हिंदी प्रचार-प्रसार में साहित्यकारों की भूमिका
(आलेख)
हमारी मातृभाषा हिंदी का इतिहास बहुत ही पुराना तथा महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल से हीं हमारी मातृभाषा हिन्दी की गुणगान गूंजती आ रही है । विश्व के सैकड़ों देशों में जब लोग पढना लिखना सिख रहें थे तभी हमारे भारतवर्ष में शिक्षण संस्थान एवं बड़े बड़े गुरुकुल चलाए जातें थें ।
हिन्दी हमारी मातृभाषा है तथा यह हमारे देश की प्राण और हम हिन्दीभाषियों की पहचान है । किसी भी भाषा को विश्वरूप देने तथा शिखर तक पहुंचाने में उस देश के साहित्यकारों का बहुत बड़ा योगदान होता है । उनके अथक परिश्रम से ही किसी भी देश की भाषा चरम शिखर तक पहुंच कर सदियों तक लोगों के दिलों में राज करता है ।
पता नहीं कैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाली हमारे देश पर किसकी कुदृष्टि पड़ी और बाहरी ताकतों के चपेट में आ गई ।
सदियों तक मुगलों और अंग्रेजों ने शासन किया। क्रूरता की सारी हदें पार कर दी, हमारी संस्कृति को तहस नहस करने में कोई कसर बाकी नहीं रखा । हमारे पौराणिक ग्रंथों प्राचीन मंदिरों तथा हमारे पूर्वजों के धरोहर को नष्ट करने की भरपूर कोशिश की लेकिन किसी देश की संस्कृति एवं भाषा को मिटाना इतना आसान नही होता है। और हमारे देश के साहित्यकारों ने सचमुच यह साबित कर के दिखा दिया । हमारी संस्कृति और भाषा को कोई भी आसानी से नहीं मिटा सकता । हमारे देश के साहित्यकारों ने लोगों के दिलों में हिन्दी के प्रति सम्मान को जिन्दा रखा ।
स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हमारे बहुत सारे साहित्यकार रचनाकार एवं लेखक ने भी अपना योगदान दिया और अपनी देश प्रेम से ओतप्रोत रचनाओं के माध्यम से देशवासियों के दिल में अंग्रेजों से लड़ने की प्रेरणा दी और इस तरह आजादी की जंग जीतने में अपनी भूमिका निभाई । प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण चौधरी,राधाकृष्ण ठाकुर, जगमोहन सिंह, प॔ अम्बिका दत्त व्यास , बाबू रामकृष्ण वर्मा आदि साहित्यकारों ने स्वतंत्रता आंदोलन की धधकती हुई ज्वाला को प्रचंड रूप दिया तथा विदेशियों से अपनी आजादी छीनी ।
हमे आजादी 1947 में मिली हमे हमारे साहित्यकारों की लगन और मेहनत की बदौलत 14 सितंबर 1949 को असली आजादी मिली क्योकि उसी दिन से हमारी मातृभाषा हिंदी को राष्ट्रीय सम्मान मिला ।
आज भारत सहित विश्व भर में लगभग 80 करोड़ लोग हिंदी भाषा बोलते हैं । हमारे देश में हीं तकरीबन 52 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं और यह सब सिर्फ हमारे देश के साहित्यकारों के बदौलत हीं सम्भव हो सका है ।
आज हिन्दी विश्व की सर्वोच्च भाषाओं में तीसरे नंबर पर गणना की जाती है । और विदेशों में हमारी मातृभाषा को बड़े ही गर्व से बोली जाती है । अंततः मैं यही कहूंगा कि हमारी मातृभाषा हिंदी की सेवा कर हमारे साहित्यकारों नें सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाया हैं ।
हिन्दी हमारी मातृभाषा है तथा यह हमारे देश की प्राण और हम हिन्दीभाषियों की पहचान है । किसी भी भाषा को विश्वरूप देने तथा शिखर तक पहुंचाने में उस देश के साहित्यकारों का बहुत बड़ा योगदान होता है । उनके अथक परिश्रम से ही किसी भी देश की भाषा चरम शिखर तक पहुंच कर सदियों तक लोगों के दिलों में राज करता है ।
पता नहीं कैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाली हमारे देश पर किसकी कुदृष्टि पड़ी और बाहरी ताकतों के चपेट में आ गई ।
सदियों तक मुगलों और अंग्रेजों ने शासन किया। क्रूरता की सारी हदें पार कर दी, हमारी संस्कृति को तहस नहस करने में कोई कसर बाकी नहीं रखा । हमारे पौराणिक ग्रंथों प्राचीन मंदिरों तथा हमारे पूर्वजों के धरोहर को नष्ट करने की भरपूर कोशिश की लेकिन किसी देश की संस्कृति एवं भाषा को मिटाना इतना आसान नही होता है। और हमारे देश के साहित्यकारों ने सचमुच यह साबित कर के दिखा दिया । हमारी संस्कृति और भाषा को कोई भी आसानी से नहीं मिटा सकता । हमारे देश के साहित्यकारों ने लोगों के दिलों में हिन्दी के प्रति सम्मान को जिन्दा रखा ।
स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हमारे बहुत सारे साहित्यकार रचनाकार एवं लेखक ने भी अपना योगदान दिया और अपनी देश प्रेम से ओतप्रोत रचनाओं के माध्यम से देशवासियों के दिल में अंग्रेजों से लड़ने की प्रेरणा दी और इस तरह आजादी की जंग जीतने में अपनी भूमिका निभाई । प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण चौधरी,राधाकृष्ण ठाकुर, जगमोहन सिंह, प॔ अम्बिका दत्त व्यास , बाबू रामकृष्ण वर्मा आदि साहित्यकारों ने स्वतंत्रता आंदोलन की धधकती हुई ज्वाला को प्रचंड रूप दिया तथा विदेशियों से अपनी आजादी छीनी ।
हमे आजादी 1947 में मिली हमे हमारे साहित्यकारों की लगन और मेहनत की बदौलत 14 सितंबर 1949 को असली आजादी मिली क्योकि उसी दिन से हमारी मातृभाषा हिंदी को राष्ट्रीय सम्मान मिला ।
आज भारत सहित विश्व भर में लगभग 80 करोड़ लोग हिंदी भाषा बोलते हैं । हमारे देश में हीं तकरीबन 52 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं और यह सब सिर्फ हमारे देश के साहित्यकारों के बदौलत हीं सम्भव हो सका है ।
आज हिन्दी विश्व की सर्वोच्च भाषाओं में तीसरे नंबर पर गणना की जाती है । और विदेशों में हमारी मातृभाषा को बड़े ही गर्व से बोली जाती है । अंततः मैं यही कहूंगा कि हमारी मातृभाषा हिंदी की सेवा कर हमारे साहित्यकारों नें सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाया हैं ।
सुरेश शर्मा
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