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Tuesday 24 November 2020

ताश के पत्तों का शहर (कविता) - सोनिया सैनी

ताश के पत्तों का शहर
(कविता)
ताश के पत्तों का शहर
यहां आदमी है,आदमी से बेखबर
एक की सजा दूसरे का मजा बन जाती है,
खून एक का बहे ,तो दूसरे की प्यास बुझ जाती है।


एक बढ़े आगे,तो दो कदम पीछे
धकेल, इंसानियत दिखला दी 
जाती है।
पूरा परिवार है यहां, फिर भी
ये आधुनिकता,हर एक को
तन्हा कर जाती है।

रिश्ते नाते सब है, बेमानी
यहां तो अपनों को ही
सारी दुनियादारी दिखला 
दी जाती है।

मुखौटा मासूमियत का लगाकर
मख़ोल इंसानियत का उड़ाया
जाता है।
अजी यह ,ताश के पत्तो का
शहर है।
यहां आदमी ही आदमी के लिए
ज़हर है।
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास का अन्त होना आवश्यक (आलेख) - डाॅ० सिकन्दर लाल

भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास का अन्त होना आवश्यक
(आलेख)

कोरोना वायरस तो मानव एवं जीव-जन्तु के लिए खतरनाक है लेकिन इस वायरस से कहीं अधिक हमारे देश के लिए वो लोग भी खतरनाक हैं जो भारत देश रूपी पावन धाम में, जान - बूझकर लूट-घसोट एवं बेईमानी आदि करके, आय से अधिक धन- दौलत रखे हुए हैं| कुछ मूर्ख लोग विना अपने विद्यालय/महाविद्यालय आदि जैसे अन्य सरकारी संस्थानों में गये वेतन अर्थात् पैसा आदि ले रहे हैं, जिस संस्थान की कमाई खा रहे हैं उसी को,फर्जी बिल-बाउचर के माध्यम से तो कहीं अधिक बढ़ा कर , कम पैसे का सामान अधिक पैसों में दिखाकर, नोच रहे हैं या फिर फर्जी बिल- बाउचर लगाकर पूरा का पूरा सरकारी पैसा निकाल ले रहे हैं  |यहाँ तक कि सरकारी पैसे से कुछ मूर्ख लोग इतना अधिक कमजोर सामान खरीदते हैं जिससे कि वह बहुत दिन तक न चलकर शीघ्र ही टूट- फूट या खराब हो जाता है | इसी तरह अधिकतर भ्रष्टाचारी एवं बेईमान लोग अपने-अपने तरीके से अपने-अपने  विभागों में चोरी एवं घूसखोरी आदि करते हैं तभी तो ये मूर्ख लोग अपने सम्पूर्ण सम्पत्ति का ब्यौरा सरकार को नहीं देते हैं, दिया भी तो आधा- अधूरा|जिससे भारत देश में रहने वाले अधिकतर मानव एवं जीव-जन्तुओं  की समुचित व्यवस्था ( रोटी, कपड़ा, घर, मकान, उत्तम स्वास्थ्य, समुचित शिक्षा तथा जीवों की भी  रहने आदि का पर्याप्त रूप में जगह न मिलना) नहीं हो पा रही है| जहाँ कुछ मूर्ख लोग अपने ज्ञान,पद- प्रतिष्ठा आदि का दुरुपयोग कर भारत देश रूपी पावन धाम में विराजमान् मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों का, शोषण करते हुए अपना घर-परिवार सजाने में लगा हुये हैं वहीं धर्म के नाम पर कुछ मूर्ख एवं पाखण्डी साधु दिनों- दिन जमीन को कब्जा करके,जमीन को कम करते जा रहे हैं तथा माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन तट को भी कब्जा करके,जल को दूषित करने में लगे हुए हैं | किसान देवता कहाँ से अधिक अनाज पैदा करे और माँ गंगा जैसी महान् नदियों का जल कैसे स्वच्छ हो, यह हमारे पावन देश में विराजमान् कुछ बुद्धिजीवियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है| सरकार बुद्धिजीवी मानवों के सहयोग से समान दंड व्यवस्था और कठोर कानून बनाकर आय से अधिक सम्पत्ति रखने वाले भ्रष्टाचारी एवं बेईमान मनुष्यों से सम्पूर्ण पैसा तथा जमीन- जायदाद आदि जब्त कर ले तथा इस बचे हुए जमीन और पैसों को, पक्षपात रहित होकर, उन लोगों के विकास में लगाये जायें, जो भारत देश रूपी पावन धाम में रहने के बावजूद भी, अभी तक पर्याप्त शिक्षा, रोटी,कपड़ा तथा घर आदि से वंचित हैं| इसी तरह सरकार कठोर कानून से धर्म के नाम पर जमीन कब्जा करके झूठ- मूठ का प्रवचन देकर भोले-भाले मानव को ठग कर अपना घर-परिवार सजाने वाले पाखण्डी एवं मूर्ख साधु रूपी भस्मासुरों से भी जमीन को छीन ले और साथ ही माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन तटों को खाली करा दे तो मुझें लगता है पुनः वेद सम्मति राज आ जायेगा अर्थात् अन्न पैदा करने के लिए जमीन निकल आयेगी और माँ गंगा जैसी महान् नदियों का जल कुछ हद तक स्वच्छ हो जायेगा जिससे भारत देश रूपी पावन धाम में विराजमान् मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों के जीवन में कुछ और अधिक सुख-शान्ति की वृद्धि हो जायेगी| अत: स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ  बेईमान मनुष्यों तथा धर्म के नाम पर जमीन एवं माँ गंगा जैसी महान् नदियों के तट को कब्जा करने वाले कुछ मूर्ख  साधु कोरोना वायरस से लाखों गुना, हमारे भारत देश रूपी पावन धाम के लिए खतरनाक हैं, अत:  भारत भूमि  की रक्षा करने हेतु, मानवों द्वारा भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास आदि जैसे कुरीतियों का निराकरण करना आवश्यक है|

