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Sunday, 2 February 2020

●बुजुर्गो की सलाह हमेशा गलत नही होती!!● (संस्मरण) - अमन न्याती

●बुजुर्गो की सलाह हमेशा गलत नही होती!!● 
(संस्मरण)
कुछ दिन पहले की बात है ,मैं एक बस से सफर कर रहा था । शाम का समय होने की वजह से बस में थोड़ी भीड़ थी। मैं जिस स्टैंड से बस में चढ़ा था वही से एक वृद्ध अम्मा ओर एक नौजवान लड़का भी चढ़ा था और दिखने में वो दादी पोते जैसे लग रहे थे।
चलते चलते थोड़ी देर बाद बस एक स्टैंड पर रुकी और नसीब से कुछ सवारियां वहां उतर गयी तो बैठने की सीट भी मिल गयी। उसी दौरान मैंने देखा कि वो अम्मा अपने पोते को अपने पास वाली सीट पर बैठने की लिए कहती हुए बोली "बेटा गेट पर मत खड़ा रह वरना गिर जाएगा और तुझे चोट लग जायेगी"।
इस पर वो लड़का उल्टा अपनी दादी पर चिल्लाने लगा कि "आप तो बैठ गयी हो ना अब क्यों चिल्ला रही हो,मूझे नही बैठना सीट पर।।"
ऐसा बोलकर उसने उस बेचारी अम्मा की बोलती बंद कर दी और अपने फ़ोन पर व्यस्त हो गया। 
यह देखकर एक पल के लिए मैं आश्चर्य में पड़ गया कि कोई अपनी बुजुर्ग दादी से इस तरह कैसे बात कर सकता है? 

खैर वो कहते है ना बुजुर्गों की सलाह हमेशा गलत नही हुआ करती और ठीक हुआ भी वैसा ही, थोड़ी ही देर में बस ड्राइवर ने एक कुत्ते के बच्चे को बचाने के लिए जैसे ही ब्रेक लगाया और वो लड़का उछलकर गेट से बाहर जा गिरा और बेहोश हो गया और वो अम्मा जिसे ठीक से चला भी नही जा रहा था जल्दी जल्दी बिना अपनी परवाह किये बस से उतरी ओर अपने पोते को ऐसी हालत में देखते ही उसके आंसू छलक पड़े ,वो बेचारी मदद के लिए गुहार लगाने लगी तभी पास से गुजर रहे एक व्यक्ति ने अपनी गाड़ी में उस लड़के को बिठाया ओर अस्पताल लेकर गया।।

ये सब देखकर मैं सोच में पड़ गया कि आप कितना ही अपने बुजुर्गों को भला बुरा कह लो पर वो कभी बुरा नही मानते, आप चाहे जितना उन पर चिल्लाओ लेकिन वो अपने प्यार में कभी कमी नही आने देते।हमेशा आपकी परवाह उनकी आँखों मे झलकती रहेगी और हम इसे हमेशा महसूस कर सकते है।।
पर बस अब इसी बात पर तरस आता है कि काश वो लड़का अपनी अम्मा की बात मान लेता तो उसे आज ये दिन नही देखना पड़ता।
-०-
पता :
अमन न्याती
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

-०-

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देदो तुम मेरे पंखों को उड़ान चाहिए (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी


देदो तुम मेरे पंखों को उड़ान चाहिए
(कविता)
हे बाबुल मुझको अपनी पहचान चाहिए।
देदो तुम मेरे पंखों को उड़ान चाहिए।

चौका बर्तन करते मुझको जीवन भर न रोना है।
देदो तुम मेरे होठों को मुस्कान चाहिए।

देख सकूं मैं पूरी दुनियाँ भला-बुरा पहचान सकूं।
रह सकूं मैं जहाँ खुशी से वो जहान चाहिए।

घर की चार दिवारी में न मुझे सिमट कर रहना है।
आप देदो मेरे पंखों को खुला आसमान चाहिए।

बनना है मुझे कलेक्टर पापा देश का मान बढ़ाना है।
पढ़ने जाने दो मुझको भी थोड़ा ज्ञान चाहिए।

