसका गुणगान ।
सब से अच्छी सबसे प्यारी मेरी भाषा ।।

ज्ञान - विज्ञान का अखूट भण्डार है ये ।
इसलिए सब जन-जन पढते मेरी भाषा ।।

हिंदी पढेगा गर भारत का बच्चा - बच्चा।
सम्प्रेषण में भी उपयोगी होगी मेरी भाषा ।।

खेल- सिनेमा जगत ने जिसको अपनाया ।
एकता का हमें पाठ पढ़ाने वाली मेरीभाषा।

सब भाषाओं के संग जिसने मेल बिठाया ।
भाषायी ज्ञान जनजन तक लाई मेरीभाषा। 

राष्ट्र - भाषा का सम्मान जिसको मिला ।
देवनागरी लिपि जिसकी वैज्ञानिक भाषा ।।

सूफ़ी-संत-विद्वानों ने जिससे यश पाया ।
जाति-धर्म सब के मुख शोभित मेरी भाषा।

सविंधान ने जिस भाषा का गौरव बढाया।
हिंदी दिवस के रुप में मनाते वो मेरी भाषा।

अटल जी ने यू एन ओ में भी मान बढाया। 
हिंदी हैं हम वतन,हिंदी है प्यारी मेरी भाषा।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

***
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हिंदी दिवस पर विशेष (व्यंग्य) - सपना परिहार

हिंदी दिवस पर विशेष
(कविता)
हम कक्षा पहली में पढ़ते थे
अनार,आम सीखते थे।
स्वर, व्यंजन और बारहखड़ी
बड़े मजे से पढ़ते थे।
जैसे-जैसे बड़े हुए
हुआ शिक्षा का ज्ञान
हिंदी भाषा प्रिय लगी
किया उसका सम्मान।
संज्ञा,सर्वनाम,सन्धि ,समास
दिन भर रटते रहते थे
हिंदी विषय में जान लगाते
फिर भी पूरे नम्बर न मिलते थे।
आज के बच्चे अब हमसे
ज्यादा  नम्बर पाते है
क्या पता हिंदी जैसे कठिन
विषय में
सौ में से सौ नम्बर कैसे आते हैं?
कम्प्यूटर के इस युग की
कुछ बात मुझे समझ नहीं आती है?
हमारे समय मे हिंदी की उत्तर पुस्तिका
जाँचते समय पूरी लाल हो जाती थी
आज के बच्चों की पुस्तिका में 
शिक्षक को कोई त्रुटि नजर नहीं आती है।
कहने को तो मातृभाषा है हिंदी
पर लिखना,पढ़ना,भूल रहे सब
अंग्रेजी इतनीं हावी हो गयी
हिंदी बोलना भूल रहे हैं।
अध्ययन तक ही सीमित हिंदी
पाठ्यक्रम से बाहर नहीं
पाठ पढ़ाये रटे-रटाये
ऐसे शिक्षकों की भी कमी नहीं।
अभिवादन के नाम पर
अंग्रेजी का बोलबाला है
हस्ताक्षर के नाम पर आज
हर कोई सिग्नेचर करने वाला है।
मेरे देश की ये कैसी विडंबना हो गयी है
हिंदी बोलने वालों की पहचान
गवाँर की श्रेणी में हो गयी है।
जिसे आज के समय मे अंग्रेजी नहीं आती
उसकी समाज मे पूछ परख नहीं की जाती।
-०-
पता:
सपना परिहार 
उज्जैन (मध्यप्रदेश)


-०-
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राष्ट्रभाषा बने एक दिन (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


राष्ट्रभाषा बने एक दिन
(गीत)\
सारीजनता भारत की जब,
इसको गले  लगाएगी।
विश्वगगन   में  हिंदी   ऊँचा.
तब परचम लहराएंगी।।
*****
हिंदी    के   पहरेदारों    से,
मेरी सतत यही आशा।
राष्ट्रभाषा   बने   एक  दिन,
हिंदी ये है अभिलाषा।।
हिंदी में  साहित्य सृजन ही,
नई भोर  को लाएगी।
विश्व गगन  में  हिंदी  ऊँचा,
तब परचम लहराएंगी
******
हिंदी को मां समझने वालों,
हिंदी में  व्यवहार करो।
लिखना पढ़ना हिंदी  में  हो,
मत इससे इनकार करो।।
गौरवमयी   राष्ट्रभाषा    की,
पदवी जब मिल जाएगी।
विश्वगगन  में   हिंदी   ऊँचा,
तब परचम लहराएगी।।
******
तमिल तेलुगू मलयालम  हो,
भले मराठी गुजराती।
सब  हिंदी  की  छोटी  बहनें,
कोई नहीं खुराफाती।।
बड़ीबहन का साथ दिया तो,
शिखर नए छूपाएगी।
विश्व गगन   में  हिंदी  ऊँचा,
तब परचम लहराएगी।।
******
चाहे  जितनी  भाषा   सीखें,
हिंदी का सम्मान करें।
ममता   सदा  मातृभाषा  ही,
दे सकती है ध्यान करें।।
"अनंत"गर जनजन तकहिंदी,
पहुंची तो रंग लाएगी लाएगी।
विश्वगगन   में   हिंदी   ऊँचा,
तब परचम लहराएगी।।
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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राष्ट्रीय भाषा हिंदी का महत्व और हिंदी दिवस (आलेख) - राजीव डोगरा 'विमल'

