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Friday, 2 October 2020

महात्मा के महात्मा (आलेख) - डाॅ. महेंद्रकुमार जैन ‘मनुज’

 

महात्मा के महात्मा
(आलेख)
महात्मागांधी जी छवि भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, मार्गदर्शक एवं समाज सुधारक के रूप में सामने आती है। गांधीजी ने देश के निर्माण में जिस शस्त्र के बलबूते पर अहम भूमिका निभाई वह है अहिंसा। 
महात्मागांधी अनासक्त कर्मयोगी साधक थे। कार्यनिपुणता, वाकपटुता, शालीनता, अच्छे श्रोता, राजनेता ही नहीं वे वास्तविक रूप में जननेता थे। आदर्श तो ऐसे कि जब उनके पास एक महिला अपने बच्चे को गुड़ अधिक खाने की शिकायत लेकर आई तब उन्होंने उससे कुछ दिन बाद में आने को कहा। इस अवधि में उन्होंने गुड़ खाना छोड़ा, जब वह महिला पुनः आई तब उन्होंने उसके बच्चे को अधिक गुड़ न खाने की सलाह दी। कुछ दिन बाद बुलाये जाने का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि उस समय वे स्वयं गुड़ खाते थे तो बच्चे को मना कैसे कर सकते थे। ये थी गांधी जी की आदर्शप्रस्तुतीकरण की शैली। आज पिता स्वयं सिगरेट फूंकता हो और बेटे से कहे कि धूम्रपान मत करना, वह हानिकारक होता है, तो कैसे प्रभाव पड़े। गांधी जी की सभी क्षेत्रों में दक्षता थी।
वे पर पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर परमार्थ में लगे। बापू आज जितने प्रासंगिक हैं शायद आने वाले कई दशकों बाद चर्चा चले कि एक फक्कड़ साधु ने अहिंसा से हिंदुस्तान को स्वतंत्रता दिलाई तो विश्वास करना उस पीढ़ी के लिए कठिन होगा। आज की पीढ़ी के लिए भी बापू किसी रहस्य या अजूबे से कम नहीं हैं।
महात्मागाँधी जी के परिवार पर जैन धर्म का प्रभाव होने के कारण उन पर भी बाल्यकाल से जैन धर्म का प्रभाव रहा। वे प्रारम्भ से ही शाकाहारी रहे। आत्मशुद्धि के लिए वे उपवास को महत्व देते थे। और उनके संस्कार जैन धर्म से बहुत प्रभावित थे। वे जैन विद्वानों केे निरन्तर सम्पर्क में रहते थे।
महात्मा गांधीजी श्रीमद्जी को धर्म के सम्बन्ध में अपना मार्गदर्शक मानते थे। वे लिखते हैं-
‘मुझ पर तीन पुरुषों ने गहरा प्रभाव डाला है- टाल्सटॉय, रस्किन और रायचन्द भाई। टाल्सटॉय ने अपनी पुस्तकों द्वारा और उनके साथ थोड़े पत्रव्यवहार से, रस्किन ने अपनी एक ही पुस्तक ‘अन्टु दि लास्ट’ से-जिसका गुजराती नाम मैंने ‘सर्वोदय’ रखा है, और रायचन्द भाई ने अपने गाढ परिचय से। जब मुझे हिन्दुधर्म में शंका पैदा हुई उस समय उसके निवारण करने में मदद करने वाले रायचन्दभाई थे।’
श्रीमद्रायचंद्र जिन्हें गांधी जी रायचन्द्र भाई कहते थे और कभी कभी वे उन्हें कवि भी लिखते हैं- का प्रभाव गांधीजी पर अधिक रहा। श्रीमद्रायचंद्र का जन्म भी सौराष्ट्र के ववाणिया बंदर नामक स्थान में हुआ था। बाद में भी इनका कार्यक्षेत्र भावनगर और जामनगर रहा। ये सब क्षेत्र महात्मागांधी जी के जन्म व कार्यक्षेत्र रहे हैं इस कारण से भी रायचन्द्र जी से महात्मा गांधी का सम्पर्क निरन्तर रहा।
