मकसद
(लघुकथा)
"मम्मी! आज अगर स्कूल फ़ीस नहीं जमा हुई तो, मैडम फिर मुझे धूप में खड़ा करेंगी..." आठ वर्षीया श्वेता ने आशंकित हो कर कहा।
"कितनी बार तुझसे कहा है कि धंधे वाली जगह पर नहीं आने को....?" लक्ष्मी ने श्वेता को डांटते हुए कहा।
" मगर मम्मी....!"
" अगर-मगर कुछ नहीं... अब तुम स्कूल जाओ! आज तुम्हारी फ़ीस मैं जरूर भर दूंगी" लक्ष्मी ने श्वेता को निशब्द करते हुए कहा।श्वेता बेमन से स्कूल की तरफ चल पड़ी,आज उसके पैर स्कूल की तरफ बढ़ी नहीं रहे थे।
तभी किसी ग्राहक ने लक्ष्मी को टोका- " क्या.. रे सनी लियोनी? आज तो बड़ी चिकनी लग रही है,चल आ-जा भीतर....!"
" अबे! उजड़े चमन, पहले दो पत्ती हाथ पर रख... तब भीतर जा...? "
"सौ रुपए से ज्यादा नहीं दूंगा, वरना रूपा रानी के पास चला जाऊंगा!"
" जा... स्साले! अपनी मां रूपा रानी के पास" लक्ष्मी ने उस टकले को झिड़कते हुए कहा।
तत्पश्चात तीन लड़के लक्ष्मी से मुखातिब होते हुए बोले- "हम तीन हैं, सिर्फ तुम्हारे साथ जाना चाहते हैं?"लड़कों ने सकुचाते हुए कहा।
" शक्ल से तो पढ़ने वाले लड़के लगते हो, इस गली में नए आए हो क्या ? क्यों, अपने मां-बाप के पैसों को बर्बाद कर रहे हो...? जाओ घर और पढ़ाई में मन लगाओ! वरना डिग्रियां की जगह यहां एड्स का सर्टिफिकेट मिल जाएगा...!" लक्ष्मी की तीखी बातों से तीनों लड़के उस वेश्या-बाजार की गली से रफू-चक्कर हो गए। तभी एक व्यंग्यात्मक स्वर ने लक्ष्मी के कानों को स्पर्श किया- " क्यों.... बच्चे पसंद नहीं तुझे?"
" मुझे हिजड़े भी पसंद नहीं...! लक्ष्मी ने भी तीखा प्रहार किया।
" बहुत बोलती है स्साली... चल अंदर आ... तुझे दिखाता हूं मर्दानगी....?उस शोले फिल्म के गब्बर सिंह माफिक दिखने वाले आदमी ने कहा,जिसके साथ दो और लफंगे थे।
" देख मंगुआ! धंधे का टाइम है,पहले दो सौ हाथ पर रख, फिर साथ चलूंगी तेरे ?"
" हम तीनों चलेंगे तेरे साथ! खुश कर दे मेरी रानी हमें...?
" फिर तो छः सौ लूंगी..?" लक्ष्मी ने साफ तौर पर कहा।
"चल! पाँच पत्ती ले लेना..." मंगुआ ने लक्ष्मी का गाल पकड़ते हुए कहा।
लक्ष्मी ने सर उठाकर आसमान की ओर देखा तो, आग उगलते सूर्य ने कहा- 'श्वेता की फ़ीस..!'
लक्ष्मी हालातवश मासूम खरगोश की भाँति तीनों खूंखार भेड़ियों के सामने निर्वस्त्र हो गई। कुछ देर बाद लक्ष्मी अपने आंचल से माथे के पसीने को पोंछती हुई श्वेता के स्कूल की तरफ भागी। जहां क्लास-रूम में श्वेता बेंच पर बैठी किताब के पन्नों में खोई थी। लक्ष्मी ने राहत की सांस लेते हुए, तुरंत आँचल की गांठ से पैसे निकालकर काउंटर पर जमा किए। फिर क्लास-रूम में जाकर श्वेता के माथे को चूमते हुए बोली- " बेटी! तुम्हारे जीवन का सिर्फ एक ही मकसद होना चाहिए सिर्फ पढ़ना और पढ़ना। ताकि तुम बड़ी होकर शिक्षिका बनों और अपने जैसे गरीब बच्चों को पढ़ाना"। मां के आत्मविश्वास और पसीने से लथपथ शरीर को देखकर श्वेता ने कहा- "मम्मी ! तुम चिंता मत करो? मैं इतना पढूंगी कि तुम्हें धंधे वाली गली में नहीं जाना पड़ेगा....!" इतना सुनते ही लक्ष्मी की आंखें भर आई और वह श्वेता से लिपट कर रो पड़ी।
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"कितनी बार तुझसे कहा है कि धंधे वाली जगह पर नहीं आने को....?" लक्ष्मी ने श्वेता को डांटते हुए कहा।
" मगर मम्मी....!"