राष्ट्रीय भाषा हिंदी का महत्व और हिंदी दिवस
(कविता)\
"निज भाषा बोलहु लिखहु पढ़हु गनहु सब लोग।
करहु सकल विषयन विषै निज भाषा उपजोग।।"
                                        -श्रीधर पाठक

हिंदी मात्र एक भाषा की नहीं है यह हम हिंदुस्तानियों की एक पहचान और शान है। हिंदी हमारी देश की राष्ट्रीय भाषा भी है। हर 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है आज हिंदी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि बहुत सारे और देशों में भी बोली जाती है।भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया
कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। 

अगर हम हिंदी भाषा की उत्पत्ति  के संबंध में  बात करें तो हिंदी की आदि जननी संस्कृत है।संस्कृत, पाली, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश तक पहुंचती है फिर अपभ्रंश, अवहट्ठ से गुजरती हुई प्राचीन हिंदी का रूप लेती है।सामान्यता हिंदी भाषा के इतिहास का आरंभ अपभ्रंश से माना जाता है।

अगर हम हिंदी शब्द की उत्पत्ति के बारे में बात करें तो हिंदू से ही हिंदी बना है हिंदू शब्द फारसी है जो संस्कृत शब्द सिंधु का फारसी रूपांतरण है। संस्कृत की सिंधु का इरानी में हिंदू हो गया जो सिंधु नदी के आसपास के प्रदेश के अर्थ में उपयुक्त हुआ और वहां के रहने वाले लोगों को हिंदू कहा गया। और वहां के लोगों की भाषा को हिंदी कहा गया।डाँ.भोलेनाथ तिवारी के अनुसार,

" हिंदू शब्द का प्राचीनतम प्रयोग 7 वीं सदी के अंतिम चरण के ग्रंथ निशीथचूर्णि में प्रथम बार मिला है।"

 तैमूर लंग की पोती सरफुद्दीन यज्दी ने सन 1424 ई. में अपने ग्रंथ 'जफरनामा" ने विदेशों में हिंदी भाषा के अर्थ में हिंदी शब्द का प्रयोग किया। डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा द्वारा संपादित हिंदी साहित्य कोश (भाग-1) के अनुसार 13-14 वी शती में देसी भाषा को हिंदी या हिंदकी या हिंदूई नाम देने वाले हसन या अमीर खुसरो का नाम सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

अगर हम हिंदी के आधुनिक काल की बात करें तो भी हिंदी को 20वीं सदी तक संघर्ष करना पड़ा क्योंकि 19 सदी तक ब्रजभाषा काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी।भारतेंदुयुग में भारतेंदु जी ने गद्य में हिंदी का प्रयोग आरंभ कर दिया था मगर 1900 ईसवी के बाद आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने जब सरस्वती पत्रिका का कार्य भार संभाला तो हिंदी गद्य के साथ-साथ पद्य में भी प्रतिष्ठित होने लग पड़ी।

भारत की स्वतंत्रता  के पहले  समाज सुधारक और धर्म सुधारक संस्थाओं का भी हिंदी को राष्ट्रीय भाषा  बनाने में  बेजोड़  सहयोग है। समाज सुधार की सभी संस्थाओं ने हिंदी भाषा को विशेष हिमायत भी और हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने पर जोर दिया ब्रह्म समाज के राजा राममोहन राय ने कहा कि,

" इस समग्र देश की एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है।"

दूसरी तरफ आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती ने हिंदी के प्रयोग को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया।वह कहते थे कि,

"मेरी आंखें उस दिन को देखना चाहती है जब कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सब भारतीय एक भाषा समझने और बोलने लग जाएं।"

