है दीया जलाना माटी का
(कविता)
सारा दिखावा छोड़ के अबके
है दीया जलाना माटी का.........
तम को हरते दीप सा हमको,
है साथ बंटाना साथी का .........
ये देश भी अपना,
है घर भी अपना
ये गांव भी अपना,
शहर भी अपना
कोई नहीं अनजाना यहां पे
है प्यार बांटना माटी का........
माटी की कोमल ता से
ये दीप निखरता जाएगा
जब होगा रोशन दीपक,
प्रकाश बिखरता जाएगा
इस माटी से निर्मित दीप में,
अबके दीया जलाना बाती का ........
माटी के कण-कण का ऋण
अभी तो चुकाना बाकी है
देशप्रेम के संस्कारों को अब,
विश्व में दिखाना बाकी है
"पहले देश और पहले माटी",
है नारा लगाना ख्याति का........
विश्व पटल का भाल हमीं है
राष्ट्रवाद का ज्वाल हमीं है
दीप हमीं है , गुलाल हमीं है
आजादी की मिसाल हमीं है
ज्ञान पुंज ज्योतिर्मय है , सब
को,ये ज्ञान कराना माटी का...........
जिसका सरस नीर है , सरस हवाएं
सरल , सहज है रेशमी कनिकाएं
चहु ओर कल - कल ध्वनि से
मधुर गुंजनायुक्त ,अरूणाई दिशाएं
है पावन , पवित्र , सौभाग्य हमारा
सर , माथे पे लगाना माटी का.......
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