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Monday, 4 May 2020

एकजुट होना ही होगा (कविता) - ज्ञानवती सक्सेना

एकजुट होना ही होगा
(कविता)
इस विकट संकट की घड़ी में हम सबको
सारथि केआह्वानपर एकजुटहोना ही होगा
दीं हिदायतों पर गहन चिंतन मनन कर
उन पर अक्षरशःअमल करना ही होगा

बेपरवाह हो इधरउधर की खाक छानेंगे तो
हम और हमारे सपने खाक में मिल जाऐंगे
अपने लिए और अपनों के लिए हम
शत प्रतिशत सोशल डिस्टेंसिंग अपनाएंगे
यदि सच्चे सजग देशभक्त हैं हम तो
हमवतनों का रक्षा कवच बन जाएंगे
अब छिड़ी जंग है कोरोना से तो
हम सब योद्धा का फ़र्ज निभाएऐंगे

हम में कोरोना के लक्षण दिखें तो
प्रशासन से बिल्कुल नहीं छुपाएंगे
नादानी में लापरवाही करके हम खुद
अपने ही वतन के दुश्मन बन जाएंगे
'अरे कुछ नहीं होता है' कि सोच से
कल के हालात भयावह नहीं बनाएंगे
स्थिति विकराल हो उससे पहले संभलकर
ईरान इटली की गलती नहीं दोहराएंगे

अस्पतालों में जूझ रहे महान् योद्धाओं के
संकट को मूर्खता में ,बिल्कुल नहीं बढ़ाएंगे
फ्रंट पर डटे पुलिस डॉक्टर्स मीडिया का
हम सब अंतःतल से आभार जताऐंगे
कोरोना के विकट जाल में फंसे हैं हमसब
एकसाथ जूझ जाल को उड़ा ले जाएंगे
नहीं रहेंगे हिंदू-मुस्लिम,सिक्ख-ईसाई
हमसब खुदा के नेक बंदे बन जाएंगे

ऐसे विकट संकट की घड़ी में हम सब को
अपने वतनको उजड़ने से बचाना ही होगा
दीं हिदायतों पर गहन चिंतन मनन कर
उन पर अक्षरश: अमल करना ही होगा
-०-
पता : 
ज्ञानवती सक्सेना 
जयपुर (राजस्थान)
-०-

***
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जो हमने दिन रात सहा (ग़ज़ल) - अमित खरे

जो हमने दिन रात सहा
(ग़ज़ल)
जो हमने दिन रात सहा है
केवल वो ही दर्द कहा है
बनकर मोती प्यार हमारा
आँखों से हर रोज बहा है
मुस्कानों के ढेर लगे हैं
भीतर भी कुछ टूट रहा है
गैरों ने हरदम ठुकराया
तुमने भी कब हाथ गहा है
तुम तो बस जादू कहते हो


मेरा सब सामान लूटा है
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




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मैं और तुम (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

मैं और तुम
(कविता)
“मैं ओर तुम “कब हो गए हम।
पता ही ना चला।
याद हैं वो पल? जब मिले मैं ओर तुम।
कुछ बातें रोमांस की, कुछ प्यार की,
रंग जमाती बसंती बयार थी।
दो अनजान दिलों ने जब बात छेड़ी थी,
दो धड़कते दिलों को ,
रूमानी रंग देने में,
कहाँ कसर छोड़ी थी?
प्यार में डूबे कुछ अंतरंग पल थे,
कब मेरे तुम्हारे रिश्ते बदलने लगे थे ,
पता ही ना चला ...।
फिर शादी से पहले,ओर शादी के बाद,
वक़्त के साथ साथ...
बदलता रहा हमारा रिश्ता,
रिश्ते नाते,दिल दोस्ती की बातें,
वो पहला स्पर्श,प्यार का अहसास,
कब ले आता तुम्हें मेरे पास ।
पता ही ना चला...।

तन मन से जुड़े कुछ सवाल,
उन सवालों के समाधान,
तुम्हारे ज़िद्दी स्वभाव के ,
पीछे का मनोविज्ञान।
ज़ायक़े में दिल परोसने का,
मेरा अनूठा अन्दाज़ ,
कब ले आता तुम्हें मेरे पास ?
पता ही ना चला...।

मेरा तुम्हारा रिश्तों का नया समीकरण,
बन जाते मैं ओर तुम “हम”।
कुछ सार्वजनिक तो कुछ ,
नितांत निजी पल।
कुछ साधारण,
तो कुछ असाधारण सी हलचल।
कब बंध गए थे इस अटूट बंधन में,
पता ही ना चला..।

क़ैद कर लेते तुम,
तस्वीरों में स्मृतियों में,
हर पल हर दिन,खड़े रहे मेरे साथ ,
दुशवार से दुशवार स्थितियों में ,
बदलती परिस्थितियों में..,
देते रहे मेरा साथ,
कब मुझे हो गया विश्वास,
पता ही ना चला...।

कभी कभी हमारे व्यवहार में,
लड़कपन की बू आती,
बातों बातों में ठन जाती,
तुम मनाते, मैं रूठ जाती,
तुम रूठ जाते, मैं मनाती।
झगड़े के बाद,
समझोते की राह अपनाते,
ज़िंदगी को फिर ख़ुशनुमा मोड़ पर ले आते।
शांत पड़ी दोस्ती में ,
कब गरमाहट आ जाती,
कब मैं ओर तुम ,हो गए हम,
पता ही ना चला..।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-0-


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प्रदुषण (कविता) - रूपेश कुमार


प्रदूषण 
(कविता)
भारत को स्वच्छ बनाना है,
प्रदूषण को दूर भागना है,
स्वच्छ भारत स्वच्छ समाज ,
स्वच्छ है घर , स्वच्छ संसार,

स्वच्छ जल स्वच्छ ऊर्जा,
स्वच्छता हमारी सोच हमारी,
प्रदूषण मुक्त बनाना है ,
भारत को स्वच्छ बनाना है ,

सोच अपनी बदलनी है ,
प्रदूषण से हमे अवगत,
समाज को कराना है,
स्वच्छता अभियान चलाना है,

गाँधी के सपनो को,
साकार कराना है ,
भारत को विश्व पटल पर ,
प्रदूषण मुक्त बनाना है ,

प्रदूषण नियंत्रण करना,
मेरा अधिकार,
स्वच्छ भारत मेरा संसार ,
प्रदूषण मुक्त मेरा परिवार!
-०-
पता:
रूपेश कुमार
चैनपुर,सीवान बिहार
-०-


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