श्रीमद्जी शतावधनी थे। शतावधान अर्थात् सौ कामों को एक साथ करना। जैसे शतरंज खेलते जाना, माला के मनके गिनते जाना, जोड़ बाकी गुणाकार एवं भागाकार मन में गिनते जाना, आठ नई समस्याओं की पूर्ति करना, सोलह निर्दिष्ट नये विषयों पर निर्दिष्ट छन्द में कविता करते जाना, सोलह भाषाओं के अनुक्रमविहीन चार सौ शब्द कर्ताकर्म सहित पुनः अनुक्रमबद्ध कह सुनाना आदि। महात्मा गांधीने रायचन्द्र जी से सौ प्रश्न पूछे और रायचन्द्र जी ने उन्हें उसी क्रम में उत्तर दिया। तब से गांधी जी रायचन्द्र जी के मुरीद हो गये थे।
गांधीजी ने श्रीमद् राजचन्द्र के विषय में कई पत्र लिखे। एक जगह वे लिखते हैं ‘जो वैराग्य (अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे) इस काव्य की कड़ियों में झलक रहा है वह मैंने उनके दो वर्ष के गाढ़ परिचय में प्रतिक्षण उनमें देखा है। उनके लेखों में एक असाधारणता यह है कि उन्होंने जो अनुभव किया वही लिखा है। उसमें कहीं भी कृत्रिमता नहीं है। दूसरे पर प्रभाव डालने के लिये एक पंक्ति भी लिखी हो ऐसा मैंने नहीं देखा।’ ‘खाते, बैठते, सोते, प्रत्येक क्रिया करते उनमें वैराग्य तो होता ही। किसी समय इस जगत के किसी भी वैभव में उन्हें मोह हुआ हो ऐसा मैंने नहीं देखा।’
‘व्यवहारकुशलता और धर्मपरायणता का जितना उत्तम मेल मैंने कवि में देखा उतना किसी अन्य में नहीं देखा।’ 
यही अहिंसा और आत्मशक्ति हेतु उपवास के संस्कारों को गांधी जी ने स्वतंत्रता आन्दोलन के हथियार बना लिया।
गांधी जी सबसे बड़े निष्काम कर्मयोगी थे, किन्तु उन्होंने न कभी सन्यासी का चोला पहना, न पहनने दिया। उन्होंने जब अहमदाबाद में साबरमती आश्रम शुरु किया तो एक सन्यासी सत्यदेव महाराज गांधीजी से मिलने आए। गांधीजी के जीवन और आदर्श से प्रेरित होकर सत्यदेव ने गांधीजी के साथ आश्रम में रहने की अनुमति मांगी और उन्होंने कहा कि मैं आपके साथ रहकर देश की आजादी के लिए और समाज सेवा के लिए आश्रम में रहना चाहता हूँ। गांधीजी ने स्वामी सत्यदेव जी को आश्रम में रहने के लिए अनुमति तो दे दी लेकिन उनके सामने एक शर्त रखते हुए कहा कि यह सन्यासी का चोला उतारना पड़ेगा और जनसामान्य की सादा पोशाक पहननी पड़ेगी। गांधीजी ने उनसे कहा कि ‘वे धर्म छोड़ने के लिए नहीं कह रहे हैं, केवल सन्यासी का चोला छोड़ने को कह रहे हैं। क्योंकि आश्रम लोगों की सेवा के लिए चला रहे हैं। आपको भी सेवा करनी होगी। अगर यह सन्यासी का चोला धारण किये रहेंगे तो सभी लोग आपकी सेवा में लग जायेंगे और आप जन सामान्य की सेवा नहीं कर पाओगे।’ स्वामी सत्यदेव गांधीजी की बात सुनकर आश्रम छोड़कर चले गए थे। 
गांधीजी के करिश्माई नेतृत्व के कारण हर वर्ग युवा, प्रौढ, व्यापारी, शिक्षित, महिलाएं, उद्योगपति, धार्मिक, पत्रकार उनसे प्रभावित था। रक्तपात का उनकी नैतिक दृष्टि में कोई स्थान नहीं था। परपीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर जनसाधारण के प्रति प्रेम ही गांधीजी की प्रमुख पूंजी थी।
-०-
पता:
डाॅ. महेंद्रकुमार जैन ‘मनुज’
इंदौर (मध्यप्रदेश)

 

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☆☆आजादी के दीवाने☆☆ (गीत) - अनवर हुसैन

☆☆आजादी के दीवाने☆☆  
(कविता)
आजादी   के   दीवानों   जो,
सर  बांधे  कफ़न  निकले थे
लहू  में मिला  के अपने  जो,
आजादी   वतन   निकले  थे
सरफरोश थी जिनकी तमन्ना,
दिलों में  आज भी  जिंदा है।
सच बताओ पाके आजादी,
हम आज भी क्यूं शर्मिंदा है।

इंकलाब का दे के नारा,
इंकलाब  जो   लाए  थे
जिन के बनाए  बमों से,
दुश्मन  भी  घबराएं  थे
आजादी के दीवानों की,
यादें आज भी जिंदा है।
सच बताओ पाके आजादी,
हम आज भी क्यूं शर्मिंदा है।

भारत मां की अस्मिता जिनको,
जान   से   अपनी    प्यारी  थी
हंस के कफ़न पहनने की यारों,
जिन के   लहू   में  खुमारी  थी
माटी के फरजंदो का,इंकलाब
आज   भी   यारों   जिंदा  है ।
सच बताओ पाके आजादी,
हम आज भी क्यूं शर्मिंदा है।

पहने  झोला  वो  बसंती ,
देते कौमी तराना बढ़ गए
हाथों   में   लिए   तिरंगा ,
सूली  पे  हंसते  चढ़  गए
राष्ट्र प्रेम की  जली चिंगारी,
दिलों में आज भी जिंदा है।
सच बताओ पाके आजादी,
हम आज भी क्यूं शर्मिंदा है।

अमर  हुए  मतवाले, दीवाने,
पाके शहादत वतनपरस्ती में
नाम   सुनहरा   कर   लिया
सब , दीवानों  की  बस्ती  में
हर दिल में  उन दीवानों की,
जोत  आज   भी  जिंदा  है।
सच बताओ पाके आजादी,
हम आज भी क्यूं शर्मिंदा है।
-०-
पता :- 
अनवर हुसैन 
अजमेर (राजस्थान)

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गांधी दर्शन (कविता) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

गांधी दर्शन
(कविता)
(1)
मुझे गांधी ने सिखलाया,जिऊँ मैं कैसे यह जीवन
बनाऊँ कैसे मैं इस देह और मन को प्रखर,पावन
मुझे नैतिकता-पथ दिखलाके,रोशन आत्मा कर दी,
पूज्य बापू के कारण ही,महकता है मिरा मधुवन।
(2)
जिये सत् भाव लेकर गांधी,सौंपा हमको यह ही स्वर
अहिंसा-ताव लेकर बन गये,मानव से वे इक सुर
युगों तक वंदना गांधी की होगी,इस सकल जग में,
जो करुणा -सीख दी हमको,सभी करते उसी का वर ।
(3)
राष्ट्र के बन गए बापूू,बात यह उच्चता रखती
सिखाया मान मानव का,सीख सर्वोच्चता रखती
वैष्णव जन का गाकर गीत,शोषित को लगाया दिल,
जो गांधीवाद ना समझे,बात यह तुच्छता रखती।
(4)
मद्य को त्याग दो हर एक,यह गांधी ने सिखलाया
रखो ख़ुद पर सदा संयम,यही पथ हमको दिखलाया
व्यसन तज दो सभी,तो तेजमय,बन जाओगे मानव,
पूज्य बापू ने अंतर तेज का,नग़मा मधुर गाया।
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
-०-


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बापू तेरे देश में (कविता) - मोहम्मद मुमताज़ हसन

 

बापू तेरे देश में
(कविता)
गोरों को था मार भगाया तूने,
आज़ादी का ध्वज फहराया तूने!
दी कुर्बानी देश की खातिर ,
मिटे देशभक्ति के आवेश में!

लेकिन अब क्या हो रहा है,
बापू तेरे देश में!

राजनीति बन गई अखाड़ा,
'वोट बैंक' का बजे नगाड़ा!
तस्वीर लगा होती रिश्वतखोरी,
रखा क्या 'सत्यवादी' सन्देशमें!

कैसी मानसिकता आई है,
बापू तेरे देश में!

'सत्य-अहिंसा' का कोरा मंत्र,
चल रहा'झूठवाद' से प्रजातंत्र!
अंग्रेजों-सी मूरत दिखती
है खददरधारी वेश में!

कैसे  आएगा 'राम राज' बोलो,
बापू तेरे देश में!

'गणतंत्र'आज भयभीत दिखता,
सड़कों पर  क़ानून है बिकता!

देश पे छाए संकट के बादल,
तनाव हुआ जब धर्म-विशेष में!
खतरे में भाईचारा सदियों का
बापू तेरे देश में!

गांधी तेरे तीनों बन्दर,
गए सलाखों के अंदर!
सत्ता मिल जाती है यूं भी,
साम्प्रदायिक झगड़े-क्लेश में!

भूल गए वो मूलमंत्र तुम्हारा जो-
था  राष्ट्र के नाम सन्देश में!

ये क्या हो रहा है देखो - 
बापू तेरे देश में!
-0-
पता:
मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया (बिहार)

-०-

***
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मेरे बापू (कविता) - शुभा/रजनी शुक्ला

 

मेरे बापू 
(कविता)
राष्ट्र पिता भारत की शान 
      महात्मा गाँधी व्यक्तित्व महान 
सत्य अहिंसा सत्याग्रहों से 
          झुकवाए दुश्मन शैतान 

अँग्रेजों का क्रूर प्रशासन 
        भारतियों का बेबस हाल 
ग़ुलामी की बेड़ियाँ पहने 
      मजबूर माँ बाप,और औलाद 

फूट करो और राज करो 
       अँग्रेजो की ये कूट नीति थी 
बेइमानो और गद्दारों की 
         अपने यहाँ भी कमी नही थी 

कई जयचंद बैठे हुये थे 
      अँग्रेजों से हाँथ मिलाकर 
बने विभीषण कई राजा  
      शत्रु को गुप्त राज बताकर 

स्वार्थी और मक्कार लोगो के 
    कारण हमने बेपनाह दुख पाया 
गाँधी जी के सत्याग्रहों ने 
    फिर हमको स्वराज दिलवाया 

वीर नारायण माधव सप्रे ने ,
      देश हित अपनी जान गवाँ दी 
भगतसिंह लक्ष्मी बाई ने 
      इस क्रांति को और हवा दी 

क्राँतिकारियों का अपना तरीका 
       गाँधी जी का अनोखा सलीका 
प्रेम से पहले समझाते थे  
     फिर सत्याग्रह अपनाते थे 

पैदल दाँडी यात्रा कर 
     लोगो को अपने साथ कर लिया 
और हम ने उस विषम वक्त मे 
      मुकम्मल नेता पा ही लिया 

देशवासियों को स्वतंत्र
    जीने का तुमने मार्ग दिखाया बापू 
सत्य अहिंसा के सिद्धांतो से 
   जनता को प्रेम करना सिखाया बापू 

सौ सौ बार नतमस्तक होकर 
     आज तुमको हम करते याद 
आप ना होते भारत मे तो 
   होता कहाँ भारत साम्राज्य 

अपनी जान गँवाकर तुमने 
     देश को आजादी दिलवाई 
हे राम कहकर के अंत में 
      देश को ईश भक्ति भी दिखाई 

आज आपकी क़ुरबानी पे उस
       प्रश्चिंह लग रहे हैं बापू 
अपने वस्त्र तक त्यागने वाले 
    चरित्र पे दाग़ तक लग रहे है बापू 

अच्छा हुआ ये दिन देखने से पहले
तुम यहाँ से चल दिए थे बापू 
वरना ख़ुद पे ऐसे लांछन 
 कभी सहन ना कर पाते बापू 

सारी श्रृद्धा लुप्त हो चुकी 
   भ्रमित हो जनता क्षुब्ध  हो चुकी 
आज अगर तुम जीवित होते 
  तो ख़ुद को हि गोली मार लेते बापू 
      खुद ही गोली मार लेते बापू 
-०-
शुभा/रजनी शुक्ला
रायपुर (छत्तीसगढ)

-०-

***
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हत्यारों को बापू (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