" अगर-मगर कुछ नहीं... अब तुम स्कूल जाओ! आज तुम्हारी फ़ीस मैं जरूर भर दूंगी" लक्ष्मी ने श्वेता को निशब्द करते हुए कहा।श्वेता बेमन से स्कूल की तरफ चल पड़ी,आज उसके पैर स्कूल की तरफ बढ़ी नहीं रहे थे।
तभी किसी ग्राहक ने लक्ष्मी को टोका- " क्या.. रे सनी लियोनी? आज तो बड़ी चिकनी लग रही है,चल आ-जा भीतर....!"
" अबे! उजड़े चमन, पहले दो पत्ती हाथ पर रख... तब भीतर जा...? "
"सौ रुपए से ज्यादा नहीं दूंगा, वरना रूपा रानी के पास चला जाऊंगा!"
" जा... स्साले! अपनी मां रूपा रानी के पास" लक्ष्मी ने उस टकले को झिड़कते हुए कहा।
तत्पश्चात तीन लड़के लक्ष्मी से मुखातिब होते हुए बोले- "हम तीन हैं, सिर्फ तुम्हारे साथ जाना चाहते हैं?"लड़कों ने सकुचाते हुए कहा।
" शक्ल से तो पढ़ने वाले लड़के लगते हो, इस गली में नए आए हो क्या ? क्यों, अपने मां-बाप के पैसों को बर्बाद कर रहे हो...? जाओ घर और पढ़ाई में मन लगाओ! वरना डिग्रियां की जगह यहां एड्स का सर्टिफिकेट मिल जाएगा...!" लक्ष्मी की तीखी बातों से तीनों लड़के उस वेश्या-बाजार की गली से रफू-चक्कर हो गए। तभी एक व्यंग्यात्मक स्वर ने लक्ष्मी के कानों को स्पर्श किया- " क्यों.... बच्चे पसंद नहीं तुझे?"
" मुझे हिजड़े भी पसंद नहीं...! लक्ष्मी ने भी तीखा प्रहार किया।
" बहुत बोलती है स्साली... चल अंदर आ... तुझे दिखाता हूं मर्दानगी....?उस शोले फिल्म के गब्बर सिंह माफिक दिखने वाले आदमी ने कहा,जिसके साथ दो और लफंगे थे।
" देख मंगुआ! धंधे का टाइम है,पहले दो सौ हाथ पर रख, फिर साथ चलूंगी तेरे ?"
" हम तीनों चलेंगे तेरे साथ! खुश कर दे मेरी रानी हमें...?
" फिर तो छः सौ लूंगी..?" लक्ष्मी ने साफ तौर पर कहा।
"चल! पाँच पत्ती ले लेना..." मंगुआ ने लक्ष्मी का गाल पकड़ते हुए कहा।
लक्ष्मी ने सर उठाकर आसमान की ओर देखा तो, आग उगलते सूर्य ने कहा- 'श्वेता की फ़ीस..!'
लक्ष्मी हालातवश मासूम खरगोश की भाँति तीनों खूंखार भेड़ियों के सामने निर्वस्त्र हो गई। कुछ देर बाद लक्ष्मी अपने आंचल से माथे के पसीने को पोंछती हुई श्वेता के स्कूल की तरफ भागी। जहां क्लास-रूम में श्वेता बेंच पर बैठी किताब के पन्नों में खोई थी। लक्ष्मी ने राहत की सांस लेते हुए, तुरंत आँचल की गांठ से पैसे निकालकर काउंटर पर जमा किए। फिर क्लास-रूम में जाकर श्वेता के माथे को चूमते हुए बोली- " बेटी! तुम्हारे जीवन का सिर्फ एक ही मकसद होना चाहिए सिर्फ पढ़ना और पढ़ना। ताकि तुम बड़ी होकर शिक्षिका बनों और अपने जैसे गरीब बच्चों को पढ़ाना"। मां के आत्मविश्वास और पसीने से लथपथ शरीर को देखकर श्वेता ने कहा- "मम्मी ! तुम चिंता मत करो? मैं इतना पढूंगी कि तुम्हें धंधे वाली गली में नहीं जाना पड़ेगा....!" इतना सुनते ही लक्ष्मी की आंखें भर आई और वह श्वेता से लिपट कर रो पड़ी।
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पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)
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