जहाँ रहे इज्जत से नारी न नारी का अपमान हो।
तुम देदो मुझको ऐसा हिन्दुस्तान चाहिए।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-



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हमें भगवान क्यों नहीं मिलते ? (आलेख) - सहज सभरवाल

हमें भगवान क्यों नहीं मिलते ?
(आलेख)

आज प्रतिभाशाली और कलात्मक लोगों द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास से भरी दुनिया है। इस दुनिया में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। उन सभी को, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रचनात्मक ईश्वर द्वारा प्रतिभाओं का पुनर्निर्माण करना है।

उनमें से कुछ नास्तिक हैं, जबकि अन्य आस्तिक हैं। लेकिन सभी मनुष्य सर्वशक्तिमान ईश्वर की रचना हैं। लोग अपने अच्छे के लिए भगवान की पूजा करते हैं और भगवान से उन्हें फिट और स्वस्थ रखने और उन्हें आशीर्वाद देने का अनुरोध करते हैं। लेकिन वे पूरी एकाग्रता और लगाव के साथ भगवान की पूजा करते हैं। हिंदू मंदिरों में अपने ईश्वर की पूजा करते हैं, मुसलमान मस्जिदों में अपने ईश्वर की पूजा करते हैं, सिख गुरुद्वारों में अपने ईश्वर की पूजा करते हैं जबकि ईसाई चर्चों में अपने ईश्वर की पूजा करते हैं। लेकिन बहुत कम लोग ही ईश्वर को पा पाते हैं। यह भगवान के साथ एकाग्रता और प्रेम और भगवान में पूर्ण विश्वास के कारण है। कई लोग जब अपने पूजा स्थल पर जाते हैं, तो वे ईश्वर के बजाय अपने आसपास और अन्य लोगों को देखते रहते हैं। वे भगवान से प्रार्थना करते हुए बहुत कम समय देते हैं। उनमें से कुछ लोग लंबे समय तक पूजा केंद्र में बैठे रहते हैं, ऊब जाते हैं और इससे उबरने के लिए वे स्मार्टफोन का उपयोग चैट, वीडियो देखने, गेम खेलने, फोन पर अपने रिश्तेदारों को फोन करने, दूसरों को परेशान करने वाले लोगों को परेशान करने के लिए करते हैं जो ईश्वर की आराधना करते हैं और अपने आसपास के अन्य लोगों के साथ बातचीत करते हैं। यदि वे ईश्वर की ओर ध्यान देते हैं और ईमानदारी से प्रार्थना करते हैं, तो वे निश्चित रूप से ईश्वर को पाएंगे। पूजा स्थलों में बच्चे अपने आस-पास देखने वाली हर चीज को सीखने की कोशिश करते हैं और अगर वयस्क इन चीजों को करते हैं, तो इससे युवा पीढ़ी पर भी बुरा असर पड़ेगा। बच्चे, अगर पूजा केंद्रों में कुछ गलत कर रहे हैं तो यह उनकी गलतियाँ नहीं हैं क्योंकि वे अपरिपक्व हैं बल्कि उनके माता-पिता की गलती है।

माता-पिता उनके भविष्य के निर्माता हैं और उन्हें अपने सामने और वास्तविक जीवन में भी सबसे अच्छा करना चाहिए क्योंकि एक बच्चा भी अपने माता-पिता की विशेषताओं का पालन करेगा। धार्मिक प्रसाद के रूप में उपयोग किए जाने वाले पुजारियों या भोजन से पवित्र प्रसाद (प्रसाद) या आशीर्वाद लेते समय, भक्त अक्सर अपना लालच दिखाते हैं और अधिक मात्रा में आशीर्वाद चाहते हैं। यह सब भगवान द्वारा रिकॉर्ड के रूप में देखा और मनाया जाता है।

यहां तक ​​कि भक्तों की गलतियां भी नहीं हैं, लेकिन पुजारी उन धार्मिक स्थानों पर भी कई गलतियां करते हैं। पुजारी, अब एक दिन, गलत गतिविधियों में लिप्त हैं। वे भगवान और भक्तों पर बहुत कम ध्यान देते हैं और उनकी एकाग्रता इस बात पर होती है कि एक भक्त भगवान को क्या चढ़ाता है और उसकी मात्रा और पुजारी उसमें लालच और चतुराई दिखाते हैं। पुजारी भक्तों का ब्रेनवॉश करने की कोशिश करते हैं और यह भी सर्वशक्तिमान ईश्वर की देखरेख में है और किसी व्यक्ति या व्यक्ति को ईश्वर को दी जाने वाली राशि या धन की मात्रा और गुणवत्ता के आधार पर प्रसाद / आशीर्वाद प्रदान करते हैं। एक पुजारी को एक आदर्श, अच्छा बुद्धिमान और शांत दिल का धार्मिक व्यक्ति होना चाहिए, जिसे कभी भी जाति, पंथ, रंग या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। पवित्रता और अच्छे विचारों से भरा मन भगवान को खोजने के लिए आवश्यक शर्त है। ईश्वर कभी भी राशि या मात्रा या वस्तु की गुणवत्ता नहीं चाहता है और वस्तु भी नहीं, लेकिन ईश्वर केवल भक्तों का संपूर्ण ध्यान और लगाव चाहता है। वह एक भक्त के विश्वास के सिवाय कुछ नहीं चाहता है और भगवान सब कुछ अच्छा देने के लिए तैयार है, एक भक्त चाहता है या प्राप्त करना चाहता है क्योंकि भगवान इस दुनिया का निर्माता है। भगवान हमेशा सभी के दिल के भीतर मौजूद होते हैं। अगर पूरी एकाग्रता के साथ एक नेक इंसान का शुद्ध मन, जब भगवान को खोजने की कोशिश करता है, तो बस आंखें बंद करके भगवान का दर्शन पाने के लिए गुरुमंत्र है।

इसके अलावा, अब एक दिन, लोग अपने घरों में चित्रों या भगवान की प्रतिमा की प्रति रख रहे हैं। इन चित्रों या मूर्तियों का निर्माण थोक में चित्रकारों / कलाकारों या मूर्तिकार / मूर्तिकार द्वारा किया जाता है।

मेरे हिसाब से ऐसा नहीं करना चाहिए। जैसा कि लोग भगवान की तस्वीरों या मूर्तियों की विभिन्न प्रतियों का उत्पादन करते हैं और वे सिर्फ अपने व्यवसाय के लिए ऐसा कर रहे हैं। धार्मिक स्थानों को छोड़कर, लोग अपने घर, कार्यालय, कारों में भगवान की प्रति को कंगन और हार में भगवान की तस्वीरों का उपयोग करके रख रहे हैं। इससे पूजा स्थलों का मूल्य और शुद्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। लोग लापरवाही से कहीं भी भगवान की तस्वीर रखते हैं और इसके प्रति बहुत कम सम्मान दिखाते हैं। कई बार, उद्योग जहां इन मूर्तियों या चित्रों को थोक में मुद्रित किया जाता है, वे उन्हें बंडल या बॉक्स में यहां से वहां तक ​​फेंक देते हैं और कई प्रिंट फाड़ देते हैं और मूर्तियों को पूजा के टुकड़े के रूप में विचार किए बिना तोड़ दिया जाता है और बस हासिल करने की कोशिश करते हैं किसी भी तरह से अधिकतम लाभ। लेकिन अगर उसी स्थान पर, जब भगवान की मूर्ति को शुद्ध धार्मिक स्थान पर रखा जाता है, तो उसके पास काफी स्थिति होगी और उसे बहुत सम्मान और विश्वास दिया जाएगा। उदाहरण के लिए -: यदि कोई विशेष चीज बड़ी मात्रा में मौजूद है, तो लोग इससे अनजान हो जाते हैं और वे जिस भी तरीके से चाहें उपयोग कर सकते हैं और यह ध्यान से उपयोग कर सकते हैं कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा कुछ मात्रा का उपयोग किया जाता है तो यह बाकी को प्रभावित नहीं करेगा। बड़ी मात्रा में और यह लापरवाही से बर्बाद। दूसरी ओर, यदि वह विशेष रूप से यह केवल कम मात्रा में मौजूद है, तो लोग इस पर अधिक ध्यान देते हैं और यह उनके लिए मूल्यवान हो जाता है और वे इस बात को अच्छी तरह से ध्यान रखते हैं कि यदि लोग इसे बर्बाद कर देते हैं तो वे आसानी से वापस फिर से नहीं मिलेंगे ।