भारत की स्वतंत्रता के बाद हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में गौरवान्वित किया गया। और भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक हिंदी भाषा के लिए प्रवाधान रखा गए। आज हिंदी हमारे देश की भाषा ही नहीं राष्ट्रीय भाषा के रूप में जाती है। भाषा की महत्व को बताती हुई गांधी जी बोलते हैं कि,

" मेरी मातृभाषा में कितनी खामियां क्यों ना हो मैं इसे इसी तरह चिपका रहूंगा जिस तरह एक बच्चा अपनी मां की छाती से जो जीवनदाई दूध दे सकती है अगर अंग्रेजी उस की जगह को हड़पना चाहती है जिसकी वह हकदार नहीं है तो मैं उसे सख्त नफरत करूंगा वह कुछ लोगों के सीखने की वस्तु हो सकती है लाखों करोड़ों कि नहीं।"

अंत में मैं अपनी कलम को विराम देते हुए यही कहूंगा हिंदी दिवस मात्र हिंदी का दिवस नहीं है हिंदी दिवस हमारी मातृभाषा का दिवस है जो लंबे समय से हमारा साथ निभा रही है भले ही बदलते समय के पारूप में इसमें बहुत बदलाव आए हैं मगर फिर भी यह एक मां की तरह हमारा हाथ थामे चलती रही है और आज भी क्या चल रही है। इसीलिए हमें भी एक अच्छे बच्चे की तरह अपनी मां का साथ निभाते रहना चाहिए ।।      "जय हिंद जय हिंदी"
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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हिंदी प्रचार-प्रसार में साहित्यकारों की भूमिका (आलेख) - सुरेश शर्मा

हिंदी प्रचार-प्रसार में साहित्यकारों की भूमिका
(आलेख)
हमारी  मातृभाषा  हिंदी का इतिहास  बहुत  ही  पुराना तथा महत्वपूर्ण है। प्राचीन  काल  से  हीं हमारी  मातृभाषा हिन्दी की गुणगान  गूंजती  आ  रही  है । विश्व  के सैकड़ों  देशों में जब लोग पढना लिखना   सिख  रहें थे तभी  हमारे भारतवर्ष  में शिक्षण  संस्थान  एवं बड़े  बड़े  गुरुकुल  चलाए  जातें थें ।

हिन्दी  हमारी  मातृभाषा  है तथा यह  हमारे देश की प्राण  और हम हिन्दीभाषियों की पहचान है । किसी भी भाषा  को विश्वरूप देने तथा शिखर तक  पहुंचाने में  उस देश के  साहित्यकारों का बहुत बड़ा  योगदान  होता  है । उनके अथक  परिश्रम  से  ही  किसी  भी  देश की भाषा  चरम  शिखर  तक  पहुंच  कर सदियों तक  लोगों के दिलों में राज  करता  है ।
पता नहीं कैसे सोने की चिड़िया  कहलाने वाली  हमारे  देश  पर किसकी  कुदृष्टि  पड़ी और बाहरी  ताकतों के  चपेट में आ  गई ।
    सदियों तक  मुगलों और अंग्रेजों ने शासन  किया। क्रूरता  की  सारी  हदें पार कर दी, हमारी  संस्कृति  को  तहस नहस  करने  में कोई  कसर  बाकी  नहीं रखा । हमारे  पौराणिक  ग्रंथों प्राचीन मंदिरों तथा  हमारे पूर्वजों के धरोहर को नष्ट  करने  की  भरपूर कोशिश  की लेकिन  किसी  देश की संस्कृति  एवं भाषा  को मिटाना  इतना  आसान  नही  होता है। और हमारे देश के  साहित्यकारों ने सचमुच यह साबित  कर  के  दिखा दिया । हमारी  संस्कृति  और भाषा  को  कोई  भी  आसानी  से नहीं मिटा  सकता । हमारे देश के साहित्यकारों ने  लोगों के दिलों में हिन्दी  के  प्रति  सम्मान  को  जिन्दा  रखा ।
   स्वतंत्रता संग्राम  की लड़ाई  में हमारे बहुत सारे  साहित्यकार  रचनाकार एवं लेखक ने भी अपना योगदान  दिया  और अपनी देश  प्रेम  से  ओतप्रोत  रचनाओं के माध्यम  से देशवासियों  के दिल में अंग्रेजों से लड़ने  की प्रेरणा  दी और इस तरह आजादी  की जंग जीतने  में अपनी  भूमिका  निभाई । प्रताप  नारायण  मिश्र,  बद्रीनारायण  चौधरी,राधाकृष्ण ठाकुर, जगमोहन  सिंह,  प॔ अम्बिका दत्त  व्यास , बाबू  रामकृष्ण  वर्मा  आदि  साहित्यकारों ने स्वतंत्रता  आंदोलन  की  धधकती हुई  ज्वाला को  प्रचंड  रूप  दिया  तथा  विदेशियों से अपनी आजादी  छीनी ।
हमे आजादी  1947 में मिली हमे   हमारे  साहित्यकारों की लगन और मेहनत  की बदौलत  14 सितंबर  1949 को  असली  आजादी  मिली क्योकि  उसी दिन  से  हमारी मातृभाषा हिंदी  को राष्ट्रीय  सम्मान  मिला ।
      आज भारत सहित  विश्व  भर में  लगभग  80 करोड़  लोग हिंदी  भाषा बोलते हैं । हमारे  देश  में हीं  तकरीबन 52 करोड़  लोग  हिन्दी  बोलते हैं और  यह सब सिर्फ  हमारे  देश के  साहित्यकारों के  बदौलत  हीं सम्भव हो सका  है  ।

