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Saturday, 14 November 2020

आओ हम सब दीप जलाएँ (कविता) - श्रीमती पूनम दीपक शिंदे

 

आओ हम सब दीप जलाएँ
(ग़ज़ल)

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।
मन से मन का भेद मिटाएँ,
जीवन में उजियारा लाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

कोई रहे न भूखा - प्यासा,
पूरी हो हर मन की आशा।
मन से मन की बात हो न्यारी,
जग में हम उजियारा लाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

सागर - सी गहराई हो मन में,
हिम - सा हो अभिमान सभी में।
तन - सा स्वच्छ रखें हम मन को,
सबमें भातृ - भाव फैलाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

हिल - मिल हम सब एक बनें,
भारत की अनुपम शान बनें।
सीमा पर लड़ रहे सिपाही,
उनकी खातिर कुछ कर जाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

अपनी धरती अपना अंबर,
सागर अपना अपना पर्वत।
अपनेपन का भाव हो सब में,
ऐसा हम विस्वास जगाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

भेद भाव के तम को मन से,
दूर करें हम जन गण मन से।
एक रहे हैं एक रहेंगे,
ऐसा हम उत्साह जगाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।
-०-
श्रीमती पूनम दीपक शिंदे
मुंबई (महाराष्ट्र)

-०-

***
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