"बापू ! आज लौकडाउन का उन्नीसवाॅ दिन है, आज भी ना माँ को भरपेट खाना मिला न ना तुम्हे, और ना ही मैं कुछ खा पाई हूं ।" 'आखिर कब हम लोग इस तरह
गुजारा करेंगे? '
" सरिता बेटी ! मुझे तो चिंता इस बात की है कि तेरी माँ बीमारी की वजह से मरे या ना मरे , मगर भूख से जरूर मर जाएगी , पता नही यह कौन सी बीमारी को चाइना वालों ने हमारे पास भेज दिया और हम सभी लोगों को तकलीफ में डाल दिया । जो लोग पैसे वाले है वह लोग तो अपनी सुख सुविधा जुटा हीं लेते है , मरते हमलोग है दिन मजदूरी करने वाले लोग ।"
" बापू ! भूख से तो हर रोज मेरे पेट में ऐंठन होने लगती है तो एक ग्लास पानी पीकर भूख मिटाती हूं ।"
"क्या करें बेटी ! समय बहुत खराब चल रहा ,देश की परिस्थिति भी बहुत खराब है।"
"बापू ! आखिर कब तक चलेगा ऐसा , सरकार की तरफ से भी कोई मदद नही मिल रही है ।"
"ऐसी बात नही है बेटी ! सरकार हर तरफ से मदद कर रही है , लेकिन हम हीं वहां तक नही पहुंच पा रहे है ।"
'मोहल्ले मे तो हर रोज सरकारी तथा निजी संस्थाएं मदद देने के लिए चावल , दाल तथा अन्य खाने योग्य सामग्री लेकर तो आ ही रहे है, लेकिन हम ही पुलिस के मार-धार के डर से वापस घर आ जाते है ।'
"लेकिन बापू! घर का राशन खत्म हो गया है और माँ की दवाई भी कितने दिनो से नही है, आज जैसे भी हो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा ।"
"ठीक है सरिता बिटिया ! माँ की दवाई की पर्ची भी दे और एक झोली भी दे, आज जैसे भी हो सामान और तेरी माॅ की दवाईयाँ दोनो लेकर ही आउंगा ।"
रामलाल सरिता से झोली और अपनी पत्नी की दवाई की पर्ची लेकर घर से निकल पड़ा ।
रामलाल शहर के पास के ही एक मोहल्ले मे ही अपनी बीमार पत्नी और अपनी बेटी के साथ रहता था । वह रिक्शा चलाकर अपने छोटे से परिवार की देखभाल करता था ।
लगभग एक घंटे बाद रामलाल वापस अपने मोहल्ले मे बहुत सारा खाने का सामान तथा अपनी पत्नी की दवाई लेकर लौट आया ।
सरिता को अपने घर के दरवाजे पर किसी की आने की आहट सुनाई पड़ी, वह झट से उठी और दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन वह दरवाजा खोल दी । दरवाजे के बाहर रामलाल बहुत सारा सामान लेकर खड़ा था । सरिता के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी और आश्चर्य भी हुई ।
" बापू ! इतना सारा सामान ! तुम कहां से लेकर आए ?"
" बेटी ! इस दुनिया में बहुत सारे ऐसे फरिश्ते है जिसे हम सहज ही पहचान नही पाते है । आज ऐसे ही एक फरिश्ते ने खाने का सारा सामान और तेरी माॅ की दवाई भी खरीद कर दी ।"
सरिता यह बात सुनकर फट से घर के अन्दर जाकर भगवान के फोटो के सामने नतमस्तक होकर बोली " भगवान ! आज तेरा लाख लाख शुक्र है , नही तो पता नही हमारा क्या होता ? "
'सरिता बेटी , तुम्हारा जो यह भगवान है हमारे पास पहुंचने मे बहुत देर करते है , समय पर हमारी मदद "इस धरती का भगवान" ही करता है ।"
फिर रामलाल ने बताया कि एक दिन एक सवारी को अपने रिक्शे पर बैठाकर उनके घर छोड़ने गया था, जब वह छोड़कर वापस आ रहा था कि वह अपने रिक्शे मे एक काली रंग की छोटी सी बैंग को गिरा हुआ देखा ।
रामलाल को समझते देर नही लगी कि वह बैग उसी सज्जन का था जिसे उसने अभी अभी घर छोड़कर आया था ।वह वापस उस व्यक्ति के घर गया और वह बैग उसी सज्जन को लौटा दिया । वह सज्जन रामलाल की इमानदारी से काफी प्रभावित हुआ और रामलाल को कुछ पैसे देने की कोशिश की लेकिन वह कुछ भी लेने से इंकार कर दिया ।
" बेटी आज वही साहब मिल गये थे , वो मुझे देखते ही पहचान गये लेकिन मै ही उन्हे पहचान नही पाया ।
उन्होंने मुझसे से पूछा "अरे ! कहां जा रहे हो ?"
फिर मैने सबकुछ उन्हे बताया ।
उन्होंने कहा " कोई बात नही है , चिंता मत करो ।"
फिर उन्होंने दो महीने के लिए सारा राशन का सामान भी खरीद दिया और तेरी माॅ की दवाई भी खरीद कर दी । मेरे लाख मना करने के बावजूद भी उन्होंने ये सारा सामान खरीद कर मुझे घर तक भी छोड़कर गये ।
"लौकडाउन खत्म होने के बाद उन्होंने कहा कि तुम्हे भी कोई नौकरी लगवा देंगे बेटी !
सरिता बोली " बापू ! सचमुच वह अंकल इस धरती पर " धरती का भगवान " हीं है ।
" हां बेटी ! तू ठीक बोल रही है ।"