आज हिन्दी  विश्व  की  सर्वोच्च  भाषाओं में तीसरे  नंबर पर गणना  की  जाती  है । और विदेशों में हमारी मातृभाषा  को  बड़े  ही  गर्व  से  बोली  जाती है । अंततः  मैं यही  कहूंगा  कि  हमारी  मातृभाषा  हिंदी  की  सेवा कर हमारे  साहित्यकारों नें सर्वोच्च  स्थान  पर पहुंचाया हैं ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

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हिन्दुस्तान में हिन्दी का हो रहा पतन (हिंदी) - अतुल पाठक 'धैर्य'


हिन्दुस्तान में हिन्दी का हो रहा पतन
(कविता)

जगह जगह अंग्रेजी मीडियम स्कूल की लग गई खूब कतार
हिन्द के देश में हिन्दी के संग हो रहा अत्याचार

जहाँ देखों नज़र वहीं आता अंग्रेजी संस्थान
पिछड़ रही है हिन्दी भाषा नहीं हो रहा उत्थान

क्या यह वही हिन्दुस्तान वतन है
जहाँ पर हिन्दी का हो रहा पतन है

आज अपने ही घर में हिन्दी हो रही पराई है
हिन्दुस्तान में रहने वालों को ही हिन्दी में लगती बुराई है

हिन्दी से हिन्दुस्तान में इस क़दर गर परहेज न होता
तो लाखों की तादाद में बच्चा हिन्दी में ही अनुत्तीर्ण न होता

आज हम लोगों की वजह से हिन्दी की ऐसी दुर्दशा हई है
कि मातृभाषा हिन्दी अपनी ही मातृभूमि पर शर्मिंदा हुई है

विनती करती है हिन्दी मुझको दिल से अपनाओ
हिन्दुस्तान की पहचान अपनी हिन्दी को बनाओ

वरना इक दिन ऐसा भी आएगा
हिन्दुस्तान में हिन्दी का भाव खो जाएगा
-०-
पता: 
अतुल पाठक  'धैर्य'
जनपद हाथरस (उत्तरप्रदेश)

-०-

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श्रृंगार की बिंदी है हिंदी (कविता) - डॉ. कान्ति लाल यादव


श्रृंगार की बिंदी है हिंदी
(कविता)
भारत की शान है हिंदी।
देश की धड़कन है हिंदी।
स्वाभिमान की भाषा है हिंदी।
आत्म सम्मान की आशा है हिंदी।
दीया-बाती की रोशनी है हिंदी।
मां की ममता का सागर है हिंदी।
पिता की कठोरता की सीख है हिंदी।
परिवार का पलता दुलार है हिंदी।
भारत का यश-गायन है हिंदी।
ऋतुराज की मनमोहक फुलवारी है हिंदी।
संगीत के सुरों की साज है हिंदी।
मां वीणापाणी का वरदान है हिंदी।
भारत की बढ़ती-पहचान कराती,
विश्व में लोकप्रिय बनी,महान् है हिंदी।
कवियों के छंदों की श्रृंगार है हिंदी।
संस्कारों की अद्भुत खान है हिंदी ।
साहित्यकारों की शान है हिंदी।
शिक्षकों के कलम की तकदीर है हिंदी।
मनभावों के रंगों की रंगोली है हिंदी।
सभ्यता-संस्कृति का सौंदर्य है हिंदी।
गीतों में फनकारों की गूंज है हिंदी।
विश्व में घुलमिलती अद्भुत है हिंदी।
दुनिया में शब्दकोश का भंडार है हिंदी।
आज जन-जन में प्रेम-दुलार को बाँटती मधुर आवाज है हिंदी।
भारत माता के श्रृंगार की बिंदी है हिंदी।
-०-
डॉ. कान्ति लाल यादव
(सामाजिक कार्यकर्ता)
-०-

