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Sunday, 29 December 2019

जल्लाद (लघुकथा) - पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'

जल्लाद
(लघुकथा)
यह शब्द सुनकर ही मन मे एक काला,मोटा ,चिकनी त्वचा वाले व्यक्ति की छबि ऑखों के सामने उतर आती है । वैसे हम जल्लाद शब्द का उपयोग हम किसी कठोर दिल वाले लोगो के लिए ही करते है । किंतु ऐसे व्यक्ति से मुलाकात कभी नही हुई । तो बस हम यही सोचते कि ऐसे लोग कैसा जीवन व्यतीत करते होगें । इनकी विचारधारा भी कैसी होगी ,ऐसे अनेकों विचारों का प्रवाह चला आता है ।
लेकिन हाल ही में मेरी मुलाकात टीवी के जरिए एक जल्लाद से हुई । तो सर्वप्रथम उनका पेहराव देख दंग रह गयी । और जब उनके सामने प्रश्नों की कडियाँ आरंभ हुई तो उनकी बातचीत सुन मेरे कान और ऑख बस उनकी ओर ठहर गयी ।हर प्रश्न का उत्तर वे जिस ढंग से दे रहे थे ऐसा लग रहा था मानो मै किसी साहित्यकार को सुन रही हूँ । उनके हर विचार से मै प्रभावित हुई ,उन्होने बताया कि उनका खानदानी पेशा यही है । और वें अब तक 19 लोगों को फांसी दे चुके है ।मुंबई ब्लास्ट के आरोपी याकूब मेनन को नागपुर जेल मे फांसी भी उन्होंने ही दी थी । उनकी बेबाक बातें समाज के प्रति जिम्मेदारीयों व नारी के प्रति सम्मान यह सब सुन मेरे मन मे बस एक ही ख्याल आया कि मनुष्य काम कैसा भी करे किंतु उसको जिम्मेदारी निभाना आनी चाहिए । कोई काम बडा या छोटा नही होता ।हर काम का अपना एक अलग महत्व होता है । यह तो हम इंसानों की फितरत है जो हर वर्ग का एक दायरा बना देता है । 
उनसे जब अगला प्रश्न पूछा गया कि क्या फांसी देते समय भी उनके मन मे तूफान उठते हैं तब उन्होंने बडी ही सरलता से इसका उत्तर देते हुए बताया कि जल्लाद को भी नियमों का पालन करना होता है । सर्वप्रथम मन को शांत रखना होता है , यहाँ तक की वे आपस मे किसी से बातचीत भी नही कर सकते और यदि करना हो तो इशारो मे ही बातें होती है । एक जल्लाद के मुख से इतनी जानकारी मिलने पर जो एक छबि मन मे थी वह तो सुधर गयी , लेकिन एक तूफान तो मन मे और था कि जहां देश-विदेश की निगाहें आरोपी को फांसी देने की ओर लगी रहती है तो क्या जल्लाद का हाथ और मन क्या सोचता होगा क्योकि जब जन्म देने का अधिकार उसका नही तो मौत का भी अधिकार नही होना चाहिए ऐसे भी विचार जल्लाद के मन मे आते होगे । लेकिन यह भी सही है कि अंत समय मे जल्लाद ही आरोपियों ऑखों मे ऑख डालकर उनके भावो को भली प्रकार से समझ पाता है ।लेकिन उस समय उनके मन मे एक ही विचार मंडराता है जब उसने गुनाह किया है तो सजा तो मिलनी है । वह सिर्फ माध्यम है।जल्लाद तो बस न्याय का पालन ही करता है और समाज को दुर्दांत गुनाहगारों से बचाता है।
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पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'
नागपुर (महाराष्ट्र)
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