भाषा किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति का अक्षय कोश होती है जिसमें उस देश की समस्त बौद्धिक, अध्यात्मिक, और भौतिक विकास चित्रित होता है । उसमें पुरातन जीवन संघर्ष, आस्थाएँ, परंपरा, मान्यता, वैभव, ज्ञान-विज्ञान, कला, साहित्य, स्थापत्य आदि का उत्तोरोत्तर विकास मुखरित होता है । भाषा में तो पुराने मूल्यों के अवशेष, पुराने खडंहर तथा लोकसंगीत के स्वर सुनाई पड़ते ही हैं साथ ही साथ भविष्य क्रमिक जीवन विकास भी प्रतिबिंबित होती है । हिन्दी भारत की न केवल भाषा है बल्कि यह अनेकता में एकता का प्रतीक भी है । हिन्दी भारत की एक ऐसी भाषा है जो संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश से विकसित होकर सदियों से सहृदयों का कंठाहार बनी है और दलित-शोषितों की अभिव्यक्ति का सुदृढ़ और सशक्त साधन भी ।
14 सितंबर 1949 को हिन्दी को भारतीय संविधान द्वारा राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ तथा अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक राजभाषा के उपबंधों की चर्चा की गयी । हिन्दी जब खुलकर लोगों के सामने आने लगी तब इसका चतुर्दिक विकास प्रारंभ हुआ और यह देश से लेकर विदेशों तक प्रचारित होने लगी । यह वर्तमान में फिजी, त्रिनिदाद, सुरीनाम, कम्बोडिया आदि देशों की प्रमुख भाषा है तो वहीं अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी-अरब, इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा खाड़ी देशों में भी हिन्दी भाषी बहुतायत मात्रा में मिल जाते हैं ।
डाॅ जयंती प्रसाद नौटियाल के शोध के अनुसार- हिन्दी आज विश्व में चीन की मंडारिन बाद दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है । अनेक विद्वानों का यह मत है कि आने वाले भविष्य में इन्हीं दोनों भाषाओं का वर्चस्व विश्व में होगा । जिसका कारण- उभरती हुई अर्थव्यवस्था, संख्याबल, वैज्ञानिक लिपि तथा विस्तृत बाजार है ।
वैश्वीकरण और बाजारीकरण के इस दौर में पूरा विश्व एक बाजार बनता जा रहा है जहाँ हर देश व्यापार करना चाहता है । भारत में विस्तृत बाजार को देखते हुए विदेशों में हिन्दी का अध्ययन, अध्यापन, प्रशिक्षण और शोध प्रारंभ हो गये हैं । हाल ही में आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में हिन्दी को शामिल किया गया है । अमेरिका के पेनसिल्वेनिया युनिवर्सिटी के एमबीए कोर्स में दो वर्षीय पाठ्यक्रम अनिवार्य कर दिया गया है । वैश्वीकरण की आवश्यकताओं व भारतीय संस्कृति की ओर बढ़ते दुनिया की रूझान को देखते हुए आज अमेरिका और यूरोप के कई देशों में " इंडियन स्टडी सेंटर " खोले गये हैं जहाँ भारतीय धर्म, इतिहास, पुरातत्व, साहित्य, कला, स्थापत्य, चिकित्सा, ज्ञान-विज्ञान समझने के लिए शोध कार्य हो रहे हैं । आज विश्व के लगभग 130 विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन हो रहा है । दुनिया में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अख़बार और देखे जाने टी.वी .चैनल भी हिन्दी भाषी हैं । योग सिखाने के बहाने हिन्दी आज विश्व के कोने-कोने में फैल रही है । गूगल ने हिन्दी सोफ्टवेयर बना कर हिन्दी को और भाषाओं से जोड़कर समृद्धि और संगठित होने का मार्ग सुझाया है ।
हिन्दी भाषा को अंतराष्ट्रीय भाषा बनाने में भारतवंशी और अप्रवासी भारतीयों का काफी योगदान है । माॅरिशस और खाड़ी देशों में बसे हुए भारतवंशी जो तथाकित "गिरमिटिया" कहे जाते हैं उनके द्वारा रचित साहित्य जो 'प्रवासी साहित्य ' कहलाता है उसका भी हिन्दी के विकास और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका है । अभिमन्यु अनंत, रामदेव धुरंधर, महेशराज जियावान आदि माॅरिशस के लेखक हैं जो 'नाॅस्टेल्जिया' को आधार बनाकर साहित्य रच रहें हैं ।