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हिंदी हमारी (मुक्तक) - अमित खरे

हिंदी हमारी
(मुक्तक)
सच पूँछो तो जान है हिन्दी
मेरा तो अभिमान है हिन्दी
अम्बर भी छोटा पड़ जाता
इतनी बड़ी उड़ान है हिन्दी
*************************
हिन्दी का विस्तार निरन्तर
बढ़ता है आकार निरन्तर
जीवन में जो भी पाया है
हिन्दी का उपकार निरन्तर
**********************
हिन्दी है व्यवहार की भाषा
हिन्दी हो संसार की भाषा
दुनिया के व्यापारी कहते
हिन्दी है व्यापार की भाषा
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




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शान यै हिंदी (कविता) - रश्मि लता मिश्रा

शान यै हिंदी
(कविता)
उठो बन्धुओं सो न जागो
बढ़ाओ भाषा शान भी
हिंदी खातिर सब जुट जाओ
है ये पूजा,प्राण भी
हिंदी भाषी,हिंदी प्रेमी
हिंदी कामतवाला है ।
हिंदी को समृद्ध है करने
इसमें प्रण कर डाला है।
राष्ट्रभाषा बनाएं इसको,
लक्ष्य है अपना काम भी
हिंदी खातिर सब,,

हिंदी की सेवा की खातिर ही
अभियान चलाना है।
हिंदी को हम हीन न समझें
घर-घर अलख जगाना है।
हिंदी में ही बात करें हम,
बातें हिंदुस्तान की।
हिंदी खातिर,

हिंदी हैं हम,वतन हिन्दुस्ता
इसके गुण ही गाएंगे
भारतीयों सभी देखो अब
इस मैदान में आएंगे
वतन है अपना जब हिन्दुस्ता
ठान ली है हमने सेवा
हिंदी हिंदुस्तान की।
हिंदी खातिर,,
-०-
पता:
रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 
-०-


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हिंदी की ख्याति (आलेख) - सत्यम भारती

हिंदी की ख्याति
(आलेख)
भाषा किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति का अक्षय कोश होती है जिसमें उस देश की समस्त बौद्धिक, अध्यात्मिक, और भौतिक विकास चित्रित होता है । उसमें पुरातन जीवन संघर्ष, आस्थाएँ, परंपरा, मान्यता, वैभव, ज्ञान-विज्ञान, कला, साहित्य, स्थापत्य आदि का उत्तोरोत्तर विकास मुखरित होता है । भाषा में तो पुराने मूल्यों के अवशेष, पुराने खडंहर तथा लोकसंगीत के स्वर सुनाई पड़ते ही हैं साथ ही साथ भविष्य क्रमिक जीवन विकास भी प्रतिबिंबित होती है । हिन्दी भारत की न केवल भाषा है बल्कि यह अनेकता में एकता का प्रतीक भी है । हिन्दी भारत की एक ऐसी भाषा है जो संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश से विकसित होकर सदियों से सहृदयों का कंठाहार बनी है और दलित-शोषितों की अभिव्यक्ति का सुदृढ़ और सशक्त साधन भी । 
14 सितंबर 1949 को हिन्दी को भारतीय संविधान द्वारा राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ तथा अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक राजभाषा के उपबंधों की चर्चा की गयी । हिन्दी जब खुलकर लोगों के सामने आने लगी तब इसका चतुर्दिक विकास प्रारंभ हुआ और यह देश से लेकर विदेशों तक प्रचारित होने लगी । यह वर्तमान में फिजी, त्रिनिदाद, सुरीनाम, कम्बोडिया आदि देशों की प्रमुख भाषा है तो वहीं अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी-अरब, इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा खाड़ी देशों में भी हिन्दी भाषी बहुतायत मात्रा में मिल जाते हैं ।
डाॅ जयंती प्रसाद नौटियाल के शोध के अनुसार- हिन्दी आज विश्व में चीन की मंडारिन बाद दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है । अनेक विद्वानों का यह मत है कि आने वाले भविष्य में इन्हीं दोनों भाषाओं का वर्चस्व विश्व में होगा । जिसका कारण- उभरती हुई अर्थव्यवस्था, संख्याबल, वैज्ञानिक लिपि तथा विस्तृत बाजार है । 
वैश्वीकरण और बाजारीकरण के इस दौर में पूरा विश्व एक बाजार बनता जा रहा है जहाँ हर देश व्यापार करना चाहता है । भारत में विस्तृत बाजार को देखते हुए विदेशों में हिन्दी का अध्ययन, अध्यापन, प्रशिक्षण और शोध प्रारंभ हो गये हैं । हाल ही में आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में हिन्दी को शामिल किया गया है । अमेरिका के पेनसिल्वेनिया युनिवर्सिटी के एमबीए कोर्स में दो वर्षीय पाठ्यक्रम अनिवार्य कर दिया गया है । वैश्वीकरण की आवश्यकताओं व भारतीय संस्कृति की ओर बढ़ते दुनिया की रूझान को देखते हुए आज अमेरिका और यूरोप के कई देशों में " इंडियन स्टडी सेंटर " खोले गये हैं जहाँ भारतीय धर्म, इतिहास, पुरातत्व, साहित्य, कला, स्थापत्य, चिकित्सा, ज्ञान-विज्ञान समझने के लिए शोध कार्य हो रहे हैं । आज विश्व के लगभग 130 विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन हो रहा है । दुनिया में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अख़बार और देखे जाने टी.वी .चैनल भी हिन्दी भाषी हैं । योग सिखाने के बहाने हिन्दी आज विश्व के कोने-कोने में फैल रही है । गूगल ने हिन्दी सोफ्टवेयर बना कर हिन्दी को और भाषाओं से जोड़कर समृद्धि और संगठित होने का मार्ग सुझाया है । 
हिन्दी भाषा को अंतराष्ट्रीय भाषा बनाने में भारतवंशी और अप्रवासी भारतीयों का काफी योगदान है । माॅरिशस और खाड़ी देशों में बसे हुए भारतवंशी जो तथाकित "गिरमिटिया" कहे जाते हैं उनके द्वारा रचित साहित्य जो 'प्रवासी साहित्य ' कहलाता है उसका भी हिन्दी के विकास और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका है । अभिमन्यु अनंत, रामदेव धुरंधर, महेशराज जियावान आदि माॅरिशस के लेखक हैं जो 'नाॅस्टेल्जिया' को आधार बनाकर साहित्य रच रहें हैं ।
हिन्दी को अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाने में खेलों और फिल्मों का काफी योगदान रहा है । आईपीएल, क्रिकेट विश्वकप, एशियाई खेल आदि के बहाने हिन्दी दूर देशों में जा रही है तथा सज-सँवर रही है । हिन्दी फिल्म उद्योग अर्थात बाॅलीवुड विश्व की प्रमुख फिल्म उद्योगों में से एक है । चीन, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, अमेरिका तथा खाड़ी देशों में हिन्दी फिल्में खूब पसंद की जाती हैं । विदेशों के कलाकारों को भी बाॅलीवुड मौका दे रही है । एक शोध से पता चला है कि विश्व की हर चार फिल्मों में एक हिन्दी भाषा की फिल्म होती हैं । भारत की लगभग 60% रिलीज फिल्में हिन्दी की होती हैं । आज हिन्दी फिल्में ऑस्कर के लिए भी नामित हो रहे हैं । 
