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Sunday 29 December 2019

आओ प्याज़ प्याज़ खेलें (व्यंग्य) - राज कुमार अरोड़ा 'गाइड'

आओ प्याज़ प्याज़ खेलें
(व्यंग्य)
        क्या कमाल है!प्याज़ कितना बाहुबली हो गया है?तख़्त पर बैठा भी देता है, तख़्त से हटा भी देता है। प्याज़ के ही चक्कर में दिल्ली में एक सरकार ओंधे मुँह गिर चुकी है।जो मोदी जी 2013 में प्याज़ की कीमत 80 रुपये होने पर लॉकर में रखने का उपदेश दे रहे थे,अब उनके राज में अब150 रुपये पार हो जाने पर चुप क्यों हैं?
     एक अजीब सी विडम्बना देखिये,दिल्ली में प्याज़ की माला पहन कर सत्ता धारीआम आदमी पार्टी वाले भी और भाजपा,कांग्रेस वाले भी प्रदर्शन कर रहें हैं।दिल्ली में सत्ता की द्रोपदी के दावेदार कई हैऔर प्रशासन भी कई सरकारों में बंटा है।हर किसी को अपनी राजनीति चमकानी है।जनता की परवाह किसी को नहीं महंगाई, प्रदूषण, अवैध कब्ज़े, आग लगने की दुर्घटना कुछ भी हो,ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ते है। अब प्याज़ महंगा होने पर
जब केंद्र सरकार सस्ते दामों पर उपलब्ध ही नहीं कराये,राज्य सरकारें क्या करें?कई दशकों से हर सरकार में मंत्री रहे पासवान जी भी पल्ला झाड़ कर खड़े हो गये तो पक्ष विपक्ष की सरकारें क्या करें?32000 टन प्याज़ गोदामो में सड़ गया। उसका जिम्मेदार कौन?
प्याज़ के रोज़ बढ़ते दामों ने आढ़तियों व जमाखोरों की चांदी कर दी,बेबस जनता बेचारी करे भी तो क्या? जो गृहिणी अपने अंदर के आंसुओं को प्याज़ काटने के बहाने छुपा लेती थी,अब तो प्याज़ के भाव सुन कर ही उसके आँसू निकल आते हैं। प्याज़ के दोहरे शतक ने तो रोहित,विराट को पीछे छोड़ दिया। प्याज़ के रॉकेट की तरह बढ़ते दामों पर जनता मीम्स, कार्टून के द्वारा मनोरंजन से अपने दुःख ,क्षोभ को भुला रही है, कुछ बानगी देखिये-
"कहो न प्याज़ है!"
"प्याज़ ही तो है"
"सोना नहीं,चांदी नहीं प्याज़ चाहिए"
"वक्त कब बदल जाये,पता नहीं लगता,आज प्याज़ का सेब,आम,अनार जैसों के साथ उठना बैठना है"
"बरसों से साथ निभा रहे आलू ने प्याज़ को प्रपोज़ किया,प्याज़ो तुनक कर बोली,तेरा मेरा अब क्या मुकाबला"
"ये प्याज़ मुझे दे दे ठाकुर"
"तुम्हें चारों और से पुलिस ने घेर लिया है, अपनी सारी प्याज़ कानून के हवाले कर दो"
जिनके घर प्याज़ के सलाद होते हैं, वो बत्ती बुझा कर खाना खाते हैं"
"मेरे कर्ण अर्जुन आयेंगे, दो किलो प्याज़ लायेंगे"
"लगता है, सब्ज़ीमंडी में नये नये आये हो,यहाँ सब
मुझे"प्याज़"के नाम से जानते हैं"
"मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है, रुपया है, पैसा है, तुम्हारे पास क्या है? मेरे पास पचास किलो प्याज़ हैं"
"चिनॉय सेठ,प्याज़ बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं, कट जाये, तो आंसू निकल आते हैं"
"मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता, प्याज़ हो तो अलग बात है"
"क्या करूँ,इज्ज़त दांव पर है, पड़ोसन प्याज मांगने आई है, और बीवी प्याज़ गिन कर रख गई है"
"क्या कहा,प्याज़ का परांठा चाहिए, बेलन पड़ जाएगा"
"कई होटलों में बोर्ड लग गये"प्याज़ मांग कर शर्मिंदा न करे"
एक घर में चोरी करने गयेचोर ने जैसे ही किचन में टोकरी प्याज़ से भरी देखी, उसके मुहँ से निकला "बड़ा मालदार आसामी लगता है, खूब माल हाथ लगेगा"
"मोदी राज है, खाना मुश्किल हुआ प्याज़ है"
"धारा 370 हटने पर जो कश्मीर में प्लॉट खरीदने की बात कर रहे थे,वो अब प्याज़ भी नहीं खरीद पा रहे"
मोदी जी आप तो बेरोज़गारों को पकौड़े तलने की सलाह दे रहे थे, अब तो ये काम भी दूभर हो गया।
प्याज़ इतना बाहुबली हो गया,सब तरफ खलबली मची है। बढ़ती चोरियों के कारण आढ़तियों,व्यापारियों को गार्ड रखने पड़ रहे हैं, किसानों को खेत में पहरे देने पड़ रहे हैं। गरीब का यह खाना अब गिने चुने अमीरों का ज़ायका हो गया। सरकार अब जागी है, पर विदेशों से आने में समय लगेगा।
तय सीमा से ज्यादा रखने वाले जमाखोरों पर सही से कार्यवाही हो तो भाव भी कम हों, माल भी बाज़ार में दिखेगा,पर राजनीति,आरोप प्रत्यारोप में लगे ये नेता जनता को यूँ ही पिसने पर मज़बूर करते रहेंगे।माल उगाने वाला किसान कभी शासन ,कभी प्रकृति के प्रकोप में उलझा रहता है, मौज़ तो बिचौलियों की ही हर बार
होती है।
क्या अजीब विडम्बना है, प्याज़,पेट्रोल, अन्य खाद्य पदार्थों की महंगाई से त्रस्त जनता की पुकार हर बार अनसुनी रह जाती है, प्रचंड बहुमत ने सरकार को इतना निरंकुश कर दिया है, घटती विकास दर, बढ़ती महंगाई, आर्थिक मोर्चे पर विफलता के बाद भी वह आश्वस्त हैं कि हमारा किसी भी तरह से बालबांका नहीं होगा,अलग अलग खेमों में बंटा विपक्ष अपनी धज्जियां खुद उड़ा रहा है, यही हाल रहा तो 2024 में भी 2019 का इतिहास दोहराने से कोई
रोक नहीं पायेगा।बस इसी तरह प्याज़ प्याज़ खेलती केंद्रीय व राज्य सरकारें मूलभूत मुद्दों से दूर, जनता को शतरंज की बिसात पर प्यादे की तरह छोड़ दिया जायेगा ।
-०-
पता: 
राज कुमार अरोड़ा 'गाइड'
बहादुरगढ़(हरियाणा)

-०-

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जल्लाद (लघुकथा) - पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'

जल्लाद
(लघुकथा)
यह शब्द सुनकर ही मन मे एक काला,मोटा ,चिकनी त्वचा वाले व्यक्ति की छबि ऑखों के सामने उतर आती है । वैसे हम जल्लाद शब्द का उपयोग हम किसी कठोर दिल वाले लोगो के लिए ही करते है । किंतु ऐसे व्यक्ति से मुलाकात कभी नही हुई । तो बस हम यही सोचते कि ऐसे लोग कैसा जीवन व्यतीत करते होगें । इनकी विचारधारा भी कैसी होगी ,ऐसे अनेकों विचारों का प्रवाह चला आता है ।
लेकिन हाल ही में मेरी मुलाकात टीवी के जरिए एक जल्लाद से हुई । तो सर्वप्रथम उनका पेहराव देख दंग रह गयी । और जब उनके सामने प्रश्नों की कडियाँ आरंभ हुई तो उनकी बातचीत सुन मेरे कान और ऑख बस उनकी ओर ठहर गयी ।हर प्रश्न का उत्तर वे जिस ढंग से दे रहे थे ऐसा लग रहा था मानो मै किसी साहित्यकार को सुन रही हूँ । उनके हर विचार से मै प्रभावित हुई ,उन्होने बताया कि उनका खानदानी पेशा यही है । और वें अब तक 19 लोगों को फांसी दे चुके है ।मुंबई ब्लास्ट के आरोपी याकूब मेनन को नागपुर जेल मे फांसी भी उन्होंने ही दी थी । उनकी बेबाक बातें समाज के प्रति जिम्मेदारीयों व नारी के प्रति सम्मान यह सब सुन मेरे मन मे बस एक ही ख्याल आया कि मनुष्य काम कैसा भी करे किंतु उसको जिम्मेदारी निभाना आनी चाहिए । कोई काम बडा या छोटा नही होता ।हर काम का अपना एक अलग महत्व होता है । यह तो हम इंसानों की फितरत है जो हर वर्ग का एक दायरा बना देता है । 
उनसे जब अगला प्रश्न पूछा गया कि क्या फांसी देते समय भी उनके मन मे तूफान उठते हैं तब उन्होंने बडी ही सरलता से इसका उत्तर देते हुए बताया कि जल्लाद को भी नियमों का पालन करना होता है । सर्वप्रथम मन को शांत रखना होता है , यहाँ तक की वे आपस मे किसी से बातचीत भी नही कर सकते और यदि करना हो तो इशारो मे ही बातें होती है । एक जल्लाद के मुख से इतनी जानकारी मिलने पर जो एक छबि मन मे थी वह तो सुधर गयी , लेकिन एक तूफान तो मन मे और था कि जहां देश-विदेश की निगाहें आरोपी को फांसी देने की ओर लगी रहती है तो क्या जल्लाद का हाथ और मन क्या सोचता होगा क्योकि जब जन्म देने का अधिकार उसका नही तो मौत का भी अधिकार नही होना चाहिए ऐसे भी विचार जल्लाद के मन मे आते होगे । लेकिन यह भी सही है कि अंत समय मे जल्लाद ही आरोपियों ऑखों मे ऑख डालकर उनके भावो को भली प्रकार से समझ पाता है ।लेकिन उस समय उनके मन मे एक ही विचार मंडराता है जब उसने गुनाह किया है तो सजा तो मिलनी है । वह सिर्फ माध्यम है।जल्लाद तो बस न्याय का पालन ही करता है और समाज को दुर्दांत गुनाहगारों से बचाता है।
-०-
पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'
नागपुर (महाराष्ट्र)
-०-

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हम उम्र साथी चाहिए (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'

हम उम्र साथी चाहिए
(कविता)
माँ मुझे गुड़िया जैसी
बहना चाहिए
मैं खेल सकूं जिसके साथ
ओ मेरे संग रहना चाहिए
माँ मुझे गुड़िया जैसी बहना चाहिए
माँ जब तुम चली जाती हो काम पर
मैं बोर हो जाता हूं
अकेले बैठे बैठे
ऐसे तो घर में कोई
अपना होना चाहिए
माँ मुझे गुड़िया जैसी बहना चाहिए
दाई माँ के भरोसे तुम
मुझे छोड़कर जाती हो
वह कितनी देर तक मुझे संभालेगी
वह तो बैठे-बैठे सो जाती है
उसे भी तो आराम चाहिए
माँ मुझे गुड़िया जैसी बहना चाहिए
कोई बच्चा बड़ों के संग
कितना देर खेले
उसके लिए तो उसे
उसका हमउम्र साथी चाहिए
माँ मुझे गुड़िया जैसी बहना चाहिए
दफ्तर से लौट कर
तुम भी थक जाती हो
फिर बीना मुझे लोरी सुनाए सो जाती हो
पापा को तो टीवी पेपर
और किताब चाहिए
माँ मुझे गुड़िया जैसी बहना चाहिए
किसके लिए आप दोनों
पैसे जमा कर रहे हो
माँ- बाप के रहते मैं
अनाथ सा हो गया हूं
मानसिक विकास हो मेरा
इसीलिए बच्चों की टोली चाहिए
माँ मुझे गुड़िया जैसी बहना चाहिए-०-
पता: 
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-


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कोख से बेटी की गुहार (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

कोख से बेटी की गुहार
(कविता)
यदि मैं बोल पाती तो ,
तुम सुन पाती माँ।
मेरी पुकार...मेरी चीत्कार ...!
मत करो मुझे जन्म देने से इंकार।
रोक लो.....!
मेरे शरीर को चीरते हुए ओजारो को,
नकार दो.....!
तुम्हें मजबूर करने वाले हत्यारों को।
इस हत्या को ,मत दो अंजाम,
आना है मुझे इस दुनिया में,
करने है कुछ काम।
कब तक हम बेटियाँ ,
होती रहेंगी क़ुर्बान...?
गर यूँ ही चलता रहा तो,
अनुपात बिगड़ जाएगा।
किसी विलुप्त होते प्राणी की तरह,
बेटियों का संसार,
विलुप्ती की कगार पर पहुँच जाएगा।
मिल रही हमें,किस बात की सज़ा..?
क्या बेटी होना ही है गुनाह.....?
मैं तो तेरे अस्तित्व का प्रमाण हूँ।
सृष्टि का कथानक हूँ,
जननी हूँ, इंसान हूँ।
कन्या हूँ ,तो सपने देखने की इजाज़त नहीं है..?
अब मुझे बेड़ियाँ पहन कर,
चलने की आदत नहीं है।
मेरा जन्म लेना ज़रूरी है,
हमारे बिन सृष्टि अधूरी है।
सामंजस्य से ही परिवार है,
उसी से देश का आधार है।
जानती हूँ....,
जन्म लेते ही जंग लड़नी होगी,
मुझे जन्म देने की इच्छा तो पूरी करनी होगी।
तू डर मत माँ...,मैं भी नहीं डरूँगी,
इस दुनिया से अकेले लड़ूँगी।
मैं रोटियाँ बेलूँगी,तलवार भी लहराऊँगी,
विकास के सोपानों पर,
अपने बल पर चढ़ जाऊँगी।
मेरी कोमलता को कमज़ोरी मत आँको ,
मुझे गर्भ में ही कुचल कर मत मारो।
यूँ भी देश में...,
दरिंदगी पसर रही है,
दुष्कर्म ओर दरिंदगी की,
घटनाए घट रही हैं।
सरकार सो रही है,
बेटियाँ रो रही हैं।
इंसान जानवर से गिद्ध बनने को चला है,
हर कोई भेड़िया बन,
अबला को नोच रहा है।
मैं ऐसा नहीं होने दूँगी,
सामना करूँगी।
माँ मैं फूलन बनूँगी,
कोई आँख उठा देखे तो,
सर क़लम करूँगी।
क़ानून कमज़ोर है,
केस बनेगा,
सालों साल चलेगा।
प्रशासन चुनाव लड़ेगा,
जीतने वाला ,
अपनी सरकार गढ़ेगा
कोई जिए या मरे,
उसे फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
तू डर मत माँ...।
माना कि ज़माना ख़राब है,
तेरी बेटी भी ,
काली बनने को बेताब है।
तुम सुन रही हो ना.....माँ..?
मुझे .....जन्म तो ....दोगी ना....?-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)

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हिंदी वर्णमाला गीत (बालगीत) - दुर्गेश कुमार मेघवाल 'अजस्र'

हिंदी वर्णमाला गीत
(बालगीत)
अ से अनार ,आ से आम ,
पढ़ लिख कर करना है नाम।
इ से इमली , ई से ईख ,
ले लो ज्ञान की पहली सीख ।
उ से उल्लू ,ऊ से ऊन,
हम सबको पढ़ने की धुन ।
ऋ से ऋषि की आ गई बारी,
पढ़नी है किताबें सारी।

ए से एडी , ऐ से ऐनक ,
पढ़ने से जीवन में रौनक ।
ओ से ओखली , औ से औरत ,
पढ़ने से मिलती है शोहरत ।
अं से अंगूर , दो बिंदी का अः ,
स्वर हो गए पूरे हः हः ।

क से कबूतर , ख से खरगोश ,
पढ़ लिखकर जीवन में जोश ।
ग से गमला , घ से घड़ी ,
अभ्यास करें हम घड़ी घड़ी ।
ङ खाली आगे अब आए ,
आगे की यह राह दिखाए ।

च से चरखा , छ से छतरी ,
देश के है हम सच्चे प्रहरी ।
ज से जहाज , झ से झंडा ,
ऊँचा रहे सदा तिरंगा ।
ञ खाली आगे अब आता ,
अभी न रुकना हमें सिखाता ।

ट से टमाटर , ठ से ठठेरा ,
देखो समय कभी न ठहरा ।
ड से डमरू , ढ से ढक्कन ,
समय के साथ हम बढ़ाये कदम ।
ण खाली अब हमें सिखाए ,
जीवन खाली नहीँ है भाई।

त से तख्ती , थ से थन ,
शिक्षा ही है सच्चा धन ।
द से दवात , ध से धनुष ,
शिक्षा से हम बनें मनुष ।
न से नल , प से पतंग ,
भारत-जन सब रहें संग संग ।
फ से फल , ब से बतख ,
ज्ञान-मान से जग को परख ।
भ से भालू , म से मछली ,
शिक्षा है जीवन में भली ।

य से यज्ञ , र से रथ ,
पढ़ लिखकर सब बनों समर्थ ।
ल से लट्टू , व से वकील ,
ज्ञान से सबका जीतो दिल ।
श से शलजम , ष से षट्कोण,
खुलकर बोलो तोड़ो मौन ।
स से सपेरा , ह से हल ,
श्रम से ही मिलता मीठा फल ।
क्ष से क्षत्रिय हमें यही सिखाए ,
दुःख में कभी नहीँ घबराएँ ।
त्र से त्रिशूल , ज्ञ से ज्ञानी ,
बच्चों अब हुई खत्म कहानी ।
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पता:
दुर्गेश कुमार मेघवाल 'अजस्र' 
बूंदी (राजस्थान)

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