हिन्दी को अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाने में खेलों और फिल्मों का काफी योगदान रहा है । आईपीएल, क्रिकेट विश्वकप, एशियाई खेल आदि के बहाने हिन्दी दूर देशों में जा रही है तथा सज-सँवर रही है । हिन्दी फिल्म उद्योग अर्थात बाॅलीवुड विश्व की प्रमुख फिल्म उद्योगों में से एक है । चीन, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, अमेरिका तथा खाड़ी देशों में हिन्दी फिल्में खूब पसंद की जाती हैं । विदेशों के कलाकारों को भी बाॅलीवुड मौका दे रही है । एक शोध से पता चला है कि विश्व की हर चार फिल्मों में एक हिन्दी भाषा की फिल्म होती हैं । भारत की लगभग 60% रिलीज फिल्में हिन्दी की होती हैं । आज हिन्दी फिल्में ऑस्कर के लिए भी नामित हो रहे हैं ।
बाजारीकरण के इस दौर में पेप्सी, रिबाॅक, टाटा मोटर्स,कोकाकोला, सैमसंग आदि जैसी बड़ी बड़ी कंपनियाँ अपना विज्ञापन हिंदी भाषा में करते हैं । चीन, जापान,अमेरिका, कनाडा आदि जैसे विकसित देशों से छात्र भारत में हिंदी अध्ययन के लिए आते हैं जो उसके बढ़ते शक्ति का द्योतक है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण जेएनयू का भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र है जहाँ विदेशों से हर साल दर्जनों की संख्या में छात्र हिंदी सीखने आते हैं ।
विश्वपटल पर भाषाएँ, संस्कृतियाँ आदि को मिलाने में इलेक्ट्रोनिक मीडीया और प्रींट मीडीया का भी काफी योगदान है। सूचना और संचार क्रांति के माध्यमों के कारण हिंदी न केवल सुदूर ग्रामीण क्षेत्र बल्कि विदेशों में बसे भारतवंशी के लिए संवाद स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । इंटरनेट,वाट्सएप, फेसबुक , टीवटर, ब्लाॅग, इमेल आदि वो माध्यम हैं जिससे दो भिन्न संस्कृतियाँ मिल भी रही हैं और जनसंचार का माध्यम भी बन रही है । सोशल मीडीया नयी प्रतिभा को मंच प्रदान कर रहा है । अनंत, सौरभ, विश्व प्रकाश आदि पत्रिका विदेशों से प्रकाशित होने वाली हिंदी पत्रिका है । कविता कोश, गद्यकोश आदि जैसे साइट निःशुल्क रूप से हिन्दी साहित्य को आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध करा रही है । सोशल मीडीया ने एक नयी भाषा का ईजाद किया है- ' हिंग्लीश ' , यह हिंदी और अंग्रेजी का सम्मिलित रूप होता है जो आम बोलचाल में भी प्रयुक्त हो रहें हैं ।
भारत सरकार द्वार स्थापित महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय हिन्दी के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप को विकसित करने में एक सचेष्ट भूमिका अदा कर रहा है । यह विश्वविद्यालय नयी वैश्विक व्यवस्था के अनुसार विषयों के अध्ययन-अध्यापन का प्रारूप तैयार कर उसका क्रियान्वयन कर रहा है ।
hindisamay.com इसी विश्वविद्यालय की साइट है जिस पर हिंदी साहित्य संबंधी पाठ्य सामग्री निःशुल्क उपलब्ध है । ई बुक, ई लाइब्रेरी तथा ई पत्रिका आदि को हिन्दी को आधुनिक बना रहा है ।
देवनागरी लिपि को वैज्ञानिक लिपि भी कहा जाता है क्योंकि इसमें वही पढ़ा जाता है जो लिखा जाता है अर्थात एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण होता है जो अन्य भाषाओं की लिपि में नहीं हैं । हिंदी शब्दों को एकत्रित कर एक विश्वकोष बनाया जा रहा है जो एक नये आयाम की ओर ले जायेगा । अनुवाद कार्य के द्वारा हिंदी साहित्य अहिंदी भाषी देशों में जा रहें हैं और खूब पसंद भी किये जा रहें हैं । समय समय पर होने वाले विश्वहिंदी सम्मेलन भी हिंदी को चौमुखी विकास की ओर अग्रसर कर रहा है । हिंदी ने उर्दू, अंग्रेजी, अरबी, फारसी, जपानी, पुतर्गाली आदि भाषाओं के शब्दों को आत्मसात कर मिला लिया है। हिंदी साहित्य विपुल और मानवीय संवेदनाओं के प्रति संतोष रखने वाली साहित्य है यही कारण है कि वर्षों तक गुलाम रहने वाली यह भाषा आज विकसित देशों के सामने तजुर्बे के साथ ससम्मान खड़ी है । हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा बनाने की भी मांग जारी है ।