बाजारीकरण के इस दौर में पेप्सी, रिबाॅक, टाटा मोटर्स,कोकाकोला, सैमसंग आदि जैसी बड़ी बड़ी कंपनियाँ अपना विज्ञापन हिंदी भाषा में करते हैं । चीन, जापान,अमेरिका, कनाडा आदि जैसे विकसित देशों से छात्र भारत में हिंदी अध्ययन के लिए आते हैं जो उसके बढ़ते शक्ति का द्योतक है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण जेएनयू का भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र है जहाँ विदेशों से हर साल दर्जनों की संख्या में छात्र हिंदी सीखने आते हैं । 
विश्वपटल पर भाषाएँ, संस्कृतियाँ आदि को मिलाने में इलेक्ट्रोनिक मीडीया और प्रींट मीडीया का भी काफी योगदान है। सूचना और संचार क्रांति के माध्यमों के कारण हिंदी न केवल सुदूर ग्रामीण क्षेत्र बल्कि विदेशों में बसे भारतवंशी के लिए संवाद स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । इंटरनेट,वाट्सएप, फेसबुक , टीवटर, ब्लाॅग, इमेल आदि वो माध्यम हैं जिससे दो भिन्न संस्कृतियाँ मिल भी रही हैं और जनसंचार का माध्यम भी बन रही है । सोशल मीडीया नयी प्रतिभा को मंच प्रदान कर रहा है । अनंत, सौरभ, विश्व प्रकाश आदि पत्रिका विदेशों से प्रकाशित होने वाली हिंदी पत्रिका है । कविता कोश, गद्यकोश आदि जैसे साइट निःशुल्क रूप से हिन्दी साहित्य को आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध करा रही है । सोशल मीडीया ने एक नयी भाषा का ईजाद किया है- ' हिंग्लीश ' , यह हिंदी और अंग्रेजी का सम्मिलित रूप होता है जो आम बोलचाल में भी प्रयुक्त हो रहें हैं ।
भारत सरकार द्वार स्थापित महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय हिन्दी के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप को विकसित करने में एक सचेष्ट भूमिका अदा कर रहा है । यह विश्वविद्यालय नयी वैश्विक व्यवस्था के अनुसार विषयों के अध्ययन-अध्यापन का प्रारूप तैयार कर उसका क्रियान्वयन कर रहा है । hindisamay.com इसी विश्वविद्यालय की साइट है जिस पर हिंदी साहित्य संबंधी पाठ्य सामग्री निःशुल्क उपलब्ध है । ई बुक, ई लाइब्रेरी तथा ई पत्रिका आदि को हिन्दी को आधुनिक बना रहा है ।
देवनागरी लिपि को वैज्ञानिक लिपि भी कहा जाता है क्योंकि इसमें वही पढ़ा जाता है जो लिखा जाता है अर्थात एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण होता है जो अन्य भाषाओं की लिपि में नहीं हैं । हिंदी शब्दों को एकत्रित कर एक विश्वकोष बनाया जा रहा है जो एक नये आयाम की ओर ले जायेगा । अनुवाद कार्य के द्वारा हिंदी साहित्य अहिंदी भाषी देशों में जा रहें हैं और खूब पसंद भी किये जा रहें हैं । समय समय पर होने वाले विश्वहिंदी सम्मेलन भी हिंदी को चौमुखी विकास की ओर अग्रसर कर रहा है । हिंदी ने उर्दू, अंग्रेजी, अरबी, फारसी, जपानी, पुतर्गाली आदि भाषाओं के शब्दों को आत्मसात कर मिला लिया है। हिंदी साहित्य विपुल और मानवीय संवेदनाओं के प्रति संतोष रखने वाली साहित्य है यही कारण है कि वर्षों तक गुलाम रहने वाली यह भाषा आज विकसित देशों के सामने तजुर्बे के साथ ससम्मान खड़ी है । हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा बनाने की भी मांग जारी है ।
हिन्दी पढ़ने वाले वर्गों की संख्या इतनी अधिक है कि बहुत से अहिंदी भाषी साहित्यकार अपनी कृतियों का अनुवाद हिन्दी में कराते हैं । उर्दू के प्रसिद्ध आलोचक प्रो.एहतराम हुसैन मानते हैं कि उर्दू अगर कहीं जिंदा रह सकती है तो वह हिन्दी साहित्य में । हिन्दी की लोकप्रियता प्राचीन काल से ही रही है, एक वह दौर था जब देवकीनंदन खत्री की चन्द्रकांता पढने के लिए बहुत सारे अहिन्दी भाषियों ने हिन्दी सीखा । हिंदी साहित्य से उपजे विभिन्न विमर्श- दलित विमर्श, स्त्री-विमर्श, आदिवासी विमर्श आदि मानवीय अस्मितामूलक विमर्श विभिन्न देशों के समाज द्वारा स्वीकार किया जा रहा है ।