इसलिए महान होने के लिए भगवान की मूर्तियों / चित्रों का मूल्य, प्रतियों की मात्रा कम होनी चाहिए।

इसके अलावा, पुराने समय में लोग धार्मिक स्थानों से बहुत दूर जूते रखकर भगवान के घर में साफ-सफाई और पवित्रता बनाए रखते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

लेकिन लोग अब बहुत लापरवाह और शुद्ध हो गए हैं, क्योंकि वे अपने जूते कहीं भी सुरक्षित रखते हैं। आज एक समय है जब लोग अपने स्वयं के नियम बना रहे हैं और जहां चाहें पूजा स्थल के पास और यहां तक कि फुटवियर भी रख रहे हैं।

यही कारण है कि लोग सच्ची उपासना के बाद ईश्वर को पाने में असमर्थ हैं और कुछ शांत हृदय वाले लोग आज की दुनिया में ईश्वर को पाते हैं।
-०-
पता:
सहज सभरवाल
जम्मू-कश्मीर

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आशीर्वाद (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

आशीर्वाद
(कविता)
जन्मदिन के अवसर पर,
बजुर्गों से मिला आशीर्वाद।
शतायू भव:
चरितार्थ हो वेद वाक्य,
“शत् जीव शरदों वर्धमान “
अर्थात -
निरंतर हो विकास,
बढ़े आन बान ओर शान।
पर हे परमात्मा ...
सुनना मेरी प्रार्थना,
ऐसा देना आशीर्वाद,
केवल देह की आयू ना बढ़े,
आत्मा की स्पष्टता भी बढ़े,
मिले ऐसा प्रसाद।
दीन हो कर ना जियें,
सक्षम हो करके जिए,
ना आए अवसाद।
शरीर की स्वस्थता बढ़े,
भीतर की प्रखरता बढ़े,
सबका हो विकास।
जीर्ण क्षीण देह में,
ओज का हो आवास,
मानो अभी जन्में हो,
ऐसा हो अहसास,
ज़िंदगी ऐसी जियें
ऊर्जा का हो अहसास,
ऐसी जागृति प्राप्त हो,
प्रभु ऐसा देना आशीर्वाद।
तब हो चरितार्थ वेद वाक्य,
शत जीव शरदो वर्धमान:-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)

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बड़प्पन (लघुकथा) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे


बड़प्पन
(लघुकथा)
नगर के सिध्द स्थल हनुमान मंदिर में लक्ष्मण प्रसाद पहुंचे और प्रार्थना करने लगे -" हे भगवान कल का केस मैं ही जीतूं,इतनी दया ज़रूर करना ।नहीं तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा ।मेरी सारी दौलत मेरे सबसे बड़े दुश्मन के पास चली जाएगी ।"
उनके जाने के बाद थोड़ी देर में रामप्रसाद आये और वे भी प्रार्थना करने लगे-" हे भगवान कल का केस लक्ष्मण प्रसाद ही जीते ,इतनी दया करना ।नहीं तो उसे बड़ा आघात लगेगा,और वह भीतर तक टूट जाएगा ।मुझे कुछ नहीं चाहिए,मुझे केवल आपकी कृपा की ज़रूरत है ।"
जैसे ही रामप्रसाद बाहर निकले,वैसे ही मंदिर के महंत उनसे बोले-"रामप्रसाद जी आप केस में ख़ुद की हार और अपने छोटे भाई की जीत की कामना कर रहे हैं ,जबकि वह आपको अपना पक्का दुश्मन मानता है ।क्या आप यह नहीं जानते ?"
"जी,बिलकुल जानता हूं ।"
"तो फिर ,ऐसा क्यों?"
"वह इसलिए ,क्योंकि मैं बड़ा हूं ।"
"तो ?"
"तो,बड़े के साथ क्या बड़प्पन नहीं होना चाहिए ? " रामप्रसाद ने दृढ़ता से जवाब के साथ सवाल भी कर दिया ।
महंत जी अब निरुत्तर थे ।
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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