हत्यारों को बापू
(गीत)
दुख   देते  हैं  जानबूझ कर, 
दुखियारों को बापू। 
महिमामंडित करते  हैं  हम, 
हत्यारों को बापू।। 
******
देश  जूझता आज  तुम्हारा, 
मजधारों में पल पल। 
बढ़ते  हैं  विपरीत  दिशा में, 
छलिया करते हैं छल।। 
बेच  रहे   हैं  धनवानो  को, 
निर्धन के हक सारे। 
श्रमजीवी  मजबूर  हो गए, 
फिरते   मारे  मारे।।
गिरवी रखनेको आतुर घर, 
दीवारों को बापू।
महिमामंडित करते हैं हम,
हत्यारों को बापू।। 
*******
व्यक्ति  पूजा  करने  वाले, 
देशभक्त कहलाते। 
देशभक्त  बेबस  लगते  हैं, 
देश निकाला पाते।। 
रहे प्रिय जो भारतमां  को, 
अपमानित होते हैं। 
मनकी कहने किससे जाएं, 
मन ही मन रोते हैं।। 
करते   तेज  अहिंसावादी 
तलवारों को बापू। 
महिमामंडित करते हैं हम, 
हत्यारों को बापू।।
*******
सत्य अहिंसा सत्याग्रह  के, 
अब लाले पड़ते हैं। 
देशद्रोहियों  के  सीनों  पर,
हम मेडल जड़ते हैं।। 
देश उसी का  माना  जाता, 
जिसने अपना माना। 
नाम भलेकुछ धर्म भलेकुछ, 
जिसका देश ठिकाना।। 
कुछ  नाबीना  न्योत  रहे  हैं, 
अंधियारों  को  बापू। 
महिमामंडित करते  हैं  हम, 
हत्यारों को बापू।। 
*******
प्रजातंत्र  की  करें  वकालत, 
वंशवाद के रक्षक। 
सेवा  के  पथ को  त्यागा  है, 
बने हुए हैं भक्षक।। 
जनकल्याण रखा खूंटी  पर, 
अपना घर भरते हैं।
अपराधी  रेहबर   बन   बैठे, 
कब किससे डरते हैं।।
"अनंत"विजयी घोषितकरते, 
हम हारों को बापू बापू। 
महिमामंडित करते हैं हम, 
हत्यारों  को बापू।। 
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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बापू तुम्हें एक बार पुनः जन्म लेना होगा (कविता) - सुनील कुमार माथुर

बापू तुम्हें एक बार पुनः जन्म लेना होगा
(कविता)
बापू तेरे देश में यह क्या हो रहा है
अहिंसा वाले देश में हिंसा का दौर चल रहा है
आगजनी और हिंसा का तांडव मचा है
बात बात में मारामारी मची है
सत्य व अहिंसा की खिल्ली उड रही हैं
मानवता रो रही हैं
गांधी का दर्शन आज मात्र किताबों में रह गया है
हे बापू ! तुम्हें एक बार पुनः जन्म लेना होगा
हिंसा के माहौल को शान्त करना होगा
पाठ्य पुस्तकों में गांधीवादी चिन्तन को
कूट कूट कर भरना होगा
गांधी को समझने के लिए
हमें गांधी को जीना होगा
उन्हें अपने में संजोना होगा
यही गांधी के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि होगी
बापू हर परिस्थिति में
सकारात्मक रहते थे
उनकी ईश्वर के प्रति अटूट आस्था
और
विश्वास था वे हर काम को
ईश्वर का दिया हुआ मानकर चलते थे
यही वजह थी कि वे सबको बराबर मानते थे
बापू तुम्हें एक बार पुनः जन्म लेना होगा
भारत माता की रक्षा हेतु
राष्ट्र विरोधी ताकतों को भगाना होगा
अमनचैन और भाईचारे की भावना को
पुनः स्थापित करना होगा
विश्व बंधुत्व की भावना को लाना होगा
सबका भला हो , सबका कल्याण हो
प्रेम का सागर भरना होगा
खुशहाल भारत बनाना होग
बापू तुम्हें एक बार पुनः जन्म लेना होगा
-०-
सुनील कुमार माथुर
जोधपुर (राजस्थान)

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