भारत में हिन्दी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है तो वहीं विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है क्योंकि 10 जनवरी 1975 को प्रथम विश्वहिंदी सम्मेलन नागपुर में आयोजित हुआ था । भूतपूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को इसे इस रूप में मनाने का निर्णय लिया था तब से यह विदेशों में स्थापित भारतीय दूतावासों पर पूरे उत्साह से मनाया जाता है । इसका उद्देश्य विदेशों में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए संकल्पनात्मक कार्य करना है । विश्व के विभिन्न देशों में हिंदी रोजगार के पर्याप्त अवसर भी प्रदान कर रही है । यूनेस्को के बहुत सारे कार्य हिंदी में सम्पन्न होते हैं तो वहीं विदेशों में स्थापित " भारतीय विद्यापीठ " भी हिन्दी को प्रचारित कर रही है ।
आज हिंदी भले ही विश्वपटल पर अपना वर्चस्व दिखा रही हो लेकिन हिंदी की स्थिती भारत में खराब होती जा रही है । हिंदी अपने ही घर में प्रवासिनी बनी बैठी है और अंग्रेजी सौतन की तरह सर्वत्र सम्मान प्राप्त कर रही है । हिंदी मीडीयम में पढ़ने वाले बच्चे गरीब, हीन और दिमागी रूप से कमजोर समझे जाता हैं । हिंदी के विकास के लिए जब भी सरकार " त्रिभाषीय फार्मुले " पर बात करती है तो अपने सी लोग विरोध में आवाज उठाने लगते हैं । हिंदी आजादी के इतने सालों बाद भी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बन सकीं , इसके पीछे का कारण- स्वार्थमय राजनीति, संकीर्ण सोच, रोजगारों का अभाव । 
हिंदी जब तक हमारी पेट की भाषा नहीं बनेगी तब तक यह अपने ही घर में विरोध झेलती रहेगी । हिंदी को शुद्धतावाद की नहीं प्रबुद्धतावाद की जरूरत है । हिंदी को संपर्क भाषा से निकाल कर उसे ज्ञान की भाषा के रूप में विकसित करने की जरूरत है । हिंदी को अन्य भाषा के प्रति उदारता बरतनी होगी तथा वैसे लोगों का भी सम्मान करना होगा जो हिंदी सीखना चाहते हो । तकनीक शब्दावली गढ़ते समय केवल संस्कृत के शब्दों का प्रयोग नहीं करनी चाहिए, इसके लिए हम क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अच्छी पुस्तकें लिखी जाए जिससे हिंदी मीडीयम में पढनः वाले बच्चे भी आगे बढ सकें । प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाला भाषानुवाद बहुत ही मजाकिया और कौतुहलपूर्ण होता है । गूगल ट्रांसलेट करने के बजाय मौलिक अनुवाद पर जोड़ दिया जाना चाहिए । 
हिंदी की पहुंच अंतराष्ट्रीयंस्तर पर न केवल भाषा के रूप में बल्कि यह समाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक संरचनाओं की संवाहिका भी बन रही है । हिंदी आज विश्व में जनसंचार माध्यमों में बड़े पैमाने पर प्रयुक्त हो रही है । वैश्वीकरण और बाजारीकरण के कारण हिंदी के विस्तृत क्षेत्र एवं पाठक होने के कारण अंतराष्ट्रीय संस्थाओं और कंपनियों को हिन्दी को बढ़ावा देना मजबूरी सी हो गयी है । यदि भारत की राजनीतिक इच्छा शक्ति थोड़ा और दिलचस्पी लेकर इस दिशा में सराहनीय कार्य करे तो हिंदी की लोकप्रियता और बढ़ सकती है । आधुनिक युग में अंग्रेजी पढ़ना-लिखना बुरी बात नहीं है किन्तु अपनी ही मातृभाषा की उपेक्षा करना राष्ट्रीय शर्म का विषय है । अपने हीन ग्रंथि को त्याग कर अपनी मातृभाषा का सम्मान कर ही हम विकास के मार्ग पर चल सकते हैं क्योंकि भाषा का विकास समाज का विकास है । मैथिलीशरण गुप्त मातृभाषा के संदर्भ में लिखते हैं-
" जिसको न निज भाषा निज देश का अभिमान है,
वह नर नहीं, निर पशु निरा और मृतक समान है । "
-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
-०-

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हिंदी ही है पहचान हमारी (कविता) - सुरेश शर्मा


हिंदी ही है पहचान हमारी
(कविता)
हिन्दी प्यारी हिन्दुस्तानी हमारी ,
हम सारे है हिन्दुस्तान के वासी ।
विश्व की सारी भाषाओं मे ,
हिंदी ही हमसब को ज्यादा भाती ।

हिंदी मे है पवित्रता की निशानी ,
दिल से सीखो मन से पढो ।
विश्व मे हिंदी का कीर्तिमान अर्जित करो ,
क्योंकि हिंदी ही है पहचान हमारी ।

विश्व भर के सारे हिन्दीभाषी ,
देश विदेश मे अपना मान बढाओ ,
हिन्दी से जुड़कर उसका सम्मान बढाओ ,
हिन्दी ही है साधू और संतों की वाणी ।

जात-पात, वर्ण ,भेद-भाव को ,
दिल से हमे है आज मिटानी ।
विश्व हिंदी के शुभ अवसर पर ,
हिन्दी हो विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा 
हम सब सिर्फ इसके है अभिलाषी ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

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