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पता: 
डाॅ० सिकन्दर लाल 
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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फरियाद कर लिया (ग़ज़ल) - मोहम्मद मुमताज़ हसन

फरियाद कर लिया
(ग़ज़ल)
दिल ही दिल में याद कर लिया,
दुआ में तुझे फरियाद कर लिया!

ये चाहत भी क्या शै है या रब,
ख़ुद को भी बर्बाद कर लिया!

रास न आई मुझे मुहब्बत तूने,
नई दुनिया आबाद कर लिया!

इक आरज़ू  मेरे  सीने में रख कर,
हसींख़्वाब की बुनियाद कर लिया!

शिकार मेरा करने की चाहत में,
ख़ुद को उसने सैयाद कर लिया!
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पता:
मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया (बिहार)

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मेरी प्रेरणा (कविता) - अ कीर्तिवर्धन

मेरी प्रेरणा
(कविता)
हासिये पर बने वह लोग
जो विकलांग होकर भी
भीड़ से आगे चले हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं.....

विकलांगता जिनके लिए अभिशाप थी,
अभिशाप की बैशाखियाँ तोड़ कर
जो आगे बढे हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता को जिन्होंने ललकारा है,
आत्मशक्ति को संभाला है
अपने निश्चय पर अड़े हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता को नया अर्थ दे डाला है,
शक्ति का सृजन क्रियात्मक कर डाला है
आज राजपथ पर खड़े हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता अब घबराने लगी है
स्वाभिमान से बचने लगी है
जब से वो गद्दीनशीं हुए हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....

विकलांगता अब बेमानी हो गई है
उनकी पहचान सफलता की कहानी हो गई है
आज मंजिलों से आगे वो बढे हैं,
मेरी प्रेरणा बने हैं....
-०-
पता: 
अ कीर्तिवर्धन



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