हिन्दी पढ़ने वाले वर्गों की संख्या इतनी अधिक है कि बहुत से अहिंदी भाषी साहित्यकार अपनी कृतियों का अनुवाद हिन्दी में कराते हैं । उर्दू के प्रसिद्ध आलोचक प्रो.एहतराम हुसैन मानते हैं कि उर्दू अगर कहीं जिंदा रह सकती है तो वह हिन्दी साहित्य में । हिन्दी की लोकप्रियता प्राचीन काल से ही रही है, एक वह दौर था जब देवकीनंदन खत्री की चन्द्रकांता पढने के लिए बहुत सारे अहिन्दी भाषियों ने हिन्दी सीखा । हिंदी साहित्य से उपजे विभिन्न विमर्श- दलित विमर्श, स्त्री-विमर्श, आदिवासी विमर्श आदि मानवीय अस्मितामूलक विमर्श विभिन्न देशों के समाज द्वारा स्वीकार किया जा रहा है ।
भारत में हिन्दी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है तो वहीं विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है क्योंकि 10 जनवरी 1975 को प्रथम विश्वहिंदी सम्मेलन नागपुर में आयोजित हुआ था । भूतपूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को इसे इस रूप में मनाने का निर्णय लिया था तब से यह विदेशों में स्थापित भारतीय दूतावासों पर पूरे उत्साह से मनाया जाता है । इसका उद्देश्य विदेशों में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए संकल्पनात्मक कार्य करना है । विश्व के विभिन्न देशों में हिंदी रोजगार के पर्याप्त अवसर भी प्रदान कर रही है । यूनेस्को के बहुत सारे कार्य हिंदी में सम्पन्न होते हैं तो वहीं विदेशों में स्थापित " भारतीय विद्यापीठ " भी हिन्दी को प्रचारित कर रही है ।
आज हिंदी भले ही विश्वपटल पर अपना वर्चस्व दिखा रही हो लेकिन हिंदी की स्थिती भारत में खराब होती जा रही है । हिंदी अपने ही घर में प्रवासिनी बनी बैठी है और अंग्रेजी सौतन की तरह सर्वत्र सम्मान प्राप्त कर रही है । हिंदी मीडीयम में पढ़ने वाले बच्चे गरीब, हीन और दिमागी रूप से कमजोर समझे जाता हैं । हिंदी के विकास के लिए जब भी सरकार " त्रिभाषीय फार्मुले " पर बात करती है तो अपने सी लोग विरोध में आवाज उठाने लगते हैं । हिंदी आजादी के इतने सालों बाद भी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बन सकीं , इसके पीछे का कारण- स्वार्थमय राजनीति, संकीर्ण सोच, रोजगारों का अभाव ।
हिंदी जब तक हमारी पेट की भाषा नहीं बनेगी तब तक यह अपने ही घर में विरोध झेलती रहेगी । हिंदी को शुद्धतावाद की नहीं प्रबुद्धतावाद की जरूरत है । हिंदी को संपर्क भाषा से निकाल कर उसे ज्ञान की भाषा के रूप में विकसित करने की जरूरत है । हिंदी को अन्य भाषा के प्रति उदारता बरतनी होगी तथा वैसे लोगों का भी सम्मान करना होगा जो हिंदी सीखना चाहते हो । तकनीक शब्दावली गढ़ते समय केवल संस्कृत के शब्दों का प्रयोग नहीं करनी चाहिए, इसके लिए हम क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अच्छी पुस्तकें लिखी जाए जिससे हिंदी मीडीयम में पढनः वाले बच्चे भी आगे बढ सकें । प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाला भाषानुवाद बहुत ही मजाकिया और कौतुहलपूर्ण होता है । गूगल ट्रांसलेट करने के बजाय मौलिक अनुवाद पर जोड़ दिया जाना चाहिए ।
हिंदी की पहुंच अंतराष्ट्रीयंस्तर पर न केवल भाषा के रूप में बल्कि यह समाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक संरचनाओं की संवाहिका भी बन रही है । हिंदी आज विश्व में जनसंचार माध्यमों में बड़े पैमाने पर प्रयुक्त हो रही है । वैश्वीकरण और बाजारीकरण के कारण हिंदी के विस्तृत क्षेत्र एवं पाठक होने के कारण अंतराष्ट्रीय संस्थाओं और कंपनियों को हिन्दी को बढ़ावा देना मजबूरी सी हो गयी है । यदि भारत की राजनीतिक इच्छा शक्ति थोड़ा और दिलचस्पी लेकर इस दिशा में सराहनीय कार्य करे तो हिंदी की लोकप्रियता और बढ़ सकती है । आधुनिक युग में अंग्रेजी पढ़ना-लिखना बुरी बात नहीं है किन्तु अपनी ही मातृभाषा की उपेक्षा करना राष्ट्रीय शर्म का विषय है । अपने हीन ग्रंथि को त्याग कर अपनी मातृभाषा का सम्मान कर ही हम विकास के मार्ग पर चल सकते हैं क्योंकि भाषा का विकास समाज का विकास है । मैथिलीशरण गुप्त मातृभाषा के संदर्भ में लिखते हैं-
" जिसको न निज भाषा निज देश का अभिमान है,
वह नर नहीं, निर पशु निरा और मृतक समान है । "
-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें