वह जो रहने नहीं देता खामोश मुझे
(कविता)
खामोश रहकर भी वो
बहुत कुछ कह जाती थी
वो जो मेरी तमन्नाएं थी
रह-रहकर सिर उठाती थी
रहने नहीं देती थी बेबस मुझे
विद्रोह करने का जोश जगा दी थी
कुछ कर, कुछ करके दिखा
ऐसी आस मन में जगाती थी
खामोश रहकर वो
बहुत कुछ कह जाती थी
बहुत खुब है कविता ! बहुत बहुत बधाई आदरणीय !
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