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Monday 4 May 2020

जो हमने दिन रात सहा (ग़ज़ल) - अमित खरे

जो हमने दिन रात सहा
(ग़ज़ल)
जो हमने दिन रात सहा है
केवल वो ही दर्द कहा है
बनकर मोती प्यार हमारा
आँखों से हर रोज बहा है
मुस्कानों के ढेर लगे हैं
भीतर भी कुछ टूट रहा है
गैरों ने हरदम ठुकराया
तुमने भी कब हाथ गहा है
तुम तो बस जादू कहते हो


मेरा सब सामान लूटा है
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




***
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