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Tuesday, 24 November 2020

ताश के पत्तों का शहर (कविता) - सोनिया सैनी

ताश के पत्तों का शहर
(कविता)
ताश के पत्तों का शहर
यहां आदमी है,आदमी से बेखबर
एक की सजा दूसरे का मजा बन जाती है,
खून एक का बहे ,तो दूसरे की प्यास बुझ जाती है।


एक बढ़े आगे,तो दो कदम पीछे
धकेल, इंसानियत दिखला दी 
जाती है।
पूरा परिवार है यहां, फिर भी
ये आधुनिकता,हर एक को
तन्हा कर जाती है।

रिश्ते नाते सब है, बेमानी
यहां तो अपनों को ही
सारी दुनियादारी दिखला 
दी जाती है।

मुखौटा मासूमियत का लगाकर
मख़ोल इंसानियत का उड़ाया
जाता है।
अजी यह ,ताश के पत्तो का
शहर है।
यहां आदमी ही आदमी के लिए
ज़हर है।
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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